कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। जापान में आयोजित एशिया कप में शानदार प्रदर्शन के बाद भारत की जूनियर महिला हॉकी टीम भारत लौट आई है। जूनियर विमेंस एशिया कप हॉकी में भारत को पहली बार खिताब दिलाने वाली इस टीम की खिलाडिय़ों का जगह-जगह स्वागत किया जा रहा है। जूनियर टीम को एशिया कप विजेता बनाने में हरियाणा का अहम रोल रहा। टीम की कैप्टन प्रीती और उपकप्तान दीपिका समेत 5 खिलाड़ी हरियाणा की हैं। इस टूर्नामेंट में भारत ने 40 गोल दागे। इनमें 25 गोल हरियाणा की खिलाडिय़ों के नाम ही रहे। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के आज के अंक में हरियाणा की इन बेटियों के संघर्ष और कामयाबी के खास सफर के बारे में ही बात करते हैं।

पहलवानी की जगह दीपिका ने चुनी हॉकी

हरियाणा की एक और खिलाड़ी दीपिका के पिता बेटी को पहलवान बनाना चाहते थे। इसलिए रेसलिंग के लिए लेकर गए। लेकिन दीपिका को रेसलिंग का खेल रास नहीं आया। जब कोच ने दीपिका से पूछा कि तुम्हें कौन सा खेल खेलना है। उन्होंने हॉकी बताया और यहीं से दीपिका के करियर की शुरुआत हुई।

पिता की पान की दुकान और बेटी का एशिया पर राज

एशिया कप की जीत से सोनीपत की मंजू चौरसिया के घर बधाई देने वालों की भीड़ लग रही है। मंजू के हॉकी खेलने के शौक और जुनून ने मंजू के परिवार को एक अलग पहचान दी। मंजू के पिता वकील भगत ने बताया कि हम बिहार से 1984 में सोनीपत आ गए और यहां पान का खोखा चलाकर परिवार का पालन पोषण करने लगे। उन्होंने बताया कि मंजू जब पांचवीं क्लास में थी तब पहली बार हॉकी स्टीक थामी थी। उसके बाद उसने कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा। हॉकी के प्रति उसका जुनून ऐसा था कि खाना तक छोड़ देती थी। आर्थिक हालातों के कारण मंजू के सामने कई परेशानियां आईं। लेकिन कोच प्रीतम सिवाच ने मंजू का करियर संवारने में अहम रोल निभाया।

महिला विरोधी सोच को तोडक़र आगे बढ़ीं नीलम

किसन पिता ओमप्रकाश की बेटी नीलम को अपने हॉकी का खेल संवारने में कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। जब वो अभ्यास के लिए अपने गांव से हिसार जाती थीं तो प्रोत्साहन से कहीं ज्यादा फब्तियां कसी जाती थीं, लेकिन किसान पिता ओमप्रकाश ने उस पर ध्यान देने के बजाए बेटियों को प्रोत्साहित किया। उनके आने-जाने का इंतजाम किया और हर हालात में साथ दिया। नीलम ने भी निराश नहीं किया। फाइनल मुकाबले में नीलम के निर्णायक गोल से ही भारतीय टीम को जीत मिली।

उधार की हॉकी स्टिक से प्रीती की शुरुआत

हरियाणा की सोनीपत की प्रीती भारतीय टीम की कप्तान हैं और उनके पिता शमशेर सिंह राजमिस्त्री का काम करते हैं। प्रीती को सहेलियों के साथ-साथ खेलते-खेलते हॉकी से प्यार हो गया। प्रीती ने परिवार को बिना बताए उधार की हॉकी स्टिक से खेलना शुरू किया। परिवार के आर्थिक हालातों के चलते प्रीती के सामने कई मुसीबतें आईं। लेकिन प्रीती ने किसी की परवाह किए बिना अपने खेल पर फोकस बनाए रखा। कोच प्रीतम सिवाच का उनके करियर में अहम रोल रहा। 2015 में प्रीती को चोट ने परेशान किया और खेल से 2 साल दूर रखा। लेकिन प्रीती ने फिर से वापसी की और लोगों के लिए वो एक मिसाल बन गई हैं।

जींद की अन्नु रहीं टॉप स्कोरर

जींद की रहने वाली अन्नु ने एशिया कप में गोल की डबल हैट्रिक लगाई। सेमीफाइनल में अन्नु के गोल की मदद से भारत ने जापान को 1-0 से हराकर फाइनल में प्रवेश किया था। फाइनल में भी अन्नु ने एक गोल कर टीम को चैंपियन बनाने में सबसे बड़ा रोल निभाया। अन्नू ने सिरसा में रहते हुए पढ़ाई की और साथ ही हॉकी को चुना। इसके बाद अन्नू का चयन हिसार स्थित साईं में हो गया, जहां से अन्नू ने पीछे मुडक़र नहीं देखा। अन्नु के भाई अमन ने बताया कि उनके गांव में खेल की कोई सुविधा नहीं है, इसलिए उन्होंने अन्नू को सिरसा भेजा ताकि वह खेलों में अपना भविष्य बना सके। अन्नू की रेस की बजाय हॉकी में ज्यादा रुचि देखी तो उन्होंने हॉकी में ही अपना भविष्य बनाने दिया।