अधिवक्ता के पिता के पत्र को हाई कोर्ट ने लिया संज्ञान, प्रमुख सचिव से मांगा जवाब

कमिश्नर को सौंपी जांच, 19 को दाखिल करनी होगी रिपोर्ट

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डेंगू और चिकनगुनिया के पीडि़तों के इलाज की व्यवस्था की पोल एक चिट्ठी ने खोल दी है। एक अधिवक्ता की मौत के बाद पिता की तरफ से हाई कोर्ट के जस्टिस को लिखी गई इस चिट्ठी को कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका मान लिया और स्टेट गवर्नमेंट से जवाब मांग लिया है। कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि डेंगू और चिकनगुनिया की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य से जवाब मांगा है। कोर्ट ने इलाहाबाद में डॉक्टरों की लापरवाही और मरीज का सही इलाज न करने की जांच मंडलायुक्त को सौंपी है। आयुक्त 19 दिसम्बर को रिपोर्ट देंगे।

कोर्ट ने तलब किया पूरा डाटा

जस्टिस वीके शुक्ल और जस्टिस एमसी त्रिपाठी की खण्डपीठ ने इस प्रकरण की सुनवाई की। कोर्ट ने प्रमुख सचिव से पूछा है कि ऐसे मरीजों को क्या चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। सरकारी एवं प्राइवेट अस्पतालों में कितने मरीज भर्ती हुए हैं और कितने ठीक हुए हैं। कोर्ट ने खासतौर पर इलाहाबाद जिले की रिपोर्ट मांगी है और आदेश व पत्र की प्रति स्थायी अधिवक्ता संजय कुमार सिंह को देने को कहा है। साथ ही हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी को कोर्ट को सहयोग करने के लिए न्यायमित्र नियुक्त किया गया है। प्रदेश के मुख्य स्थायी अधिवक्ता रमेश उपाध्याय को भी पूरा सहयोग करने को कहा गया है।

दिवाली के दिन हुई थी युवा अधिवक्ता की मौत

मालूम हो कि हाईकोर्ट के अधिवक्ता बीपी मिश्र के अधिवक्ता पुत्र पीयूष मिश्र (उम्र 25 वर्ष) को 27 अक्टूबर 16 को बुखार आ गया। वह कई डॉक्टरों, प्राइवेट अस्पतालों में उपचार के बाद स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल में इलाज पहुंचे। एसआरएन में आपात चिकित्सा विभाग में डॉक्टर मौजूद नहीं थे। दूसरे दिन एक बजे डॉक्टर आए। मरीज की हालत बिगड़ गई। एसआरएन में डायलिसिस नहीं होने के कारण लखनऊ में सहारा अस्पताल गए। उन्होंने भर्ती करने से मना कर दिया। इसके बाद राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया। नेफ्रालॉजी विभाग में जगह न होने के कारण प्राइवेट अस्पताल गए जहां से देर शाम पीजीआई ले जाया गया। पीयूष को वेंटिलेटर पर रखा गया किंतु 30 अक्टूबर को मौत हो गई। इस अव्यवस्था से आहत होकर ही पीयूष के पिता ने न्यायमूर्तियों को पत्र लिखा।