इंडियन सुपर लीग में हिस्सा लेने वाली बेंगलुरू एफ़सी पिछले सप्ताह एएफ़सी कप टूर्नामेंट में प्योंगयांग 4.25 एससी से भिड़ने के लिए उत्तर कोरिया गई थी। इसे आप यूरोपा लीग का एशिया वर्जन कह सकते हैं।

 

उत्तर कोरिया भीतर से कैसा है,पढ़िए आपबीती

 

होटल से मिसाइल दर्शन

इस मैच के अलावा टीम के खिलाड़ियों को सामान खोने की टेंशन, सुप्रीम लीडर किम जोंग उन से जुड़े उनके मीम और उत्तर कोरिया के हालिया मिसाइल टेस्ट से जुड़ी पसोपेश से गुज़रना पड़ा।

बीबीसी स्पोर्ट ने टीम से जुड़े पूर्व ऑस्ट्रेलियाई मिडफ़ील्डर एरिक पारतलु से बातचीत की और उन्होंने जो कुछ इस ट्रिप के बारे में बताया, उसे पढ़कर आप हैरान रह जाएंगे।

पारतलु ने कहा, ''हमारे दौरे के आख़िरी दिन मिसाइल टेस्ट की गई जिसे हम अपने होटल रूम से देख सकते थे। आप इस तरह की किसी चीज़ के लिए पहले कैसे तैयारी कर सकते हैं।''

भारत में खेले गए एएफ़सी कप इंटर ज़ोन सेमीफाइनल के पहले लेग में बेंगलुरु ने उत्तर कोरियाई टीम को 3-0 से हराया था।


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जाने से पहले काफ़ी टेंशन थी

दूसरा मैच उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग के मे डे स्टेडियम में खेला गया जो 0-0 पर ड्रॉ रहा और भारतीय टीम फ़ाइनल में पहुंच गई।

लेकिन 31 साल के पारतलु इस मैच को लेकर संशकित थे। उन्होंने सोशल मीडिया के ज़रिए ये सवाल भी उठाया था कि क्या उत्तर कोरिया का दौरा करना सुरक्षित है।

इसके बाद एशियन फ़ुटबॉल कनफेडरेशन (एएफ़सी) ने उत्तर कोरिया में अपना प्रतिनिधिमंडल भेजा और कहा कि दौरा करने में कोई दिक्कत नहीं है।

पारतलु ने कहा, ''जहां जंग चल रही हो या अस्थिरता हो, वहां खेलने के लिए जाना अलग बात होती है लेकिन उत्तर कोरिया की कहानी तो बिलकुल ही अलग है।''

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दो दिन पहले पहुंचे प्योंगयांग

''ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने चेतावनी जारी कर रखी है, जिसमें अपने नागरिकों को वहां ना जाने की हिदायत दी गई है। वहां कोई दूतावास नहीं है और परमाणु युद्ध का ख़तरा मंडरा रहा था।''

उन्होंने कहा, ''जब हम वहां पहुंचे तो काम पर ध्यान देना था लेकिन जब रवाना हुए थे तो ऐसी जगह जा रहे थे जिसके बारे में कुछ भी नहीं पता।''

टीम पहले मुंबई गई, वहां से चीन की राजधानी बीजिंग और फिर उत्तर कोरिया की कैपिटल प्योंगयांग। मैच शुरू से महज़ 48 घंटे पहले टीम वहां पहुंची थी।

पारतलु ने कहा, ''जब हम वहां पहुंचे तो आंखें खुली रह गईं। जो कुछ आप ख़बरों में देखते हैं और सुनते हैं, वो वहां जाकर अनुभव करने से बिलकुल अलग है। तकरीबन खाली एयरपोर्ट पर उतरना अपने आप में अलग तरह का अनुभव था।''

 

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सामान खोया, फिर इंतज़ार किया

''ये एक अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट था लेकिन सिर्फ़ एक हवाई जहाज़ वहां खड़ा था। सामान को लेकर कोई कनफ़्यूज़न हो गया और हमें वहां दो घंटे गुज़ारने पड़े। इस दौरान सारा स्टाफ़ चला गया और लाइट भी। हम एयरपोर्ट पर अकेले थे।''

टीम को अपने मोबाइल फ़ोन और टैबलेट देने पड़े ताकि उनमें रखी तस्वीरों की जांच की जा सके। इसके अलावा सामान की तलाशी ली गई और ये भी हिदायत दी गई कि उत्तर कोरिया में तस्वीरें खींचते वक़्त वो ज़रा सावधान रहें।

''सबसे मज़ेदार बात ये थी कि उत्तर कोरिया से जुड़े कुछ मज़ाक हमने वॉट्सऐप ग्रुप पर शेयर किए थे जिनमें किम जोंग उन का ज़िक्र था। जब हम रवाना हुए थे, उससे पहले ऐसे सारे मैसेज डिलीट करने के लिए कह दिया गया था। हम वहां बैठे थे कि कब कोई आकर पकड़ ले।''

 

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जूते खरीदने पड़े

''मैं उम्मीद कर रहा था वहां टि्वटर ना हो क्योंकि मैंने ड्रिंक के लिए किम से मिलने का एक मज़ाक किया था।''

टीम के कई बैग जिनमें किट, बूट और बॉल शामिल थे, रास्ते में खो गए। इसकी वजह से कुछ खिलाड़ियों को होटल की दुकान से जूते खरीदने पड़े। पारतलु ने कहा कि फ़र्ज़ी जूतों के लिए उनसे 150-200 डॉलर वसूले गए।

उन्होंने कहा, ''पहले अभ्यास सत्र के लिए हमारे पास कोई बूट, ट्रेनिंग किट और फ़ुटबॉल नहीं थी। जो जूते हमने खरीदे, उनकी क्वालिटी ठीक नहीं थी, कुछ के साइज़ सही नहीं थे। प्रोफ़ेशनल माहौल में आप इस तरह की चीज़ों की उम्मीद नहीं करते। जब हम मैदान से होटल पहुंचे, तो अचानक हमारा सारा सामान वहां आ गया था।''

 

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ना फ़ोन, ना इंटरनेट

इस दौरे में खिलाड़ी ना तो फ़ोन इस्तेमाल कर सकते थे और ना ही इंटरनेट।

''हम शाम के वक़्त होटल पहुंचे तो सोच रहे थे कि स्ट्रीट लाइट क्यों नहीं जली हैं। किसी ने बताया कि ऐसा इसलिए किया गया है कि कोई भी सैटेलाइट से प्योंगयांग को देख ना सके।''

पारतलु ने कहा, ''पहली बार जब आप होटल पहुंचते तो अहसास होता है कि ये भी दूसरी जगह की तरह है। लेकिन लॉबी में टीवी लगा था और किम जोंग तस्वीर से झांक रहे थे। जैसे ही आप दाखिल होते हैं, प्रोपेगंडा शुरू हो जाता है।''

 

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अकेले नहीं जाने देते थे

''आपको महसूस होता है कि आप जो कुछ देख रहे हैं, वो सब वही है जो वो दिखाना चाहते हैं। ज़हन में हमेशा सवाल आता है कि क्या ये वाकई सब कुछ असली है। हर जगह किम जोंग उन के पिता और दादा के पोस्टर थे, वो भी बड़े-बड़े। हर कोई काफ़ी देशभक्त था।''

''प्योंगयांग की आबादी 26 लाख है, ऐसे में आपको हैरत होती है कि इससे बाहर रहने वाले 2।3 करोड़ लोग क्या करते हैं।''

टीम कभी भी अकेले बाहर नहीं जाती थी और हर कदम पर उसे दिशा-निर्देश मिलते थे। उन्होंने कहा, ''लोग काफ़ी मददगार थे। सभी को देश के झंडे या सत्ताधारी परिवार की तस्वीर वाले पिन बैज पहनने पड़ते थे।''

 

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स्टेडियम खाली क्यों था?

''अगर वो आपकी तरफ़ देख रहे हैं और आप उनकी तरफ़ देखें तो वो तुरंत अपनी नज़रें हटा लेते हैं। जैसे उन्हें अहसास हो गया हो कि उन्हें नहीं देखना था।''

खिलाड़ी ने कहा, ''ज़्यादा बातचीत नहीं होती थी लेकिन अगर आप हेलो कहें तो वो भी हेलों कहते थे और मुस्कुरा देते थे।''

फ़ुटबॉल का मैच विशाल मे डे स्टेडियम में खेला गया लेकिन पारतलु के मुताबिक केवल 8-9 हज़ार लोग ये मैच देखने पहुंचे थे। ''स्टेडियम काफ़ी बड़ा था, अगर पूरा भरा होता तो माहौल कुछ और होता लेकिन 9000 दर्शकों के साथ ऐसा नहीं लगा।''

 

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मैच के दौरान सब चुप

''वार्म-अप के दौरान भी माहौल काफी जोशपूर्ण था। लाल रंग का ट्रैकसूट पहने कई बच्चे चियर कर रहे थे। लेकिन जब मैच शुरू हुआ तो एकदम शांति छा गई। ये इंग्लैंड की भीड़ जैसा नहीं था लेकिन वो फ़ुटबॉल समझते थे। बस यही कि उनका अंदाज़ कुछ अलग था।''

''हम इस बात पर फ़ोकस कर रहे थे कि हमें क्या करना है। वो अटैक कर रहे थे और हम बचाव। हम मैच का नतीजा चाहते थे। सेकेंड लेग में उनकी टीम काफ़ी बढ़िया खेली। उत्तर कोरियाई फ़ुटबॉल काफ़ी मज़बूत है। हमने ख़ुद देखा कि 4.25 टीम के पास सारी सुविधाएं थीं।''

अगर बेंगलुरु टीम जीत जाती को क्या होता, पारतलु ने कहा, ''ये मेरे ज़हन में भी आया था। लड़के मज़ाक कर रहे थे कि अगर हम गोल करने में कामयाब रहे तो जश्न नहीं मनाएंगे। लेकिन मैच 0-0 पर ड्रॉ रहा। मुझे लगता था कि ज़्यादातर दर्शकों के लिए ये एक ड्रॉ मैच था, उन्हें पता भी नहीं था कि पहले लेग के मैच में क्या हुआ था।''

 

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उठते ही मिसाइल की चर्चा

ये मैच 13 सितंबर को खेला गया और टीम दो दिन बाद तक उत्तर कोरिया से रवाना नहीं हो सकी। उन्होंने कुछ ट्रेनिंग की और टूर भी, जो पारतलु के मुताबिक सेट-अप टूर थे।

शुक्रवार सवेरे उनकी आंख खुली तो पता चला कि उत्तर कोरिया ने जापान के ऊपर से बैलिस्टिक मिसाइल का टेस्ट किया है।

उन्होंने कहा, ''होटल में छह चैनल थे जिनमें कुछ चीनी थे, एक प्रोपेगेंडा चैनल था और एक अल जज़ीरा।''

 

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उत्तर कोरियाई क्या कहते हैं

''जब हम मिसाइल के बारे में पता कर रहे थे तो किसी ने कहा कि अगर आप सवेरे छह बजे होटल के बाहर खड़े होते तो ख़ुद भी मिसाइल देख सकते थे। इसे एयरपोर्ट से छोड़ा गया था और इसका रास्ता साफ़ था।''

''लड़कों ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा जैसे कह रहे हों कि यहां से तुरंत चलते हैं। मुझे नहीं लगता कि उत्तर कोरिया के लोगों को स्थिति की पूरी जानकारी है भी।''

''हमारे खिलाड़ियों ने गाइड के सामने कुछ सवाल किए तो उन्होंने कहा कि वो अपनी सुरक्षा के लिए ये सब कर रहे हैं और सुप्रीम लीडर ने दिखा दिया कि वो अमरीका के मुकाबला कर सकते हैं। ऐसा लगा कि उनके दिमाग में यही सब भर दिया गया है कि उत्तर कोरिया मज़बूत है और अमरीका कमज़ोर। काफ़ी अजीब था ये सब।''

 

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बहुत खूबसूरत देश है

''उत्तर कोरिया बेहद ख़ूबसूरत देश है। नीला आसमान, पेड़-पौधे, खेत और हरियाली। आपको कुछ भी अजीब नहीं लगता। अगर मैं फ़ुटबॉल ना खेल रहा होता तो कभी भी उत्तर कोरिया में दाखिल ना हो पाता।''

पारतलु ने कहा, ''मैं इस ट्रिप को कभी नहीं भूल पाऊंगा, इसलिए खुशी है कि ये मौका मुझे मिला। लोग कई साल तक इसके बारे में मुझसे पूछते रहेंगे। ज़्यादा लोग ऐसा नहीं कह सकते कि उन्होंने उत्तर कोरिया का दौरा किया है।''

 

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दौरे से क्या सीखा?

''इस दौरे से सबसे बड़ा सबक मैंने ये सीखा कि जो कुछ भी ख़बरों में दिखाया जाता है, उस पर यूं ही यक़ीन मत कीजिए। एक इंसान या कुछ लोगों का समूह है, जो अजीब तरह से सोचता है। मुझे उन लोगों के लिए बुरा लगा, जो वहां मुस्कुराते हुए दिखे थे। ये सोचकर कि ये देश नक्शे से गायब हो सकता है और खामियाज़ा वहां के लोगों को भुगतना पड़ेगा, काफ़ी बुरा लगता है।''

पारतलु ने बताया, ''मैच के बाद मुझे उत्तर कोरिया की इस टीम के स्ट्राइकर ने गले से लगाया और मुस्कुराते हुए बधाई दी। खेल लोगों को करीब लाता है, इसलिए फ़ुटबॉल खूबसूरत खेल है।''

International News inextlive from World News Desk

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