कानपुर। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था इसलिए इस पर्व को बड़ी ही श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। कथानुसार भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने 108 जन्म लिए थे। जब 107 जन्म तक माता पार्वती के तप से शिव शंकर प्रसन्न नहीं हुए तो माता ने अपने 108 जन्म के कठोर तप किया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने माता को 108वें जन्म में अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तभी से इस व्रत की शुरुआत हुई। मान्यता है कि इस दिन जो सुहागन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं, उनका सुहाग लंबे समय तक बना रहता है।

हरियाली तीज का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, कहा जाता है कि हरियाली तीज के दिन सावन में भगवान शिव और माता पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। इसका वर्णन शिवपुराण में भी मिलता है। इसलिए इस दिन सुहागिन महिलाएं मां पार्वती और शिवजी की आराधना करती हैं, जिससे उनका दांपत्य जीवन खुशहाल बना रहे। तीज न सिर्फ सुखी दांपत्य जीवन की कामना का पर्व है, बल्कि यह पूरे परिवार के सुखमय जीवन की कामना का भी पर्व है। कई जगह पर अच्छे वर की प्राप्ति के लिए कुंवारी कन्याएं भी इस दिन व्रत करती हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को अपने मिलन की कथा सुनाई थी।

सुहागन स्त्रियां रखती हैं व्रत
हरियाली तीज पर सुहागन स्त्रियां पति की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए व्रत रखती हैैं और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करती हैं। इस दिन विवाहित स्त्रियां सोलह श्रृंगार करती हैं। हाथों में मंहदी लगाती हैं, सावन मास के गीत गाती हैं।