पूरा दिन है शुभ योग

रक्षाबंधन का पर्व श्रावणी पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। ज्योतिषाचार्य पंडित दीपक पांडे के अनुसार इस बार पर्व का शुभ योग पूरा दिन रहेगा। पूर्णिमा तिथि सायं काल 5:59 तक श्रावण नक्षत्र प्रातः काल 8:02 तक तत्पश्चात धनिष्ठा नक्षत्र सौभाग्य योग और शोभन योग रहेगा।  

पुरोहित से बंधवा सकते हैं रक्षा सूत्र

पंडित दीपक पांडे ने बताया कि प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा के अनुसार इस दिन बहनें भाइयों को राखी बांधती है वैसे ब्राह्मणों से भी रक्षा सूत्र बंधवाने की परंपरा है। ऐसे व्यक्ति को प्रात: काल स्नान कर देवताओं, पितरों और इष्ट का ध्यान करना चाहिए फिर दोपहर के बाद शुद्ध पीले वस्त्र में सरसों के दाने, केसर चंदन, अक्षत की पोटली बांधकर के रक्षा सूत्र बना कर शुद्ध स्थान पर स्थापित करके कलश के ऊपर रखकर विधिवत पूजन करना चाहिए और इसके बाद रक्षा सूत्र को दाहिने हाथ की कलाई में बंधवाना चाहिए। इस दिन यज्ञोपवित का पूजन कर और पुरानी को उतारकर नया यज्ञोपवित पहनने का विशेष दिन भी बताया गया है। इस दिन को स्वाध्याय पर्व के नाम से भी जाना जाता है

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रक्षाबंधन की कथा

रक्षाबंधन को लेकर कई प्रथाएं प्रचलित हैं, पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर देवताओं की रक्षा की तभी से रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाने लगा। कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने जब वामन रूप धारण किया तब उन्होंने राजा बलि की कलाई में एक धागा बांधकर पाताल लोक में भेजा था तभी से रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा शुरू हुई है। एक अन्य कथा के अनुसार द्रौपदी भगवान श्री कृष्ण को अपना भाई मानती थीं ऐसी मान्यता है कि एक बार भगवान कृष्ण के हाथ में चोट लग गई थी इस पर द्रौपदी ने तुरंत अपनी धोती का चीर अलग कर कृष्ण के हाथ में बांध दिया था इसी कारण भगवान ने चीरहरण होने पर भाई का धर्म निभाया व द्रौपदी की रक्षा की। मध्यकालीन इतिहास में भी रक्षाबंधन संबंधित कई घटनाएं मिलती है।

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पूजा के समय ध्यान में रखें

राखी बांधते समय पूजन के दौरान तिलक में रोली के बजाय हल्दी और चूने का प्रयोग करें, फोटो रखकर आरती व तिलक बिल्कुल ना करें व अपने भाइयों का तिलक करने के दौरान सिर पर रुमाल या तौलिया अवश्य रखना चाहिए। किसी वजह से समय पर राखी नहीं आई तो कलाई को सूना न रखें मौली ही बांध ले।

पंडित दीपक पांडेय