नैनीताल: दुष्कर्म मामले में सजायाफ्ता आसाराम बापू को नैनीताल हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने ऋषिकेश के मुनि की रेती में वन भूमि पर आश्रम द्वारा किए गए कब्जे को अवैध करार देते हुए हटाने के आदेश पारित किए हैं। कोर्ट ने इस मामले में स्टे को खारिज कर दिया है। इधर, एकलपीठ के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अपील पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। मामले की अगली सुनवाई 7 जनवरी को होगी।

अपर मुख्य वन संरक्षक व नोडल अधिकारी राजेंद्र कुमार ने 23 फरवरी 2013 को डीएफओ नरेंद्र नगर को शासकीय पत्र भेजा, जिसमें स्टीफन डंगी व तृप्ति डंगी रेन फॉरेस्ट हाउस नीरगढ़ टिहरी गढ़वाल के शिकायती पत्र का उल्लेख किया गया था। पत्र में शिकायत की गई थी कि आसाराम बापू आश्रम के कर्मचारियों द्वारा अनाधिकृत रूप से उनकी भूमि पर लीज संख्या-59 पर दीवार बना दी गई है। पत्र में कहा था कि यह लीज स्वामी लक्ष्मणदास के नाम दी गई थी, जिसका नवीनीकरण नहीं हुआ तो लीज कालातीत हो गई। नियमानुसार वन विभाग को इस भूमि पर कब्जा लेना चाहिए, इसके बाद नौ सितंबर 2013 को तत्कालीन डीएफओ डॉ। विनय कुमार भार्गव ने आसाराम आश्रम हरिपुर कलां रायवाला, तहसील ऋषिकेश के संचालक अशोक कुमार गर्ग को लीज संख्या-59 को खाली कराने के लिए अंतिम नोटिस जारी किया। वन विभाग के नोटिस को आसाराम आश्रम की ओर से याचिका दायर कर चुनौती दी गई तो हाईकोर्ट की एकलपीठ ने कार्रवाई स्टे कर दी। इधर शिकायतकर्ता स्टीफन की ओर से आसाराम आश्रम की याचिका पर पक्षकार बनाने के लिए हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की, कोर्ट ने उसे पक्षकार बनाते हुए शपथ पत्र पेश करने को कहा। शपथ पत्र के साथ स्टीफन द्वारा 20 साल तक दी गई 1950 की वास्तविक लीज भी पेश की। शुक्रवार को न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान माना कि आश्रम द्वारा वन विभाग की अनुमति के बिना गैर वन गतिविधियां संचालित कर रहा है। एकलपीठ ने वन विभाग के वन भूमि खाली करने के आदेश को प्रभावी बनाते हुए स्थागनदेश संबंधी आदेश निरस्त कर दिया। एकलपीठ के इस आदेश के खिलाफ शुक्रवार को ही आश्रम की ओर से विशेष अपील दायर की गई है, जिस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की खंडपीठ ने राहत देने से इनकार करते हुए अगली सुनवाई सात जनवरी नियत कर दी है।

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