- हैलट के बर्न वार्ड में होने वाले इलाज का कड़वा सच

-बर्न वार्ड का डेथ रेट हुआ 100 फीसदी

- पिछले एक महीने में बर्न वार्ड में इलाज कराने वाले सभी मरीजों की हो गई मौत

ankit.shukla@inext.co.in

KANPUR : हैलट हॉस्पिटल के बर्न वार्ड की दुर्दशा को सैकड़ों शिकायतें हुई लेकिन हॉस्पिटल प्रशासन नहीं जागा। अब तो हॉस्पीटल और जीएसवीएम प्रशासन की लापरवाही के चलते इस समय हैलट की बर्न यूनिट 'डेथ यूनिट' बन गई है। ये बात एकदम सच है। आई नेक्स्ट के हाथ लगे खौफनाक आंकड़े इसे प्रूव कर रहे हैं, वहीं यहां की अव्यवस्थाओं की पोल भी खोल रहे हैं। खुद अस्पताल के स्टैट्स के अनुसार यहां इलाज कराने वाले मरीज जिंदा वापस नहीं गए। पिछले एक महीने में दो दर्जन से ज्यादा मरीज हैलट के बर्न वार्ड में काल के गाल में समा गए। लेकिन जो यहां की अव्यवस्थओं से डर कर भाग गए, उनकी जान बच गई।

जितने रुके.सब मर गए

हैलट के बर्न वार्ड में एडमिशन रजिस्टर और मोर्चरी के रजिस्टर पर नजर डालें तो बर्न वार्ड में 24 मई से 24 जून 2014 के बीच कुल 46 पेशेंट भर्ती हुए थे। इसमें से 21 पेशेंट भाग गए यानि 'एब्सकॉण्ड' हो गए। बचे 25 पेशेंट्स की इसी दौरान मौत हो गई। यानि की इन 30 दिनों में हैलट के बर्न वार्ड में जितने भी पेशेंट्स का इलाज हुआ उसमें से एक भी पेशेंट्स को बचाया नहीं जा सका।

डीएम की हिदायत का भी असर नहीं

हैलट के सभी वार्डो में व्यवस्थाएं ठीक रहें इसके लिए सीएमएस, एसआईसी और नर्सिग स्टॉफ जिम्मेदार है। कुछ दिन पहले डीएम डॉ। रोशन जैकब ने वार्डो का इंस्पेक्शन किया था तो इन अधिकारियों को व्यवस्थाएं सुधारने की सख्त हिदायत दीं थी। बर्न वार्ड का हाल देखकर तो वो बहुत भड़कीं थीं। लेकिन व्यवस्थाओं में कोई सुधार हुआ नहीं। इस मामले पर प्रिंसिपल डॉक्टर नवनीत कुमार से शाम को कई बार बात करने की कोशिश की गई लेकिन उनका फोन पहुंच से दूर बताता रहा।

इन कमियों से सौ फीसदी हुआ डेथ रेट

- साफ सफाई नहीं होने से

- एअरकंडीशनर्स लगातार खराब रहने की वजह से

- बिना स्टेरलाइज की गई गाज पट्टी के इस्तेमाल से

- हैलट से दवाईयां नहीं मिलने की वजह से

- अनट्रेंड स्टॉफ से ड्रेसिंग कराने की वजह से

- वार्ड में फैले संक्रमण से

क्या होना चाहिए था क्या है

क्- इंफेक्शन से बचाने के लिए पेशेंट को इंसुलेटेड वार्ड में रखना चाहिए

स्थिति- इंसुलेटेड वार्ड जैसी कोई सुविधा नहीं। पेशेंट्स को क्यूबिकल टाइप वार्ड में रखा जाता है। तीमारदार वार्ड के अंदर बेड पर सोते मिल जाएंगे।

ख्-बर्न पेशेंट के लिए हाई डिपेंडेंसी यूनिट होनी चाहिए

स्थिति- एचडीयू वार्ड जैसी कोई सुविधा मौजूद नहीं

फ्- एडवांस रिस्पायरेटरी सपोर्ट और मॉनिटरिंग सिस्टम में पेशेंट को रखना चाहिए

स्थिति- ऐसी कोई सुविधा बर्न यूनिट में उपलब्ध नहीं

ब्- पेशेंट को सर्कुलेटरी, न्यूरोलॉजिकल और रेनल सपोर्ट मिलना चाहिए

स्थिति- ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं जेआर के भरोसे सारा इलाज

भ्। वार्ड में हर एक घंटे में डेटॉल का पोछा लगना चाहिए। डिस्इनफेक्ट करने को स्प्रे होना चाहिए

स्थिति- हैलट के वर्न वार्ड में लगातार साफ-सपुाई के लिए पूरे कर्मचारी ही नहीं हैं। स्टोर में मैटीरियल ही नहीं

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यहां तो फ्0 फीसदी बर्न की भी नहीं होती रिकवरी

हैलट की बर्न यूनिट में इंफेक्शन इतना ज्यादा है कि यहां पर फ्0 फीसदी तक का नार्मल बर्न भी नहीं बच पाता। इस वार्ड के बाथरुम में सीवर चोक हैं। और मच्छरों व गंदगी की वजह से यह इनफेक्शन और भी तेजी से फैलता है। डॉक्टर्स के मुताबिक सीने और चेहरे पर होने वाले बर्न में पेशेंट को बचाने में काफी मुश्किल होती है लेकिन फ्0 से ब्0 फीसदी तक बर्न पेशेंट्स को लाइफ थ्रेट ज्यादा नहीं होता।

बाहर से ही सारी दवा और ड्रेसिंग मैटीरियल

डीएम की हिदायत का भी हैलट के बावजूद कई वार्डो में दवाएं और गाज पट्टी अभी भी बाहर से ही खरीदवाई जा रही है। बांदा की पेशेंट सीमा मंडे को ही बर्न वार्ड में भर्ती हुई हैं। एक ही दिन में उनसे ख्700 रुपए की दवा और गाज पट्टी मंगवा ली गई। इस बारे में स्टॉफ सिस्टर से बात की गई तो उनका कहना था कि आटो क्लेव मशीन खराब पड़ी हैं इसलिए गाज पट्टी तो बाहर से ही मंगानी पड़ती है।

डीएम ने तलब किए सभी एचओडी

हैलट में व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए अब डीएम डॉ। रौशन जैकब ने कमान संभाल ली है। हॉस्पिटल में मौजूद दवाएं बाहर से मंगाने और साफ सफाई के मामले में उन्होंने गंभीरता दिखाते हुए एक हफ्ते का समय दिया था। बुधवार को डीएम ने मेडिकल कॉलेज के सभी एचओडी को तलब किया है। दोपहर दो बजे उन्होंने सभी हेड ऑफ दि डिपार्टमेंट्स से एक हफ्ते के दौरान किए गए सुधारात्मक कामों के बारे में रिपोर्ट भी मांगी है।

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कई सीनियर डॉक्टर्स ने नाम नहीं छापने की शर्त पर हैलट के बर्न यूनिट के डेथ यूनिट बन जाने के मुद्दे पर कई लॉजिक गिनाए। इनमें सबसे दमदार ये है कि शहर भर के प्राइवेट और दूसरे हॉस्पीटल्स में आने वाले सीरियस बर्न केसेज को भी हैलट को ही रिफर कर दिया जाता है। आसपास के जिलों से भी म्0-70 या 80 परसेंट तक वाले बर्न केसेज यहीं पर एडमिट किए जाते हैं। इनमें अधिकांश की हालत बचने वाली होती ही ही नहीं। देर सबेर ऐसे मरीज दम तोड़ ही देते हैं। फिर फैसिलिटीज कितनी भी हों। पर ये बात कुछ मरीजों के पर तो लागू हो सकती है पर क्00 प्रतिशत डेथ रेट का कारण नहीं हो सकती।

कोट-

बर्न यूनिट में खराब एसी ठीक करा दिए गए हैं। साफ सफाई पर भी खास ध्यान देने के आदेश है। बर्न वार्ड में क्रिटिकल पेशेंट ही भर्ती होते हैं इसलिए कई बार उन्हें बचा पाना मुश्किल होता है।

-डॉ। सुरेश चंद्रा, एसआईसी, एलएलआर हॉस्पिटल