बार-बार नाल निकालने और लगाने की वजह से घोड़ों के सुम में घाव हो जाते हैं और कभी-कभी वो लंगड़े तक हो जाते हैं.

काले घोड़ों की तलाश में हम राजधानी दिल्ली के पूर्वी इलाक़े गौतमपुरी पहुंचे, जहां एक तबेले में हमें एक साथ दसियों काले  घोड़े दिखाई दिए. यहां हमारी मुलाकात हुई काले घोड़े के मालिक बड़ा से, जो अपने घोड़े पर पुणे के आगे सतारा तक हो आए हैं.

वे बताते हैं कि एक दिन में वे चार नाल तक बेच देते हैं. नाल खरीदने वाले ‘500 भी दे देता है, 50 भी दे देता है. 100 भी दे देता है. हम चार नाल जेब में रखते हैं. चार नाल बिक जाती हैं, तो नई लगा देते हैं. ग्राहक को तो पैर के सामने ही निकालकर देंगे. जब ग्राहक चला जाएगा तो हम चार नाल ठोकेंगे और सीधे अपने घर आ जाएंगे. फिर दोबारा ले जाएंगे.’

नाल जो करती है घोड़े की किस्मत ख़राब?

घोड़ेवाले राजू के मुताबिक़ लोग उन्हें नाल के एवज में मोटा पैसा देते हैं तो वो कुबूल कर लेते हैं.

बड़ा ने इस बात से इनकार किया कि बार-बार नाल बदलने से  घोड़े का सुम खराब होता है. उनके मुताबिक़ घोड़े के सुम हमारे नाखून की तरह हैं, ‘चाहे जितना काट लो. बढ़ता रहेगा तो दुख देगा. हम पर रेत छुरी सब है, उससे सेट कर लेते हैं.’

बड़ा के मुताबिक़ लोग उनसे अपने फ़ायदे के लिए नाल लेते हैं.

दिल्ली के काले घोड़े वाले

2010 में हुए कॉमनवैल्थ खेलों के दौरान एकत्रित आंकड़ों के मुताबिक अकेले दिल्ली में 54 काले घोड़े थे.

दिल्ली में काले घोड़े पालने वालों का अलग समुदाय है, जो लदाई के काम के अलावा नाल बेचकर जीविका चलाते हैं. आमतौर पर ये घोड़ेवाले ज़्यादातर ग़रीब और अनपढ़ हैं. औसतन ये लोग एक दिन में पैदल या अपने घोड़ों पर चलकर 50 से 70 किलोमीटर तक दूरी तय करते हैं और नाल बेचकर 400 से 500 रुपए तक रोज़ कमा लेते हैं. हालांकि शनिवार और मंगलवार को उनकी आमदनी बाक़ी दिनों के मुक़ाबले ज़्यादा होती है क्योंकि इन दिनों नालें खूब बिकती हैं. घोड़ा मालिक अमूमन एक दिन में चार-पांच बार तक नाल निकालकर बेचते हैं. इस समुदाय के लोगों को पारंपरिक दवाओं की ख़ासी जानकारी होती है, मगर नाल लगाने-निकालने को लेकर ये तक़रीबन अनजान हैं. आमतौर पर घोड़े की एक नाल हफ़्ता-10 दिन तक चलती है और इस दौरान घोड़ा सौ से 200 किलोमीटर तक चल लेता है. इसके बाद यह घिस जाती है.

‘इंसान शनि के लिए लेता है, कोई कुछ करा देता है, इसके लिए लेता है. नजर नहीं लगती, बच्चा नहीं डरता. रोज़गार के भी काम आती है. बाबा लोग यही कहते हैं कि ये काम आती है. तभी तो लोग ले रहे हैं.’

एक नाल 500 रुपए में!

बड़ा के अलावा गौतमपुरी में हमें कई घोड़े वाले मिले, जिनकी रोज़ी-रोटी लोगों के विश्वास के भरोसे चलती है कि घोड़े की नाल सौभाग्य का प्रतीक है.

यहां मौजूद राजू घोड़ेवाले को अपने काले घोड़ों से बहुत प्यार है. उनके घर की रोज़ी-रोटी इन्हीं घोड़ों पर मुनहसर है. राजू ने भी कुबूल किया कि लोगों के विश्वास के चलते वे भी कभी-कभी लालच में आ जाते हैं.

राजू कहते हैं, ‘आदमी हमसे नाल लेता है तो वो अपने भरोसे लेता है और हम अपने भरोसे देते हैं. नाल तो वही काम आती है, जो अपने आप गिर जाती है. मगर आदमी पैसे के ज़ोर पर निकलवा लेता है. लालच देते हैं लोग. अगर कोई मुझे कहे कि 200 रुपए ले और नाल दे दे, तो हम क्या करेंगे. ग़रीब आदमी हैं, लालच में आ जाते हैं.’

नाल जो करती है घोड़े की किस्मत ख़राब?

घोड़ेवाले शादी-ब्याह का काम करते हैं पर इनमें सफ़ेद घोड़ों का इस्तेमाल होता है.

हालांकि राजू नाल के सौभाग्यशाली होने पर यक़ीन नहीं करते.

‘आज के टाइम में आदमी सोचता है, हाथ-पैर न हिलाऊं, बस घर बैठे पैसा आ जाए. ये सब मनघड़ंत बातें हैं. आदमी सोचता है नाल लेने से मैं अमीर हो जाऊंगा, मुझे मौत नहीं आएगी या मैं लखपति हो जाऊंगा. नाल से कुछ नहीं होता. आदमी की सोच होती है.’

नाल के सौदागर

भारत में कई शॉपिंग पोर्टल घोड़े की नाल बेच रहे हैं. ई-बे पर काले घोड़े की नाल का यंत्र 600 रुपए तक उपलब्ध है तो अमेज़न पर आप इसे 5 से 17 डॉलर (यानी क़रीब सवा 300 से एक हज़ार रुपए) तक में ख़रीद सकते हैं. कुछ ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टलों पर डर्बी घोड़े की नाल 9500 रुपए और काले घोड़े की 2100 रुपए तक में बेची जा रही हैं.

सीलमपुर के रहने वाले मोइनुद्दीन के पूर्वज  घोड़ों का काम करते थे. अब वो यह काम छोड़ चुके हैं.

मोइनुद्दीन के मुताबिक़ ‘कोई न कोई चाहने वाला मिल जाता है और इन्हें रोक कर मांगता है. 50 का 100 का, 10-20 का. ये लोग खुद बोली नहीं लगाते कि नाल ले लो, नाल ले लो. ऐसा नहीं करते. कमी बस यही है बार-बार नाल उखड़ने लगाने से फर्क तो पड़ता है पैर पर, लेकिन ये उसका ध्यान भी रखते हैं.’

पैरों में घाव

असल में जब दिल्ली में बग्घियां और तांगे बंद हुए तो घोड़ेवालों ने अपने घोड़े शादी-ब्याह में लगाने शुरू कर दिए. पर यह काम पूरे साल नहीं चलता.

नाल जो करती है घोड़े की किस्मत ख़राब?

घोड़ों की नाल बार-बार निकालने की वजह से घोड़ों के पैर में घाव हो जाते हैं.

इसलिए उन्होंने घोड़ों की नाल को कमाई का आधार बना लिया.

मिस्त्री बताते हैं कि नाल निकालने और लगाने में अगर सावधानी न बरती तो घोड़ा लंगड़ा हो सकता है.

नाल का साइड इफ़ेक्ट

ओवरशूइंग वो प्रक्रिया है जिसके तहत बार-बार घोड़े के पैरों से नाल को निकाला-लगाया जाता है. इस दौरान रेती से घोड़े के पैर की घिसाई होती है. ज़्यादा घिसाई करने से घोड़े के सुम का संवेदनशील हिस्सा सामने आ जाता है और फिर उसमें लगाई जाने वाली कील चुभने लगती है. उसमें ज़ख्म हो सकता है और इन्फेक्शन के कारण जानवर लंगड़ा हो सकता है. इसके अलावा घोड़े के सुम में लेमिनाइटिस, छाला हो जाता है या वह सड़ जाता है.

ग़ाज़ियाबाद के लोनी रोड पर हमारी मुलाक़ात मोहम्मद यासीन से हुई जिन्होंने बताया कि वो पुरानी कील या नाल निकालने के बाद छुरी से सुम को साफ़ करते हैं.

इसके बाद वह नई नाल लगाते हैं और फिर उसमें कील ठोकते हैं.

गुड़गांव के पटौदी में पशु कल्याण संस्था फ्रेंडिकोस के अस्तबल में आपको ऐसे कई घोड़े मिलेंगे जिनके पैरों में घाव हैं और जिनका इलाज चल रहा है.

यहां मौजूद डॉक्टर राजेश कुमार साह ने बताया, ‘नाल लगाते हैं, तो वहां पर मांस से हिस्से में कभी-कभी खाल कट जाती है और घोड़े को ज़बर्दस्त दर्द होता है. यह हिस्सा काफ़ी संवेदनशील होता है. ऐसे में कुछ भी कड़ी चीज़ लगने से जानवर के पैरों को नुकसान पहुंचता है.

'संज्ञेय अपराध बनाएं'

नाल जो करती है घोड़े की किस्मत ख़राब?

मिस्त्री बताते हैं कि नाल निकालने और लगाने में अगर सावधानी न बरती तो घोड़ा लंगड़ा हो सकता है.

पशु कल्याण के लिए काम करने वाले पीएफ़ए हरियाणा के अध्यक्ष नरेश कादियान नाल की ख़रीद-फ़रोख़्त पर सख़्ती के हिमायती हैं.

‘इसे रोकने के लिए पशु क्रूरता निवारण अधिनियम बनाया गया था. मगर यह संज्ञेय अपराध नहीं, इसलिए इसे ठीक से लागू नहीं किया जा रहा है. इसमें सिर्फ़ 10 रुपए का जुर्माना है.’

नाल जो करती है घोड़े की किस्मत ख़राब?

द ब्रूक इंडिया का कहना है कि लोगों के विश्वास के मामले में कोई क़ानून नहीं बनाया जा सकता.

कादियान के मुताबिक घोड़े की नाल ठोकने वाले अवैध रूप से काम कर रहे हैं.

सामान की लदाई या दूसरे कामों में इस्तेमाल होने वाले घोड़ों का मुफ़्त इलाज करने वाली ब्रिटिश संस्था द ब्रूक का इंडिया चैप्टर इसी अंधविश्वास से लड़ रहा है.

द ब्रूक इंडिया के सीईओ लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) एमएल शर्मा का कहना है कि लोगों के विश्वास के मामले में कोई क़ानून नहीं बनाया जा सकता.

सीईओ एमएल शर्मा ने नाल की वजह से घोड़ों को होने वाली मुसीबत से निपटने के लिए अनोखा सुझाव रखा.

‘अगर नाल को किसी एडहेसिव मैटीरियल से पैर के साथ में फिक्स किया जाए और उस नाल को इस्तेमाल करने के बाद उसे बेचा जाए और फिर रीफिक्सिंग की जाए तो शायद उससे घोड़े को बार-बार नाल लगाने-निकालने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.’

द ब्रूक अपने सुझाव को किस हद तक लागू करा पाती है, यह भविष्य की बात है, पर यह सच है कि सौभाग्य की प्रतीक नाल घोड़ों के लिए दुर्भाग्यशाली साबित हो रही है.

द ब्रूक इंडिया

ब्रूक एक अंतर्राष्ट्रीय इक्वाइन वैल्फेयर ऑर्गनाइजेशन है जिसकी भारत में शुरुआत दिसंबर 1999 में हुई. ब्रिटिश सेना के जनरल ब्रूक जब पहले विश्वयुद्ध के बाद काहिरा गए जहां उन्होंने लड़ाई के घोड़ों की बुरी हालत देखकर उनके लिए कुछ करने की कोशिश की. द ब्रूक की 1934 में पड़ी और आज वह 16 देशों में है. शुरू में द ब्रूक के भारतीय चैप्टर ने भारत में अस्पताल खोले. मगर अब संस्था मोबाइल एंबुलेंस के ज़रिए देश के आठ राज्यों में क़रीब दो लाख घोड़ों-गधों-खच्चरों को मुफ़्त इलाज मुहैया कराती है.

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