नि:संतान महिला डायन

ऐसा भी माना जाता है कि एक विधवा या नि:संतान महिला जरूर डायन हो जाती है, क्योंकि उसका मन पति और पुत्र के लिए तरसता रहता है। कुछ लोग यह भी कहते हुए पाए जाते हैं कि फलां महिला ने डायन विद्या में एक्सपर्ट होने के लिए अपने पति की जान ली होगी। यह गलतफहमी है कि किसी भी बीमारी के पीछे दो ही कारण होते हैं- भूत और डायन। यानी, डायन भूत को भेजती है, तो वह वार करता है।

प्रिय व्यक्ति की हत्या जरूरी

वहीं पर नई महिलाओं को इस शर्त पर डायन विद्या सिखाई जाती है कि अगर वह गोपनीयता भंग करती हैं, तो मर जाएंगी। विद्या सीख लेने के बाद अपने किसी प्रिय व्यक्ति को मारकर वह इस विद्या की एक्सपर्ट होने का एक तरह से सर्टिफिकेट हासिल कर लेती है। डायन के शिकार लोगों का उपचार करनेवाले पुरुष को ओझा तथा महिला को गुनिया कहते हैं।

ऐसे महिलाएं बना दी जाती हैं डायन

आम तौर पर किसी महिला को वैमनस्य या संपत्ति हड़पने के विचार से भी डायन कहा जाने लगता है, जिसकी पुष्टि ओझा कहे जानेवाले पुरुष या गुनिया कही जानेवाली औरत द्वारा कराई जाती है। इसके बाद शुरू हो जाता है अत्याचारों का सिलसिला। किसी महिला को डायन बताने के पीछे जो कारण है, वे इस प्रकार हैं- भूमि और संपत्ति विवाद, अंधविश्वास, अशिक्षा, जागरूकता एवं जानकारी का अभाव, यौन शोषण, भूत-प्रेत, ओझा-गुणी पर विश्वास, आर्थिक स्थिति का ठीक न होना, व्यक्तिगत दुश्मनी, स्वास्थ्य सेवा का अभाव।

नहीं खत्म हो रही डायन-बिसाही प्रथा

'डायन' के नाम पर न जाने कितनी महिलाओं को मौत के घाट उतारा जा चुका है या उन पर अमानवीय यातनाओं का कहर बरपाया गया है। अशिक्षा और अज्ञानता के माहौल में जड़ जमा चुकी डायन-बिसाही प्रथा खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। एक एनजीओ द्वारा तैयार एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2001 से 2012 तक पूरे स्टेट में डायन-बिसाही के मामले में 1312 महिलाओं को मौत के घाट उतार दिया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, स्टेट में 176 महिलाओं को डायन-बिसाही के नाम पर टॉर्चर किया जा रहा है। इसके सैकड़ों मामले स्टेट के डिफरेंट थानों में दर्ज हैं।

डायन बता कर 522 की हत्या

हालांकि, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, सिर्फ साल 1991 से 2000 तक 522 लोगों की हत्या डायन-बिसाही के आरोप में की गई है। इनमें पलामू, गुमला, लोहरदगा, संथाल परगना, चाईबासा, सरायकेला-खरसावां, खूंटी, रांची के आस-पास के इलाके में हुई हत्याएं ज्यादा हैं। पिछले 13 साल के दौरान डायन-बिसाही मामले में रांची में 124, चाईबासा में 109, गुमला में 89 तथा लोहरदगा में 109 मौतें हुई हैं। गांवों में डायन, भूत-प्रेत, ओझा-गुणी आदि के प्रति कभी खत्म न होनेवाला अंधविश्वास कायम है.  यह अंधविश्वास ग्रामीणों की मानसिकता पर इस कदर हावी है कि वे इसके आगे कुछ और सोच नहीं सकते। इसकी वजह यह है कि स्टेट की आबादी का लगभग 28 परसेंट हिस्सा गरीब और शोषित जनजातियों, 12 परसेंट अनुसूचित जातियों का है। टोटल लिटरेसी रेट 1951 में 13 परसेंट था, जो 2001 में 54 परसेंट तक जा पहुंचा। इनमें दो-तिहाई पुरुषों की तुलना में केवल 40 परसेंट महिलाएं साक्षर हैं।

'डायन' कौन?

लोगों में व्याप्त अंधविश्वास के अनुसार डायन एक ऐसी महिला होती है, जो अलग-अलग तरीकों से इंसानों को मार डालती है और मानो उन्हें खा जाती है। ऐसा समझा जाता है कि डायन कही जानेवाली महिला के पास अलौकिक शक्ति होती है, जो उसे प्रेत-साधना से हासिल होती है। डायन-बिसाही को लेकर सोसाइटी में तरह-तरह की गलतफहमियां फैली हुई हैं। अंधविश्वासी ऐसा मानते हैं कि कृष्ण पक्ष अमावस्या की रात में ऐसी महिलाएं श्मशान घाट पर जमा होती हैं। वहां वे निर्वस्त्र होकर कमर की चारों ओर झाड़ू लपेट लेती हैं तथा मंत्रों का च्च्चारण करते हुए नृत्य करती हैं।

आखिर क्या है उपाय?

डायन-बिसाही की प्रॉब्लम को दूर करने के लिए आखिर क्या उपाय किया जा सकता है? अगर सवाल ईमानदार है, तो जवाब हो सकता है कि इस संबंध में लोगों को जागरूक करना भी जरूरी है। सोसाइटी में गहरी जड़ जमा चुके इस अंधविश्वास व डायन के नाम पर महिलाओं पर किए जानेवाले अत्याचार को सोसाइटी से दूर किए जाने के लिए सोशल एक्टिविस्ट्स, ग्रुप्स को आगे आना होगा। डायन-बिसाही की आड़ में किसी निर्दोष, बेसहारा, विधवा और कमजोर महिला की हत्या न हो, तभी हम मानवीय समाज की कल्पना कर सकते हैं।

ये अब दूसरों के लिए मिसाल हैं

छुटनी महतो : सरायकेला-खरसावां डिस्ट्रिक्ट की महताइनडीह की रहनेवाली छुटनी आज डायन प्रथा से प्रताडि़त महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रही है। 1999 में छुटनी की शादी धनंजय महतो के साथ हुई थी.  जब उसकी भाभी प्रेग्नेंट हो गई, तब छुटनी ने कहा था कि बेटा होगा, पर बेटी हुई। एक दिन वह बीमार हो गई। परिजनों ने डायन का आरोप लगाकर छुटनी को प्रताडि़त करना शुरू कर दिया। अशिक्षित छुटनी महतो को गांव वालों ने मूत्र पिलाया।

बेसहारा महिलाओं का सहारा

पेड़ से बांधकर पीटा और अर्धनग्न कर गांव की गलियों में घसीटा। छुटनी भागकर अपने मायके चली गई। अब वही छुटनी दूसरी कमजोर व बेसहारा महिलाओं का सहारा बन गई है। किसी भी महिला के  प्रताडि़त होने की इनफॉर्मेशन मिलते ही वह अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ स्पॉट पर पहुंचकर लोगों को पहले समझाती है। नहीं मानने पर अत्याचारी को सलाखों के पीछे भिजवाने में कोई कसर नहीं छोड़ती। आज वह सरायकेला के बीरबांस पंचायत के भोलाडीह में संचालित पुनर्वास केंद्र की संयोजिका है।

अंजलि : अंजलि को तोरपा में आजकल लोग आदर्श मानते हैं। तोरपा की रायशिमला पंचायत की राय शिमला गांव में रहनेवाली अंजलि का नामकरण किसी ने नहीं किया, बल्कि उसका नामकरण उसने खुद किया। दरअसल, अंजलि के माता-पिता वेस्ट बंगाल में ईंट भट्ठे में काम करते थे। अंजलि का जन्म वहीं ईंट-भट्ठे में हुआ। अंजलि को गांव लाया गया, तो गांव के ग्रामीण उसे डायन कहने लगे। उसकी शक्ल कोई नहीं देखना चाहता था। आज वह 35 साल की हो गई है, पर अब तक उसका नामकरण संस्कार नहीं हो पाया है। अंजलि ने खुद अपना नाम रखा और ऐसी महिला और युवतियों की सहायता के लिए जुट गई, जिसे प्रताडि़त किया जाता था।

सुगिया नायक : हटिया घासीटोला की रहनेवाली सुगिया नायक आज मुहल्ले में मिसाल बनी हुई है। झोपड़पïट्टी में रहनेवाली सुगिया की चाची को लोगों ने डायन-बिसाही कहकर प्रताडि़त करना शुरू कर दिया। सुगिया से चाची की पीड़ा सहन नहीं हुई। उसने इस कुरीति को मिटाने का फैसला कर लिया। वह गांव की शक्तिशाली पंचायत के सामने दुर्गा बनकर खड़ी हो गई। इसके बाद उसने शादी रचा ली। सुगिया नायक ने शादी के बाद ससुराल में भी ऐसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी। उसे जहां भी ऐसे मामले की भनक मिलती है, वह वहां जाकर प्रताडि़त महिला की मदद करती है।

पूनम टोप्पो : पूनम टोप्पो कहती हैं- तब मेरी उम्र महज छह साल रही होगी। गांव के लोगों ने मेरी भोली-भाली दादी को डायन करार दे दिया था। जब मैं स्कूल जाती या गांव की गलियों से निकलती, तो मेरी बचपन की सहेलियां, परिचित भी मुझसे दूर भागते थे.  पूनम ने इस कुप्रथा से लडऩे की हिम्मत जुटाई और लड़ाई लड़ी। पूनम ने न सिर्फ अपनी दादी पर लगे आरोपों को एक सिरे से खंडित किया, बल्कि गांव ही नहीं, पूरे देश में इस कुप्रथा को खत्म करनेवाली महिलाओं में से एक बनी। पूनम टोप्पो अब गांव में सिर ऊंचा कर घूमती हैं। महिला, पुरुष या वैसे लोग, जो डायन प्रथा की कुरीतियों में दबकर प्रताडि़त होने का काम करती हैं, उन्हें सही रास्ता दिखाती हैं। हटिया के नया भुसूर की पूनम सच में लोगों के लिए मिसाल बन गई हैं।

आज release हो रही है 'एक थी डायन'

साइकोलॉजिकल हॉरर पर बेस्ड मूवी 'एक थी डायन' फ्राइडे को इंडियन सिनेमा हॉल्स में रिलीज हो रही है। इसमें 'डायन' के वजूद में होने या नहीं होने के रहस्य को बरकरार रखते हुए उसके इर्द-गिर्द फिल्म की पूरी कहानी घूमती है। बोबो नामक मशहूर मैजीशियन के मन में अजीब सी उथल-पुथल मची रहती है, जिसके बारे में उसकी गर्लफ्रेंड तमारा को पता नहीं रहता है। लगातार भ्रम की स्थिति होने के कारण उसके पास साइकियाट्रिस्ट की हेल्प लेने के अलावा कोई उपाय नहीं रहता है। पता चलता है कि एक डायन ने उसकी फैमिली को बर्बाद कर दिया था। साथ ही उसे भी लगातार टेंशन देने की धमकी दी थी। जब बोबो अपने कॅरियर के टॉप पर रहता है, तो लिसा दत्ता नामक महिला की उसकी जिंदगी में एंट्री होती है। बोबो इस बात को लेकर आश्वस्त रहता है कि वह डायन है। बोबो के इर्द-गिर्द पूरी कहानी आगे बढ़ती है।