रांची : नौकरी से निकाले गए 42 दारोगाओं को बहाल करने का रास्ता साफ हो गया है। झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस एचसी मिश्र व जस्टिस दीपक रौशन की अदालत ने एकलपीठ के आदेश को बरकरार रखते हुए गुरुवार को सरकार की अपील याचिका को खारिज कर दिया। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा था कि निकाले गए 42 दारोगाओं की इसमें कोई गलती नहीं है, इसलिए इनको भविष्य की नियुक्ति में समायोजित किया जाए। इसी आदेश को राज्य सरकार ने चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

2013 में रिवाइज्ड लिस्ट

दरअसल, वर्ष 2013 में तत्कालीन डीजीपी ने आदेश निकालकर संशोधित सूची जारी करने को कहा था। इसमें कहा गया था कि अभ्यर्थियों की नियुक्ति प्राथमिकता (प्रिफरेंस) के आधार पर की गई है, जबकि मेधा के आधार पर नियुक्ति होनी चाहिए। इसलिए पुनरीक्षित सूची निकाली जाए। इसके बाद संशोधित सूची जारी की गई। इसमें नौकरी कर रहे 42 दारोगाओं को बर्खास्त कर दिया गया और इनकी जगह पर नए 42 अभ्यर्थियों की नियुक्ति कर दी गई। इसके बाद निकाले गए दारोगाओं ने वर्ष 2014 में सरकार के आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। सुनवाई के बाद एकलपीठ ने माना कि इनकी नियुक्ति में भ्रामक तथ्य नहीं दिया गया है। उनका चयन गृह विभाग की ओर से ही किया गया है, इसलिए इन्हें पद पर बहाल किया जाए। इसके बाद सरकार ने एकलपीठ के आदेश को खंडपीठ में चुनौती दी।

384 पदों के लिए विज्ञापन

सुनवाई के दौरान सरकार की ओर अदालत को बताया गया कि मार्च 2008 में 384 पदों पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला गया था। इसके जरिए कंपनी कमांडर, दारोगा और सार्जेट मेजर के पद पर नियुक्ति होनी थी। सभी रिक्त पदों पर नियुक्ति कर ली गई है। इसलिए निकाले गए दारोगाओं को समायोजित नहीं किया जा सकता है। इस दौरान अभ्यर्थियों की ओर से अधिवक्ता नागमणि तिवारी ने पक्ष रखा।

अधिक नंबर वालों की भी याचिका खारिज

सरकार द्वारा जब 42 दारोगाओं को नौकरी से निकला दिया गया तो उन्होंने एकलपीठ में याचिका दाखिल की। इसी दौरान इनसे ज्यादा अंक पाने वाले करीब 175 अभ्यर्थियों ने भी हाई कोर्ट की शरण ली थी। एकलपीठ ने माना कि इनकी भी नियुक्ति होनी चाहिए, लेकिन अदालत ने निकाले गए 42 दारोगाओं को प्राथमिकता के आधार पर समायोजन करने का आदेश दिया। इसके बाद इन लोगों ने खंडपीठ में भी हस्तक्षेप याचिका दाखिल की थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया।