कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। हलषष्ठी का पूजन व व्रत हर साल भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष षष्ठी को किया जाता है। इस साल यह हलषष्ठी विधिविधान से आज 9 अगस्त को मनाई जा रही है। यह व्रत माताएं पुत्रों की दीर्घायु के लिए करती हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में हलषष्ठी को कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे ललई छठ, हरछठ, हलछठ, तिन्नी छठ या खमर छठ भी कहते हैं। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण के भाई बलराम जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में हलषष्ठी व्रत मनाने की परंपरा है। यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है क्योंकि बलराम का प्रधान शस्त्र हल और मुसल है। इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है और उन्ही के नाम पर इस पावन पर्व का नाम हलषष्ठी पड़ा है।

हलषष्ठी की ऐसे करें पूजा

हलषष्ठी पूजन विधि में सर्वप्रथम प्रात काल स्नान आदि से निवृत्त होकर दीवार पर गोबर से हरछठ का चित्र बनाकर पूजा की जाती है। इस दाैरान गणेश-लक्ष्मी, शिव-पार्वती, सूर्य-चंद्रमा, गंगा-जमुमना, तुलसी वृक्ष आदि की आकृति भी बनाई जाती है। इस पूजन में कमल का फूल, छूल के पत्ते आदि को शामिल किया जाता है। वहीं हलषष्ठी की पूजा में लाल-चावल व दही का प्रसाद चढ़ाया जाता है। भुना हुआ गेहूं, चना, धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ, आदी चढ़ाएं और इसी के साथ हल्दी के रंग में रंगा हुआ वस्त्र व सुहाग सामग्री भी चढ़ाई जाती है। हलषष्ठी माता की कथा सुनने का भी विधान है। पूजन के बाद महिलाएं बड़े-बुजुर्गों से आशीर्वाद लेकर पूरे दिन व्रत रखती हैं।

हल से जोता हुआ कुछ खाना वर्जित

इस दिन माताओं को महुआ की दातुन और महुआ खाने का विधान है। इस व्रत में हल से जोते हुए बाग या खेते में पैदा हुए फल व अन्न खाना वर्जित माना गया है। इस दिन दूध-घी, सूखे मेवे, लाल चावल आदि का सेवन किया जाता है। इस व्रत और पूजन को नवविवाहित स्त्रियां भी संतान प्राप्ति के लिए हैं। माताएं संतान की दीर्घायु व सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत प्राथमिकता से करती है।

-ज्योतिषाचार्य पंडित दीपक पांडेय