बरेली (ब्यूरो) ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा के अनुसार चतुर्दशी तिथि क्षय होने के कारण इस बार होलाष्टक आठ दिन की बजाय सात दिन ही रहेंगे। वहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होलाष्टक के दौरान कोई भी शुभ मांगलिक कार्य करना निषेध माना गया है।

नहीं होते हैं संस्कारों के मुहूर्त

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस जातक का चंद्रमा पीडि़त अवस्था में हो, नीचस्थ अथवा त्रिक भाव में हो ऐसे जातकों को इस समय में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। पूर्णिमा तिथि से पूर्व के आठ दिनों में मष्तिष्क में कुछ दुर्बलता एवं बेचैनी बढ़ती है। इसके साथ दु:ख अवसाद और निराशा का प्रभाव बढ़ने लगता है। इन आठ दिनों में सोलह संस्कार पूर्णतया वर्जित है केवल प्रसूति निवारण कर्म, जात कर्म, अंतिम संस्कार किया जा सकता है। इन दिनों विवाह मुहूर्त एवं अन्य संस्कारों के मुहूर्त नहीं होते हैं।

होलाष्टक क्यों माने जाते हैं अशुभ

पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि होलाष्टक के दिनों में देवाधिदेव महादेव भगवान शिव के बाईं ओर आद्याशक्ति रूपादेवी पार्वती भी बैठकर उनके सानिध्य में आनंद का अनुभव करतीं हैं। विश्व विनाशक सभी देवों तथा सभी देवों में अग्रणी पूज्य गणपति जी भी अपनी दोनों पत्‍ि‌नयों रिद्धि-सिद्धी के साथ प्रेमालाप में आनंदित हो जाते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेव को शिवजी ने फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था।

आठ दिन तक प्रह्लाद को यातनाएं

कामदेव प्रेम के देवता माने जाते हैं इसके कारण संसार में शोक की लहर फैल गई, तब उनकी पत्‍‌नी रति ने शिवजी से क्षमा याचना की तत्पश्चात शिवजी ने कामदेव को पुनर्जीवित करने का आश्वासन दिया। ऐसी भी मान्यता है कि एक पौराणिक कथा के अनुसार होलाष्टक से धुलण्डी तक के आठ दिन तक प्रह्लाद के पिता राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को भगवान विष्णु से मोहभंग करने के लिए अनेक प्रकार की यातनायें दीं थीं। इसके बाद प्रह्लाद को जान से मारने के भरसक प्रयास भी किये थे, परंतु प्रत्येक बार भगवान अपने भक्त प्रह्लाद को बचा लेते थे।

होलिका जली लेकिन प्रह्लाद बचे

आठ दिन के बाद जब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को खत्म करने के लिए अपनी बहन होलिका को अग्नि स्नान में साथ बैठाकर भस्म करने की योजना बनाई। तय समयानुसार जब होलिका ने प्रह्लाद को गोद में बैठाकर अग्निस्नान शुरू किया। तुरन्त ही भगवान की ऐसी कृपा हुई कि होलिका तो जल गई मगर प्रह्लाद का बालबांका भी नहीं हुआ।

राहु केतु का प्रभाव होता है उग्र

होलिका दहन से पहले के दिनों को अशुभ समझा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा से पहले अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रियोदशी को बुद्ध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा होलिका दहन के समय को राहु केतु का उग्र प्रभाव होता है।

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