दोनों system की एक झलक

साफ सड़कें, हेल्दी एट्मॉसफियर और परफेक्ट ड्रेनेज, ये नजारा आपको कैंटोनमेंट बोर्ड के अंडर आने वाले उन कैंट एरियाज में देखने को मिलेगा, जहां कम संसाधनों के साथ मैनेजमेंट के जरिए सिटिजंस को बेहतरीन सुविधा दी जाती हैं। वहीं दूसरी ओर सड़कों के किनारे पब्लिक डस्ट बिन से गिरता हुआ कूड़ा, व्यवस्था होने पर भी नालियों में जलता कूड़ा, बरसात में ओवर फ्लो होते नाले और लटके हुए निर्माण कार्य, ये हाल है नगर निगम से जुड़े उन एरियाज के जहां पर्याप्त व्यवस्था होने पर भी मैनेजमेंट भगवान भरोसे ही चल रहा है। दोबारा चुनाव जीतकर मेयर साहब फिर से अपनी पोस्ट पर आ तो लौट आए हैं, लेकिन अब सवाल ये उठता है कि क्या इस बार निगम कैंटोनमेंट की तरह बेहतर बदलाव ला सकेगा?

 

Different है leading body

कैंट एरिया और नगर निगम दोनों ही सिटिजंस वेलफेयर और सिटी सिस्टम को एक बेहतर प्लान देने के लिए बनाए गए हैं, लेकिन इन दोनों में एक बेहद बेसिक और इफैक्टिव डिफरेंस है, जहां एक तरफ कैंटोमेंट बोर्ड मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस के तहत आता है। वहीं दूसरी ओर नगर निगम स्टेट गवर्नमेंट के तहत ही काम करता है। सिर्फ इतना ही नहीं दोनों की पॉलिसीज भी बिल्कुल अलग हैं। नगर निगम अपने अलग एक्ट और रूलिंग के अंडर काम करता है, जबकि कैंटोनमेंट के अमेंडमेंट एक्ट 2006 के तहत तैयार की गई पॉलिसी के तहत अपने क्षेत्र में कार्यरत है। इसके साथ ही नगर निगम में अगर स्टेट गवर्नमेंट की अपोजिशन पार्टी  है तो फिर सिटी वेलफेयर का काम पॉलिटिकल राइवलरी पर बलि चढ़ जाता है।

उधर स्पीडी डिसीजन, उधर लटके प्रोजेक्ट

कैंटोनमेंट बोर्ड अपने आप में मिनी गवर्नमेंट की तरह काम करता है। यानी की उसके  डिसीजन बोर्ड मीटिंग में बोर्ड मेंबर्स की मैज्योरिटी से ही तय किए जाते हैं। महीने में एक बार होने वाली इस मीटिंग में डीएम, क्षेत्रीय विधायक स्टेशन कमांडेंट, वाइस प्रसीडेंट, सेक्रेट्री (आईडीइएस) और कैंट पार्षद शामिल होते हैं। यहां कैंट एरिया में होने वाले नए प्रोजेक्ट्स और टेंडर्स को पास किया जाता है। बोर्ड की एक राय ही फाइनल डिसीजन होता है। जबकि नगर निगम में 60 पार्षदों और मेयर की अध्यक्षता में होने वाली बैठक में कोई रेग्यूलेरिटी ही नहीं है। छह महीने, साल भर में होने वाली इन बैठकों में एक राय ही नहीं बनती और अगर कोई प्रोजेक्ट की चर्चा लटक जाएं तो वो अगली बैठक के लिए खिसक जाती है। इसके अलावा अगर डिसीजन फाइनल भी होता है तो सरकार से बजट सेंशन होने में ही अर्से लग जाते हैं।

ढीला है system  

दोनों ही सिस्टम में अगर तुलनात्मक नजरिए से देखा जाए तो निगम के पास कैंटोनमेंट से कहीं ज्यादा पर्याप्त संसाधन हैं। जहां एक तरफ दून में नगर निगम के पास 1256 सफाई कर्मचारी हैं, वहीं दूसरी ओर कैंटोनमेंट में महज 250 सफाई कर्मचारी काम कर रहे हैं। नगर निगम के अधिकतर काम पेयजल, जल निगम, पीडब्ल्यूडी और एबीडी कर लेता है। जबकि कैंटोनमेंट को अपने हर काम के लिए टेंडर पास कर ठेका देना पढ़ता है। लेकिन जब बात काम करने के तरीके की आती है तो कैंट निगम से कहीं ज्यादा शार्प है। कैंट अपने सीमित कर्मचारियों से आठ घंटे की रेग्यूलर डयूटी लेता है। जहां दिनभर साफ सफाई से लेकर बड़े लेवल तक हर काम किया जाता है। जबकि निगम से कर्मचारी से लेकर अधिकारी घंटों तक गायब रहते हैं। कैंट हर निर्माण कार्य के मैटीरियल की लैब जांच कराता है। जबकि निगम इस मामले में बहुत ही लचीला है। साइट का रेग्यूलर निरीक्षण कैंट बोर्ड प्रेसीडेंट करते हैं, जबकि निगम का निर्माण कार्य सालों तक धूल फांकता है।

High tech है cantonment

हाई टैक जमाने के इस दौर में नगर निगम अपनी कई चीजों को लेकर सदियों पुराने फॉरमेंट में काम करता है। जहां एक तरफ आज सभी सरकारी डिपार्टमेंट्स की वेब साइट्स हैं, वहीं निगम के अपडेट्स सिर्फ सरकारी फाइल्स तक ही सीमित हैं। इस कारण शिकायतकर्ता को अपनी शिकायत दर्ज करवाने के लिए अधिकारियों के दफ्तर के बाहर घंटों इंतजार करना पड़ता है। जबकि कैंटोनमेंट में समाधान की साइट पर हर कैंट नागरिक अपनी शिकायत ऑनलाइन रजिस्टर कराता है और 48 घंटों में समस्या का निवारण भी हो जाता है। इसके अलावा कैंटोनमेंट बोर्ड की अपनी वेबसाइट भी है, जहां बोर्ड की मीटिंग के हर पब्लिक वेलफेयर के डिसीजन अपडेट किए जाते हैं। ऐसे में लोग डायरेक्ट कम्यूनिकेशन में रहते हैं।

'कैंटोनमेंट का काम करने का तरीके बहुत ही स्ट्रेट फॉरवर्ड क्लीयर और टाइमली बाउंड होता है। इसके अलावा सिस्टम में रेग्यूलेरिटी इतनी है कि कम्यूनिकेशन गैप ही नहीं आता। डिसिजंस हमारे होते हैं। इसलिए उनका इंप्लीमेंट भी आराम से हो जाता है.'

-भूपेंद्र कंडारी, जनरल सेक्रेट्री, ऑल इंडिया कैंटोनमेंट बोर्ड