1- ये खाद ड्रम हैं बेहद कमाल
मुंबई के बांद्रा इलाके में कुछ परिवारों ने आपस में मिलकर वेस्ट मैनेजमेंट और अपसाइकलिंग स्टोर का एक खास जुगाड़ निकाला है। इन परिवारों ने खुद ही कुछ ड्रमों का इंतजाम किया। ये ड्रम कोई आम कूड़े वाले ड्रम नहीं है। ये हैं खास खाद ड्रम। इन ड्रमों को बिल्डिंग कम्पाउंड में ही लगवाया गया। ड्रमों में घरों से निकलने वाले गीले और सूख्ो दोनों तरह के कूड़े डालने थे। गीले कूड़े को अलग ड्रम में और सूखे कूड़े को अलग ड्रम में। इस प्रक्रिया को दिन में दो बार दोहरायया जाता है। महीने के आखिर में आपको ड्रमों में इकट्ठा कूड़ा खाद बनकर मिलेगा। अब कूड़े से बनी इस खाद को घरों में पेड़-पौधे उगाने के काम लाया जाता है। ये ड्रम 100 लीटर के होते हैं, जिनका इस्तेमाल 10 से 12 परिवार करते हैं।
ये प्रक्रिया चलाई जाती है : Dirt, Belvedere building,18, Rebello Road, opposite Supari Talao ground, Bandra (W) में।

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2- इन बायोगार्बेजल प्लास्टिक बैग का करें इस्तेमाल
बृहन्मुंबई नगर निगम की ओर से जारी की गई 2014 एन्वायरमेंट स्टेटस रिपोर्ट के अनुसार मुंबई में हर रोज प्लास्टिक का करीब 700 MT कचरा कूड़ेघरों में फेंका जाता है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि लाख कोशिशों के बाद भी प्लास्टिक बैग्स पर पूरी तरह से बैन नहीं लगाया जा सकता। ऐसे में मुंबई में इन प्लास्टिक बैग्स के कचरे को भी खाद में बदला जाता है। शहर की ही एक कंपनी Lucro अपने खास प्लास्टिक बैग्स के कचरे को खाद में बदलने का काम Eco Pro ब्रांड के अंतर्गत करती है।

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ये कैसे करती है काम : जानकारी है कि कॉर्नस्टार्च से बनने वाले इन प्लास्टिक बैग्स में खास तरह का एंजाइम पाया जाता है, जो कूड़े को खाद बनाने की प्रक्रिया में तेजी लाती है। वहीं Lucro के हेड अवजीत पारिख बताते हैं कि जब सामान्य प्लास्टिक 50 से 500 साल लेती है प्राकृतिक तौर पर डी-कम्पोज़ करने में। वहीं उनके इको-प्रो बैग्स, पानी और कार्बन डाइऑक्साइड में महज 240 दिनों से 3 साल के बीच में ही डीकम्पोज हो जाते हैं।  

ये बैग्स तीन साइज में उपलब्ध हैं : 19-inch x 21-inch (64 रुपये में 30 पैकेट), 25-inch x 30-inch (69 रुपये में 15 पैक) और 30-inch x38-inch (79 रुपये में 10 पैक)। इन बैग्स की कीमत आम कचरे वाले बैग्स से 10 से 15 रुपये ज्यादा है।

कहां से खरीदें : Bigbasket.com से।

3- डिर्जेंट की जगह नट्स साबुन का करें इस्तेमाल
डिर्जेंट्स नुकसानदायक क्यों होते हैं। हां, हालांकि डिर्जेंट्स आपके कपड़ों को चमकता हुआ साफ बनाते हैं, लेकिन ये वातावरण के लिए बहुत हानिकारक होते हैं। ये वातावरण को बहुत हद तक प्रदूषित करने के जिम्मेदार हैं। ये डिर्जेंट्स न सिर्फ कपड़ों से साफ होने में बहुत ज्यादा मात्रा में पानी लेते हैं, बल्कि इनमें फॉस्फेट भी होता है जो पानी के जरिए जमीन के नीचे जाकर समुद्र में जलीय जीवन पर भी बहुत बुरा असर डालते हैं।    
ये है विकल्प :
अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि तो फिर कपड़ों को धोने के लिए क्या किया जाए। ऐसे में आप डिर्जेंट की जगह नट्स वाले साबुन का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। रीठा इसका पहला उदाहरण हो सकता है। रीठा में झाग वाले वो तत्व होते हैं, जिनसे आप कपड़ों को साफ बना सकते हैं। अब ये भी बता दें कि क्योंकि रीठा एक कार्बनिक संघटक है, इसलिए ये बायोगार्बेजेबल और गैर-प्रदूषणकारी है। नट्स वाले साबुन के भारतीय निर्यातक इटरनल इंडिया के निदेशक दनेश मेडन कहते हैं कि रीठा से डिर्जेंट की तरह ढेर सारा झाग नहीं बनता, न ही तो इसमें से फूलों जैसे महक आती है, लेकिन रीठा से कपड़े धोने से वह एलर्जी फ्री हो जाते हैं। इसके साथ ही कपड़े कहीं ज्यादा मुलायम हो जाते हैं और उनकी उम्र भी बढ़ जाती है। ये नट सोप पाउडर और साबुन दोनों रूपों में बाजार में उपलब्ध हैं।

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कैसे करें इस्तेमाल : इन नट्स वाले साबुन को मलमल के बैग में रखें। जब भी कपड़ों को धोना हो तो इसे निकाल कर इस्तेमाल करें और वापस इसी में रख दें।

कीमत : नट सोप की कीमत 120 से 140 रुपये प्रति किलो है। रीठा पाउडर की इटरनल इंडिया की ओर से 290 से 400 रुपये प्रति ग्राम।

इसके लिए आप लॉग इन कर सकते हैं : Krya.in (reetha powder)

4 - ई-वेस्ट को जिम्मेदारी के साथ री-साइकिल करवाएं
री-साइकिल ही क्यों। हममें से कइयों के लिए री-साइकिल का मतलब होता है चीजों को पूरी तरह से खत्म कर देना। इनमें बॉटल्स, अखबार और बिजली के कई सामान आते हैं। री-साइकिल का पूरी तरह से ये मतलब नहीं है। पुराने इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिकल आइटम जैसे PC, लैपटॉप, टीवी, मौनिटर्स और अलग-अलग तरह के गैजेट्स। इन सबको ई-वेस्ट कहते हैं। इन चीजों को अगर सही से डिस्पोज नहीं किया गया, तो ये हमारे स्वास्थ्य और वातावरण्ा के लिए काफी खतरनाक होते हैं। कुछ ऐसे आइटम जैसे CRT मॉनिटर्स और बैट्रीस में टॉक्सिक और पारा, सीसा, कैडमियम और क्रोमियम जैसे खतरनाक पदार्थ होते हैं। ये धरती के नीचे पानी, वातावरण और इंसानों के स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित करने में असरकारक होते हैं। यूनाइटेड नेशन्स एन्वायरमेंट प्रोग्राम की ओर से हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत सबसे ज्यादा ई-वेस्ट इकट्ठा करने वाले देशों की श्रेणी में पांचवे नंबर पर आता है। एक अन्य रिपोर्ट में भारत के अंदर मुंबई में सबसे ज्यादा ई-वेस्ट होता है. ऐसे में अब अगर आपके पास कोई खराब इलेक्ट्रॉनिक सामान हो, तो अपनी जिम्मेदारी समझिए और उसे री-साइकिल करवाइए।     

कैसे करें री-साइकिल
इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस के कुछ कॉम्पोनेंट्स ऐसे होते हैं, जिन्हें आसानी री-साइकिल किया जा सकता है, अगर उन्हें सही व्यक्ति के हाथ में दे दें। इसके लिए लाइसेंस धारी ई-वेस्ट डिस्मेंटलर या री-साइकलर से सम्पर्क किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर कर्मा री-साइकलिंग को। इन खराब चीजों को इन्हें देकर इसके बदले आपको भुगतान भी किया जाएगा। इसके अलावा आप मैन्यूफैक्चरर से आप अपने डिवाइस को सही करके वापस देने को भी कह सकते हैं।

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5 - बिजली बचाएं
बिजली बचाकर भी आप इस क्रम में बहुत बड़ी मदद कर सकते हैं। अब बिजली बचाने का यहां सबसे बड़ा ताल्लुक पावर प्लांट्स है. बिजली बनाने के लिए पावर हाउसेस में कोयले और डीज़ल जैसी चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। कभी भी जब आप अपने घर में बेवजह पंखा या लाइट खुली छोड़ देते हैं, या फिर मोबाइल अडॉप्टर को पावर प्वाइंट पर लगाकर छोड़ देते हैं, तो ये बड़ी मात्रा में हवा ओर पानी को प्रदूषित कर रहे होते हैं। ऐसा करके हम अपनी पृथ्वी को गर्त की ओर ढकेल रहे होते हैं। ऐसे में हमें बिजली का काम न होने पर उसे बंद ही रखना चाहिए. हो सके, तो कम से कम बिजली का इस्तेमाल करना चाहिए। घरों में रोशनी के लिए LED बल्बस का इस्तेमाल कर सकते हैं। ये LED बल्बस कम बिजली खपत करते हैं। हालांकि ये कुछ महंगे बैठते हैं, लेकिन इससे आपकी बिजली का बिल भी कम आता है।  

कैसे खरीदें सही LED: इसकी वाट क्षमता हमेशा कम है। इन LED लाइट बल्बस में इनकी चमक में इनको lumens (एल एम) में मापा जाता है। जितना lumens (एल एम) ज्यादा होगा उतनी ही रोशनी ज्यादा होगी।

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