Holashtak 2020: 3 मार्च से लेकर 9 मार्च तक शुभ कार्य निशेध होते हैं। इस दौरान शुभ कार्य करने पर अपशगुन होता है।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस जातक का चंद्रमा पीड़ित अवस्था में हो,नीचस्थ अथवा त्रिक भाव में हो ऐसे जातकों को इस समय में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।ज्योतिष के अनुसार इस पूर्णिमा तिथि से पूर्व के आठ दिनों में मष्तिष्क में कुछ दुर्वलता एवं बेचैनी बढ़ती है इसके साथ दुःख अवसाद और निराशा का प्रभाव बढ़ने लगता है।इन आठ दिनों में सोलह संस्कार पूणतया वर्जित है केवल प्रसूति निवारण कर्म, जात कर्म, अंतिम संस्कार किया जा सकता है। इन दिनों विवाह मुहूर्त एवं अन्य संस्कारों के मुहूर्त नहीं होते हैं।

होलाष्टक क्यों माने जाते हैं अशुभ

पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि होलाष्टक के दिनों में देवाधिदेव महादेव भगवान शिव के बाईं ओर आद्याशक्ति रूपादेवी पार्वती भी बैठकर उनके सानिध्य में आनंद का अनुभव करतीं हैं।विश्व विनाशक सभी देवों तथा सभी देवों में अग्रणी पूज्य गणपति जी भी अपनी दोनों पत्नियों रिद्धि- सिद्दी के साथ प्रेमालाप में आनंदित हो जाते हैं।ऐसा भी माना जाता है कि भगवान शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेव को शिवजी ने फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था क्योंकि कामदेव प्रेम के देवता होने के कारण संसार में शोक की लहर फैल गई तब उनकी पत्नी रति ने शिवजी से छमा याचना मांगी तत्पश्चात शिवजी ने कामदेव को पुनर्जीवित करने का आश्वासन दिया।ऐसी भी मान्यता है कि एक पौराणिक कथा के अनुसार होलाष्टक से धुलण्डी तक के आठ दिन तक प्रहलाद के पिता राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को भगवान विष्णु से मोहभंग करने के लिए अनेक प्रकार की यातनायें दीं थीं इसके बाद प्रहलाद को जान से मारने के भरसक प्रयास भी किये थे परंतु प्रत्येक बार भगवान अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा कर उसे बचा लेते थे।आठ दिन के बाद जब हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को खत्म करने के लिए अपनी बहन होलिका को अग्नि स्नान में साथ बैठाकर भस्म करने की योजना बनाई।तय समयानुसार जब होलिका ने प्रहलाद को गोद में बैठाकर अग्निस्नान शुरू किया तुरन्त ही भगवान की ऐसी कृपा हुई कि होलिका तो जल गई मगर प्रहलाद का बालबांका भी नहीं हुआ।

विशेष योग में काम देव की पूजा करें तो मिलेगा दामपत्य जीवन का सुख

इस प्रकार होलिका दहन से पहले के आठ दिनों को अशुभ समझा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा से पहले अष्टमी को चंद्रमा,नवमी को सूर्य,दशमी को शनि,एकादशी को शुक्र,द्वादशी को गुरु,त्रियोदशी को बुद्ध,चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा होलिका दहन के समय को राहु केतु का उग्र प्रभाव होता है।इस बार कई शुभ योग होने के प्रेमी युगल प्रभु दर्शन कर,कामदेव को प्रसन्न कर अपने प्रेम तथा सफल दाम्पत्य जीवन की कामना एवं प्रार्थना इस विशेष योग में करें लाभ होगा।

होलाष्टक पूजन

होलाष्टक के दिन से होलिका पूजन करने के लिए होलिका बाले स्थान को साफ कर सूखे उपले, सुकी लकड़ी, सुखी घास व होली का डंडा गाड़ देते हैं, डंडा गाड़ देने के पश्चात उसका पूजन किया जाता है। इस दिन आम की मंजरी तथा चंदन मिलाकर खाने का बड़ा महत्व है।

- ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा