प्राइवेट स्कूल कालेजों के खिलाफ भी हाई कोर्ट में दाखिल हो सकेगी याचिका

इलाहाबाद हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ का महत्वपूर्ण फैसला

prayagraj@inext.co.in

बच्चों को शिक्षा देना राज्य का संवैधानिक दायित्व है. प्राइवेट स्कूल कालेज राज्य के लोकहित के दायित्व निर्वहन में मदद कर रहे हैं. कार्य की प्रकृति इन्हें न्यायिक पुनर्विलोकन शक्तियों के अधीन ले आता है. इस स्थिति में इनके खिलाफ भी हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की जा सकती है. हाई कोर्ट के तीन सदस्यीय जजों की पीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला गुरुवार को दिया है. इस फैसले के दूरगामी प्रभाव होंगे. स्कूल-कॉलेजों के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दाखिल किये जाने से उन पर शिकंजा कसेगा और कोर्ट उनके खिलाफ विधिक कार्यवाही का डंडा भी चला सकेगा.

अभी तक नहीं हो सकती थी याचिका

यह फैसला गुरुवार को चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर, जस्टिस सुनीत कुमार तथा जस्टिस योगेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की पूर्ण पीठ ने संदर्भित वैधानिक बिंदु तय करते हुए दिया है. अभी तक प्राइवेट स्कूल कालेजों के खिलाफ याचिका पोषणीय नही मानी जाती थी, पूर्णपीठ ने इस कानून को पलट दिया है. पीठ ने अपने फैसले में कहा कि कक्षा 6 से स्नातक तक की शिक्षा देने वाले प्राइवेट शिक्षण संस्थान कार्य की प्रकृति के चलते अनुच्छेद 226 की न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्तियों के अधीन आते हैं. इस स्थिति में अनुच्छेद 12 के अन्तर्गत राज्य न होने के बावजूद प्राइवेट स्कूल कालेजों के खिलाफ भी हाईकोर्ट में याचिका दाखिल हो सकती है. कोर्ट ने यह फैसला सेन्ट फ्रान्सिस स्कूल से जुड़े रॉयचन अब्राहम की याचिका पर दिया है और प्रकरण खंडपीठ को तय करने के लिए वापस भेज दिया है.