हरितालिका तीज के साथ श्री वराह जयंती भी

भविष्योत्तर पुराण के अनुसार यह व्रत भाद्र शुक्ल तृतीया को किया जाता है। इस दिन हरितालिका तीज के साथ श्री वराह जयंती भी है। इस बार इस दिन तृतीया तिथि का छय है परंतु इस दिन कई शुभ मुहूर्त त्रिपुष्कर योग, सर्वार्थसिद्धि योग, अमृतिसिद्ध योग का संयोग है। इस व्रत को हरतालिका इसलिए कहते हैं कि पार्वती की सखी उसे पिता प्रदेश से हरकर घनघोर जंगल में ले गई थी। हरत अर्थात हरण करना और आलिका अथार्त सखी सहेली। इस दिन साध्य एवं शुभ योग का भी विशेष संयोग है। इस दिन भगवान शिव और पार्वती का विशेष पूजन किया जाता है।

स्त्रियां ऐसे एकत्रित करें पूजा सामग्री

इस व्रत को कुंवारी एवं सौभाग्यवती स्त्रियां ही करती हैं परंतु शास्त्रों में इसके लिए सधवा एवं विधवा सभी स्त्रियां कर सकती हैं। इस व्रत को करने से कन्याओं को मनोकूल वर एवं सौभाग्यवती महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन स्त्रियों को चाहिये कि व्रत का संकल्प लेकर घर को मंडल आदि से सुशोभित कर पूजा सामग्री एकत्रित करें। इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती के समान सुखपूर्वक पति रमण करके शिवलोक को जातीं हैं। इस दिन स्त्रियों को निराहार रहना चाहिए। संध्या समय स्नान करके शुद्ध व उज्जल वस्त्र धारण करके पार्वती व शिव की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजा की सम्पूर्ण सामग्री से पूजा करनी चाहिए।

घर पर ही तीन समय करें पूजन

मन्दिर जाने के स्थान पर घर पर ही प्रातः, दोपहर एवं सांय पूजा की जाती हैं। सांयकाल स्नान करके विशेष पूजा के पश्चात व्रत खोला जाता है। दूसरे दिन व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन सुहाग की पिटारी में सारी वस्तुएं रखकर पार्वती को चढ़ाने का विधान इस व्रत का प्रमुख़ लक्ष्य है। इस दिन शिवजी को धोती एवं अंगोछा चढ़ाया जाता है। यह सुहाग सामग्री किसी ब्राह्मणी, धोती एवं अंगोछा किसी ब्राह्मण को देकर तेरह प्रकार के मीठे व्यंजन सजा कर रुपयों सहित सास को देकर उनका चरण स्पर्श करना चाहिए। इस प्रकार पार्वती एवं शिव का पूजन-आराधन करके कथा सुननी चाहिए। इस व्रत को करने से स्त्रियों को सौभाग्य, सुख शांति की प्राप्ति होती है।

- ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा