पूनिया का कहना है कि बेटे के जन्म के बाद उनके करियर ने नई ऊंचाई देखी है। पूनिया ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कर चुकी है। ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में वह भारत की चुनौती रहेगी। पूनिया ने इसी साल जनवरी में अमरीका के शहर पोर्टलैंड के पोस्ट प्री एलीट वूमेंस इवेंट में रजत पदक जीता है।

बीबीसी के साथ बातचीत में पूनिया ने कहा, “अपने पति के मुलाकात के दिनों में मैं सिर्फ कॉलेज स्तर की ही एथलीट थी। सही मायनों में मेरी पहचान मेरे बेटे के जन्म के बाद ही बनी.”

पति का योगदान

पूनिया ने कहा, “आज मेरा बेटा दस साल का है। उसके आने से पहले चोटिल होने के कारण मैं खेल को छोड़ चुकी थी। लेकिन मेरे पति वीरेंद्र ने मुझे फिर से इसके लिए तैयार किया। उन्होंने हमेशा ही कहा कि मैं बेहतर प्रदर्शन कर सकती हूं। राष्ट्रमंडल खेलों में मेरा गोल्ड मेडल उनकी ही मेहनत का नतीजा है.”

शादी के काफी अर्से बाद पूनिया ने खेल को फिर से शुरू किया। इससे पहले उन्हें बाकी महिलाओं की तरह घर की सारी जिम्मेदारियां निभानी पड़ीं। लेकिन पूनिया अपनी कामयाबी का श्रेय परिवार को देती हैं।

परिवार का शुक्रिया

पूनिया बताती हैं, “मेरे परिवार का मेरी कामयाबी में काफी योगदान है। मायके में हमें कम काम करना पड़ता था। ससुराल में खाना बनाना पड़ा। मैं खाना बनाने में अच्छी नहीं थी लेकिन मैं जैसा भी पकाती, सभी बिना शिकायत किए खा लेते थे। मेरी सास ने कहा कि कोई बात नहीं मैं धीरे-धीरे सीख जाउंगी। ट्रेनिंग के बाद मेरे पति खाना बनाने में मेरी मदद करते थे.”

कृष्णा के पति ही उनके कोच हैं। वीरेंद्र ने पति और कोच की भूमिका को बखूबी निभाई है। पूनिया इसलिए अपनी हर कामयाबी का श्रेय पति को ही देती हैं।

पूनिया ने बताया, “सही मायनों में मुझे यहां तक लाने में मेरे पति का ही योगदान है। उन्होंने ही मुझे हर कदम पर प्रेरित किया। असल में उन्होंने ही मेरा करियर बनाया है.”

पूनिया ने हाल के सालों में अपनी ट्रेनिंग विदेश में की है। इस दौरान उन्हें दुनिया के बेहतरीन खिलाड़ियों को देखने और उनसे मिलने का मौका मिला। कुछ ऐसे भी रहे जिन्होंने उन्हें काफी प्रभावित किया।

पूनिया ने कहा, “तकनीक के मामले में मैं वाकेन स्मिथ और मैक विलकिंस से काफी प्रभावित हूं। मै कोशिश करती हूं कि उनकी तकनीक को अपनाने की। दोनों ही 70 के दशक के चैंपियन रहे हैं। दोनों की तकनीक काफी अच्छी थी और वे आपस में अच्छे दोस्त थे.''

इतिहास

2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में पूनिया ने महिला वर्ग के डिस्कस थ्रो मुक़ाबले में स्वर्ण पदक जीत कर दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में नया इतिहास रचा था। क्योंकि 52 साल में पहली बार भारत को ट्रैक एंड फ़ील्ड इवेंट में कोई पदक मिला था।

पूनिया ने उस दिन 61.51 मीटर डिस्कस फेंका था। इससे पहले ट्रैक एंड फ़ील्ड इवेंट में भारत को कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण 1958 में मिल्खा सिंह ने दिलाया था। महिला डिस्कस थ्रो में स्वर्ण ही नहीं बल्कि रजत और कांस्य पदक भी भारत के नाम रहे थे।

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