MMH कॉलेज के लॉ कोर्स की मान्यता निरस्त करने का आदेश रद

बार कौंसिल को निरीक्षण व आंकलन शुल्क कम करने की सलाह

आम लोगों को भी कानून की पढ़ाई का हक

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एमएमएच कॉलेज गाजियाबाद के विधि कोर्स की मान्यता निरस्त करने के बार कौंसिल ऑफ इंडिया के आदेश को रद कर दिया है। कोर्ट ने कौंसिल पर 25 हजार रुपये हर्जाना लगाया है। कोर्ट ने कहा है कि कौंसिल ने नियमों का पालन नहीं किया। मान्यता रद करने सक पहले कॉलेज के प्राचार्य व विश्वविद्यालय के कुलसचिव को नोटिस देनी चाहिए थी। ऐसा नहीं किया गया।

कॉलेज की याचिका पर फैसला

यह आदेश जस्टिस सुधीर अग्रवाल व वीरेन्द्र कुमार की खण्डपीठ ने कॉलेज की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने बार कौंसिल ऑफ इंडिया की विधि शिक्षा के स्टैण्डर्ड को कायम रखने के नाम पर तीन लाख रुपये कॉलेज निरीक्षण व आंकलन शुल्क को विभेदकारी एवं अनुच्छेद 41 व 14 के विपरीत है। कोर्ट ने कहा है कि अनुच्छेद 41 के तहत सभी को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है और यह सरकार का दायित्व है। कोर्ट ने कहा कि दो तरह के लॉ कालेज है। तो दूसरे नाम मात्र की फीस लेने वाले आम लोगों को शिक्षा देने वाले कॉलेज है। बार कौंसिल 5 वर्ष में एक बार निरीक्षण करती है। 40 रुपये फीस लेने व 200 छात्रों वाले कॉलेज को फीस से एक लाख की भी वसूली नहीं हो पाती तो निरीक्षण के नाम पर गरीबों को शिक्षा देने वाले कॉलेजों से तीन लाख मांगना उचित नहीं कहा जा सकता एक प्रकार से बीसीसीआई के उस कार्य से गरीबों को कानून की शिक्षा लेने से वंचित किया जा रहा है। साथ ही मंहगे प्राइवेट कॉलेजों को बढ़ावा देना है।

शिक्षा देने में भेदभाव न किया जाय

कोर्ट ने कहा है कि गरीब व अमीर के शिक्षा अधिकार में भेदभाव न किया जाय। कोर्ट बार कौंसिल को निरीक्षण शुल्क लेने पर पुनर्विचार करने की सलाह दी है और कहा है कि गरीब व आम लोगों को भी कानूनी शिक्षा पाने से वंचित करने के कदम न उठाये जाय।