वाशिंगटन/लंदन, 7 सितंबर (पीटीआई)। भारत का ऐतिहासिक अभियान चंद्रमा के अछूते दक्षिणी ध्रुव पर एक रोवर को उतार पाने में भले ही सफल नहीं रहा, लेकिन इस अद्वितीय प्रयास ने स्पेस सुपरपॉवर बनने की उसकी महत्वाकांक्षा और इंजीनियरिंग में प्रगति को उजागर किया, यह टिप्पणी वैश्विक मीडिया की है। न्यूयॉर्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट, बीबीसी और गार्जियन समेत कई अन्य प्रमुख विदेशी मीडिया संस्थानों ने भारत के ऐतिहासिक लूनर मिशन चंद्रयान 2 की विस्तृत कवरेज की।

अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ

अमेरिकी पत्रिका वायर्ड ने कहा कि चंद्रयान -2 कार्यक्रम भारत का 'सबसे महत्वाकांक्षी' स्पेस मिशन था। उसने लिखा कि, ' भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर का नुकसान एक बड़ा झटका होगा ...लेकिन मिशन के लिए अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है'।

न्यूयॉर्क टाइम्स

न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत के 'इंजीनियरिंग कौशल और दशकों के अंतरिक्ष विकास की सराहना की'। रिपोर्ट में कहा गया है, 'भारत भले ही अपने पहले प्रयास में लैंडिंग को अंजाम तक नहीं पहुंचा पाया, लेकिन उसके प्रयास ने उसकी इंजीनियरिंग प्रगति और अंतरिक्ष कार्यक्रम के विकास समेत उसकी अंतरराष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं पर रोशनी डाली'। 'चंद्रयान 2 मिशन की आंशिक विफलता - ऑर्बिटर अभी काम कर रहा है- इससे देश के उन देशों के एलीट क्लब का हिस्सा बनने में देरी होगी जो चंद्रमा की सतह के किसी हिस्से पर उतर चुके हैं'।

द गार्जियन  

ब्रिटिश अखबार द गार्जियन ने अपने लेख में, 'भारत की मून लैंडिंग अंतिम क्षणों में संपर्क टूटने से बाधित' शीर्षक से फ्रांस की अंतरिक्ष एजेंसी सीएनईएस के भारत में प्रतिनिधि मैथ्यू वीस को उद्धृत करते हुए लिखा है: 'भारत वहां जा रहा है जहां शायद भविष्य में मनुष्यों बस्तियां होंगी 20 साल, 50 साल या 100 साल में'।

चंद्रयान-2 को लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने कहीं यह दमदार बातें

वाशिंगटन पोस्ट

वाशिंगटन पोस्ट ने अपनी हेडलाइन में कहा कि 'भारत का चंद्रमा पर उतरने का पहला प्रयास विफल होता दिख रहा है,' मिशन राष्ट्र के लिए गौरव का प्रतीक बना। उन्होंने कहा, 'सोशल मीडिया अंतरिक्ष एजेंसी और उसके वैज्ञानिकों के समर्थन में खड़ा हो गया बावजूद इसके की मिशन पूरा नहीं हुआ...यह घटना झटका हो सकती है, भारत की बढ़ती अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं के लिए, जिसे इसकी युवा आबादी की आकांक्षाओं के प्रतिबिंब के रूप में देखा जाता है।' रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की सफलताओं में से एक इसकी कम लागत है। चंद्रयान -2 की लागत 141 मिलियन अमरीकी डालर है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के अपने ऐतिहासिक अपोलो लूनर मिशन पर खर्च का एक छोटा सा हिस्सा है।

सीएनएन

अमेरिकी नेटवर्क सीएनएन ने इसे 'चंद्रमा की सतह पर भारत की ऐतिहासिक लैंडिंग विफल' बताया। 'भारत की चांद पर एक रोवर की सॉफ्ट लैंडिंग का ऐतिहासिक प्रयास विफलता के क्षणों में समाप्त हो सकता है ... भीड़ ने नियंत्रित डिसेंट के दौरान हर छोटे कदम का जश्न मनाया था और जिस क्षण लैंडिंग की उम्मीद थी, मौन छा गया।'

बीबीसी

बीबीसी ने लिखा कि मिशन ने अपनी कम लागत के चलते वैश्विक सुर्खियों में जगह बनाई थी। 'उदाहरण के लिए एवेंजर्स एंडगेम का बजट लगभग 356 अमेरिकी डॉलर इसका दोगुना था। लेकिन यह पहली बार नहीं है जब इसरो को इसके लिए सराहा गया है। इसके 2014 के मंगल मिशन की लागत 74 मिलियन अमेरिकी डॉलर, अमेरिकी मावेन ऑर्बिटर के बजट का दसवां हिस्सा है।

ले मोंडे

फ्रांसीसी दैनिक ले मोंडे ने चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिग की सफलता दर का उल्लेख किया। इसमें कहा गया है, 'अब तक, वैज्ञानिक बताते हैं, केवल 45 प्रतिशत मिशन ही सफल हो पाए हैं।' प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को इसरो के वैज्ञानिकों को लूनर मिशन चंद्रयान -2 में बाधाओं से निराश नहीं होने के लिए कहा और कहा कि 'एक नई सुबह और बेहतर कल' होगा।

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