कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। Holika Dahan 2023 : होली का त्योहार देश भर में पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है। होली से ठीक एक दिन पहले फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सूर्यास्त के बाद एक निश्चित मुहूर्त या समय पर होलिका दहन किया जाता है। इस साल होली 8 मार्च दिन बुधवार को मनाई जाएगी और होलिका दहन 7 मार्च दिन मंगलवार को मनाया जाएगा। होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी पुकारते हैं। शास्त्रों के मुताबिक होलिका दहन से जीवन से नकारात्मकता दूर होती है। होलिका की आग में अपने अंदर की नकारात्मकता, बुराई व अहंकार को जलाने का संकल्प लेने से जीवन में सुख- शांति बनी रहेगी। होलिका दहन बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का प्रतीक है।

होलिका दहन का महत्व
होलिका दहन से करीब 10 दिन पहले लकड़ी के लठ्ठे, कंडे व अन्य वस्तुओं को एक जगह पर एकत्र कर होलिका का रूप माना जाता है। होलिका दहन करने से उसकी विधिवत पूजा की जाती है। होलिका दहन समय लोग अग्नि की परिक्रमा करते हैं। इसके साथ ही उस पवित्र आग में गोबर से बने बल्ले या फिर बड़गुल्ले डालते हैं। होलिका दहन के दाैरान किसान फसल के नए दाने आग में डालते हैं। इसके बाद ही नया अन्न खाना शुरू करते हैं। कहते हैं कि ग्रह पीड़ा होने पर घी में भीगी हुयी दो लाैंग, एक बताशा और एक पान के पत्ते पर रखकर होलिका में डाल देना चाहिए। इसके बाद दूसरे दिन उसकी राख शरीर पर लगाकर स्नान करने से ग्रह पीड़ा से मुक्ति मिलती है।

होलिका दहन का इतिहास
मान्यता है कि जब असुर हिरणकश्यप की बहन होलिका भतीजे भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद को गोद में लेकर लकड़ियों के ढेर पर यह सोचकर बैठती है कि वह जल जाएगा। हालांकि वहां पर इसका उलटा हो गया और होलिका ही आग में जल कर भस्म हो गई और विष्णु भक्त प्रह्लाद सुरक्षित बच गया। माना जाता है कि स्वयं भगवान ने प्रह्लाद को असुर होलिका से बचाया था और इस प्रकार होलिका दहन को होलिका के पुतले को जलाकर मनाया जाता है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि होली के दिन द्वापर युग में विष्णु अवतार श्री कृष्ण ने पूतना राक्षसी के विषयुक्त दुग्धपान के समय राक्षसी पूतना का वध कर दिया था। वह समय फाल्गुन मास की पूर्णिमा का था।