कहानी: ढूंढते रह जाओगे
समीक्षा:
उफ ! ऐसे कैसे फ़िल्म बन जाती है। मैंने मेरे कई मित्रों को बढ़िया कहानियां लेकर प्रोडक्शन हाउसेस के चक्कर काटते देखा है, कितनी ही बढ़िया कहानियां हैं जो ऐसी फिल्म्स की वजह से बन ही नहीं पातीं। इस तरह की स्क्रिप्ट्स कैसे पास होती है मेरी समझ से परे है। फ़िल्म का मेन मकसद माना मजोरंजन ही होता है पर मुझे ऐसा लगता है कि मनोरंजन के नाम पर पाखाना परोसा जा रहा है घी का तड़का लगा के, भले ही शुरुआत में खुशबू न आये पर अंत मे जाकर जी खराब हो ही जाता है। कहाँ हैं वो फेमिनिस्ट जो बात बात में बकर बकर करने पहुंच जाते हैं, क्या इन फिल्म्स पे उनकी नज़र नहीं जाती ।
क्या क्या है गड़बड़:
1. फ़िल्म निहायत ही सेक्सिस्ट है और फ़िल्म की हेरोइनें महज़ सजावट के लिए हैं, उनका न तो कहानी में कोई वजूद है न ही कोई खास काम। उनका काम बस हीरो के इशारों पर नाचना है।
2. जोक्स भद्दे और बासी हैं। जन्म जन्मांतर से चले आ रहे सड़े गले जोक्स फिर सुनने को मिले, कसम से बता रहा हूँ, आत्मा भी जल गई।
3. फ़िल्म बोर है। चूंकि फ़िल्म में खास कुछ नया नहीं है इसलिए फ़िल्म बेहद बोर है और अंत तक फ़िल्म में बैठ पाना एक टास्क है।
अदाकारी: इसकी बात न ही करें तो बेहतर है।
कुल मिलाकर बहुत ही रद्दी फ़िल्म है , सेक्सिस्ट है और भद्दी भी। जितना पैसा खर्च हुआ दिखता है उसमें कम से कम 10 छोटे बजट की बढ़िया फिल्म्स बन सकती हैं, पर उससे हमको क्या, हमे तो स्टार वैल्यू पर ही फ़िल्म देखने का चस्का लग चुका है। कंटेंट की किसको पड़ी है। अगर भद्दी फिल्मों के शौकीन हों तो ही देखने जाइये हॉउसफुल 4।
रेटिंग : 1.5 स्टार
बॉक्स ऑफिस प्रेडिक्शन : 140 से 150 करोड़
Review by: Yohaann Bhaargava
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