हाई कोर्ट ने क्षैतिज आरक्षण के तहत नियुक्ति को गलत ठहराया

आरक्षण नियमों का पालन न करने पर राज्य सरकार व पुलिस भर्ती बोर्ड पर 2.80 लाख हर्जाना

खाली होने वाले पदों को अगली भर्ती में शामिल करने का निर्देश

ALLAHABAD (16 March): क्षैतिज आरक्षण के नियमों को अपने तरीके से परिभाषित करना राज्य सरकार और पुलिस भर्ती बोर्ड को भारी पड़ गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दरोगा व प्लाटून कमांडर भर्ती-2011 में क्षैतिज आरक्षण नियमों के विपरीत विशेष आरक्षित कोटे के अभ्यर्थियों को केवल सामान्य वर्ग में चयनित करने को अवैध करार दिया है। कोर्ट ने आरक्षण नियमों का पालन न करने पर चयनित प्रति अभ्यर्थी दस हजार रुपए की दर से सरकार और पुलिस भर्ती बोर्ड पर 2.80 लाख हर्जाना भी लगाया है। निर्देश दिया है कि चयन निरस्त करते हुए विशेष कोटे के अभ्यर्थियों को सामान्य व आरक्षित वर्ग में श्रेणीवार समायोजित किया जाए। विशेष कोटे में महिला, पूर्व सैनिक व सेनानी आश्रित अभ्यर्थी हैं जिन्हें क्षैतिज आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है।

अधिकारियों के वेतन से हर्जाना वसूली

यह आदेश जस्टिस सुनीत कुमार ने आशीष कुमार पांडेय व अन्य 28 याचिकाओं को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह को चार हफ्ते के भीतर हर्जाना राशि महानिबन्धक के समक्ष जमा करने का निर्देश दिया है। साथ ही मेरिट सूची के नीचे से पुरुष अभ्यर्थियों को हटाकर श्रेणीवार समायोजन करने को कहा है। समायोजन से जो पद खाली रद जाएंगे वे अगली भर्ती में भरे जायेगे। कोर्ट ने यह भी कहा है कि हर्जाना राशि की वसूली भर्ती बोर्ड के अधिकारियों के वेतन से की जाए। कोर्ट ने चयनित अभ्यर्थियों को समायोजन के बाद प्रशिक्षण के लिए भेजने का भी निर्देश दिया है।

विवादों में दरोगा भर्ती

19 मई 2011 को 3698 दरोगा व 312 प्लाटून कमांडर की भर्ती का विज्ञापन निकाला गया

परिणाम घोषित हुआ तो विशेष कोटे के अभ्यर्थियों को सामान्य वर्ग के कोटे में भर्ती कर लिया गया

यह आरक्षण के 50 फीसदी चयन सिद्धान्त के विपरीत था

इससे आरक्षण 77 फीसद पहुंच गया

कोर्ट ने इसे शासनादेश व सुप्रीम कोर्ट के इन्द्रा साहनी केस के खिलाफ माना

कहा कि महिलाओं की विशेष श्रेणी को सामान्य व आरक्षित वर्ग में चयनित किया जाना चाहिए था

ऐसा न करना अनुच्छेद 162 का उल्लंघन है

महिलाओं को 20 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था है

इसके तहत 740 महिलाओं की भर्ती होनी थी

इसके विपरीत 261 महिलाएं ही उपलब्ध थीं जिसमें 19 पिछड़े वर्ग व एससी की थी

78 को सामान्य, 173 को पिछड़ा वर्ग व जस को एससी में चयनित करना था

इन्हें सामान्य वर्ग में समायोजित कर दिया गया

विशेष कोटे के अभ्यर्थियों को सामान्य में समायोजित करने से आरक्षण 77 फीसद पहुंच गया। यह इंद्रा साहनी केस और शासनादेश के विपरीत है।

-इलाहाबाद हाईकोर्ट