वन विभाग के दैनिक कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन रोकने पर अपर मुख्य सचिव से मांगा हलफनामा

कोर्ट ने पूछा, प्रमुख वन संरक्षक के वेतन रोकने के आदेश पर क्यों न हो अमल, सुनवाई 31 अगस्त को

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वन विभाग के दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को दिये जा रहे न्यूनतम वेतन को वापस लेने के खिलाफ दाखिल याचिका पर अपर मुख्य सचिव वन विभाग से हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने पूछा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दिया जा रहा न्यूनतम वेतन एक पक्षीय ढंग से क्यों वापस ले लिया गया। कोर्ट ने यही भी पूछा है कि सुप्रीम कोर्ट के 2 फरवरी 2016 के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक का वेतन भुगतान करने के आदेश को लागू किया जाय। कोर्ट ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत सुप्रीम कोर्ट के आदेश सभी प्राधिकारियों पर बाध्यकारी है। जवाब दाखिल करते समय इस बात को ध्यान में रखा जाय। याचिका की अगली सुनवाई 31 अगस्त को होगी।

28 वर्षो से है तैनाती

यह आदेश जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्र ने मोहन स्वरूप व अन्य की याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता पंकज श्रीवास्तव ने बहस की। इनका कहना है कि याचीगण 29 जून 1991 से लगभग 28 वर्षो से वन विभाग में कार्यरत है। वन विभाग के नियमित कर्मचारियों के समान कार्य कर रहे हैं। तीन दशक से कार्यकर रहे दैनिक कर्मियों को अभी नियमित किया जाना बाकी है। याची का कहना है कि कर्मियों को 6ठें वेतन आयोग के अनुसार न्यूनतम वेतन दिया जा रहा था। 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करते हुए मार्च 17 से 18 हजार न्यूनतम वेतन चतुर्थ श्रेणी के बराबर भुगतान किया जाता रहा और अचानक मार्च 18 से बढ़ा हुआ न्यूनतम वेतन यह कहते हुए रोक दिया गया कि 7वां वेतन आयोग केवल नियमित कर्मचारियों पर ही लागू होता है। इसे याचिका में चुनौती दी गयी।

कर्मचारियों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने पुत्तीलाल केस में वन विभाग में कार्यरत दैनिक कर्मियों को न्यूनतम वेतन देने का निर्देश दिया है। क्षेत्रीय वन अधिकारी महोफ वन, पीलीभीत ने वेतन रोकते हुए सरकार से सलाह मांगी है कि 7वां वेतन आयोग का लाभ दैनिक कर्मियों को मिलेगा या नहीं। सरकार का अनुमोदन न होने से बढ़ा हुआ न्यूनतम वेतन रोक दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया न्यूनतम वेतन न देना गलत है।