2007 में इसलिए हारा था भारत...

1. कप्तान द्रविड़ का गलत फैसला
2007 में हार की सबसे बड़ी वजह था कप्तान राहुल द्रविड़ का टॉस जीतकर पहले बैटिंग करने का फैसला. द्रविड़ एक पॉजिटिव सोच वाले कप्तान थे लेकिन वो कई बार आवश्यकता से ज्यादा पॉजिटिव हो जाते थे जिसका खामियाजा टीम को हार के तौर पर भुगतना पड़ता था. उनकी आदत में शुमार था कि पिच पर नमी होने पर भी वो टॉस जीतकर बैटिंग ले लेते थे क्योंकि उन्हें अपने बल्लेबाजों पर ओवर कॉन्फिडेंस था. इस आदत के तहत वो विश्व कप से पहले ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज में भी मैच हार चुके थे. वेस्टइंडीज के खिलाफ सीरीज में भी नमी वाली पिच पर पहले बल्लेबाजी का फैसला करके भी वो मैच हार चुके थे. बांग्लादेश के खिलाफ 2007 के विश्व कप मैच में कप्तान द्रविड़ ने हार की पटकथा टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने के गलत फैसले से लिख दी थी. ये फैसला इसलिए गलत था क्योंकि उस दिन पोर्ट ऑफ स्पेन के क्वींस पार्क ओवल की पिच पर नमी थी. मैच की पहली पारी के प्रारम्भिक ओवर्स में ये नमी तेज गेंदबाजों की बहुत मददगार थी. इस वजह से पहले गेंदबाजी करने वाली टीम बांग्लादेश को बहुत फायदा मिला. पहली पारी के खत्म होते होते वो नमी खत्म होती गई और भारत के तेज गेंदबाजों को वो फायदा नहीं मिल सका. भारत के कप्तान राहुल द्रविड़ का ओवर कॉन्फिडेंस था कि उन्होंने समझा कि पिच से कितनी भी मदद मिले भारतीय बल्लेबाजों के परेशान करने की हैसियत बांग्लादेशी गेंदबाजों में नहीं है इसलिए भारतीय बल्लेबाज पहले बैटिंग मिलने पर रनों का अंबार लगा देंगे जिसमें बांग्लादेश दब जाएगा. लेकिन वो धोखा खा गए क्योंकि बांग्लादेश इतनी भी कमजोर टीम नहीं थी कि कोई कप्तान विवेकहीन फैसला लेकर भी उन्हें हरा दे. बांग्लादेश के पास उस समय मशरफे मुर्तजा थे जो 140 की रफ्तार से तेज गेंद फेंकते हुए भी लाइन लेंथ खराब नहीं होने देते थे. भारत के चार विकेट चटकाकर मशरफे मुर्तजा ही मैन ऑफ द मैच बने. पहले बल्लेबाजी करते हुए भारत की पूरी टीम 49.3 ओवर में 191 पर ऑल आउट हो गई. अगर टॉस जीतकर भारत ने गेंदबाजी ली होती तो बांग्लादेश इतने रन भी न बना पाता.

2. ग्रेग चैपल का जमाना था वो
2007 वही दौर था जब कुख्यात ग्रेग चैपल टीम इंडिया के कोच हुआ करते थे. चैपल ने सचिन तेंदुलकर को उनकी मर्जी के खिलाफ ओपनिंग से हटा कर मिडिल ऑर्डर में रख दिया था. इस वजह से न सिर्फ सचिन तेंदुलकर का प्रदर्शन खराब हुआ बल्कि वो असंतुष्ट भी थे. इस तरह से टीम का सबसे अच्छा बल्लेबाज 2007 में बेकार कर दिया गया था. सचिन ने बांग्लादेश के खिलाफ मैच में सिर्फ 7 रन बनाए थे. ग्रेग चैपल ने पूरा बैटिंग ऑर्डर डिस्टर्ब कर दिया था. आज सोच कर भी ताज्जुब होगा कि बांग्लादेश के खिलाफ मैच में राहुल द्रविड़ नम्बर पांच पर बल्लेबाजी करने उतरे थे जबकि सारी जिंदगी उन्होंने वन डाउन ही बल्लेबाजी की थी. द्रविड़ ने बांग्लादेश के खिलाफ सिर्फ 14 रन बनाए थे. द्रविड़ और सचिन से पहले बल्लेबाजी करने नम्बर 3 पर रॉबिन उथप्पा उतरे थे उस मैच में जो 17 गेंद में 9 रन बनाकर आउट हो गए.

3. सहवाग भी हो गए थे चौपट
सचिन की जगह सौरव गांगुली के ओपनिंग पार्टनर बना दिए जाने से सहवाग के खेल पर भी बहुत बुरा असर पड़ा था. गांगुली की खेलने की स्टाइल से सहवाग अनकम्फर्टेबल थे. गांगुली सचिन की तरह स्ट्राइक रोटेट नहीं करते थे जिसकी वजह से सहवाग को काफी देर तक स्ट्राइक के लिए वेट करना पड़ता था. गांगुली की स्टाइल ये थी कि तीन गेंद डॉट खेलकर चौथी पर चौका जड़ दो. इससे स्ट्राइक रेट तो बैलेंस हो जाता था पर नान स्ट्राइकर सहवाग को स्ट्राइक के लिए बहुत इंतजार करना पड़ता था. इससे सहवाग का धर्य अक्सर जवाब दे जाता था और वो स्ट्राइक मिलने पर अनावश्यक स्ट्रोक खेलकर आउट हो जाते थे. सहवाग ने बांग्लादेश के खिलाफ मैच में सिर्फ 2 रन बनाए थे. उस मैच में टीम इंडिया की ओर से सिर्फ महाराज और युवराज ही जम सके थे. सौरव गांगुली ने 66 और युवराज ने 47 रन बनाए थे. कप्तान के गलत फैसले से नमी वाली पिच पर बल्लेबाजी करने को मजबूर और कोच ग्रेग चैपल के तानाशाही फैसलों से हैरान परेशान भारतीय बल्लेबाज बांग्लादेश को सिर्फ 192 का छोटा लक्ष्य ही दे सके थे.

4. गेंदबाजी और फील्डिंग खराब थी भारत की
उस टीम इंडिया में सिर्फ हरभजन सिंह और जहीर खान ही खतरनाक गेंदबाज थे. इनके अलावा बाकी दो गेंदबाज मुनाफ पटेल और अजीत अगरकर थे जिनके बारे में ज्यादा बताने की आवश्यकता नहीं है. भारत की फील्डिंग भी खराब थी उस वक्त. बांग्लादेश के खिलाफ जब भारत गेंदबाजी करने उतरा तो पिच से तेज गेंदबाजों को मदद गायब हो चुकी थी और फील्डर्स ने कैच भी टपकाए. इस पूरी दुर्दशा के बीच किस्मत भी जैसे भारत से नाराज थी क्योंकि कई कैच फील्डर्स के बीच में गिरे जिसका फायदा बांग्लादेशी बल्लेबाजों ने उठाया.

5. गजब का जोश था बांग्लादेश में
बांग्लादेश की उस टीम में भारत को फिसलते देख गजब का जोश भर गया था. युवा ओपनर तमीम इकबाल ने शानदार बल्लेबाजी करते हुए 51 रन बनाए थे. मुशफीकुर रहीम के नाबाद 56 और शाकिब अल हसन के 53 रन की मदद से बांग्लादेश ने लक्ष्य पांच विकेट खोकर हासिल कर लिया था.

2015 में क्या फर्क है 2007 से

1. कप्तान का फर्क
अब आदर्शवादी द्रविड़ की जगह प्रैक्टिकल धोनी टीम इंडिया के कप्तान हैं जो गलती करना तो दूर अपनी कप्तानी से मैच जिता देते हैं.

2. कोच का फर्क
टीम को विभाजित करने वाले ग्रेग चैपल की जगह अब कोच डंकन फ्लेचर कोच हैं. लेकिन फ्लेचर एक डमी हैं. असलियत में टीम को रवि शास्त्री मोटिवेट कर रहे हैं. शास्त्री का कप्तान और कोच दोनों के तौर पर रिकॉर्ड लगभग 100 प्रतिशत है. शास्त्री की खूबी है कि वो टीम को मोटिवेट करके उसकी पूरी क्षमता का उपयोग कर ले जाते हैं.

3. गेंदबाजी और फील्डिंग बहुत बेहतर
2015 की टीम बहुत शानदार गेंदबाजी कर रही. तेज गेंदबाजी में उमेश यादव, मो शमी और मोहित शर्मा की तिकड़ी है जबकि स्पिन में आर अश्विन कमाल दिखा रहे हैं. जबकि 207 की टीम में सिर्फ 2 गेंदबाज अच्छे थे. इस समय टीम की फील्डिंग देखकर दक्षिण अफ्रीका के कप्तान भी ताज्जुब में पड़ गए थे.

4. मोटीवेशन और भूमिका का फर्क है
2015 की टीम मोटीवेटेड है जबकि 2007 की टीम फ्रस्ट्रेटेड थी. इस टीम में सबका रोल तय है जबकि उस टीम में ग्रेग चैपल के प्रयोगों की वजह से सबकी भूमिका अनिश्चित थी. 

धोनी को याद है सब
धोनी इस समय की टीम इंडिया के इकलौते खिलाड़ी हैं जो 2007 की टीम इंडिया में भी शामिल थे. माही को वो मैच इसलिए भी अच्छी तरह याद है क्योंकि भारत की हार के बाद रांची में उनके घर पर पत्थर फेंके गए थे. यहां तक कि उनके घर की सुरक्षा बढ़ानी पड़ी थी. आठ साल बाद वक्त बदल चुका है. अब धोनी टीम इंडिया के कप्तान हैं और विश्व कप में उनके सामने फिर आया है बांग्लादेश.. इस बार बांग्लादेश की टीम को ढाका वापस भेजने में धोनी कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. आखिर क्रिकेटर के भी बदला लेता है.. मौका मौका तो इस समय धोनी के लिए है बांग्लादेश के लिए नहीं..
2007 में इसलिए हारा था भारत...

 


1. कप्तान द्रविड़ का गलत फैसला
2007 में हार की सबसे बड़ी वजह था कप्तान राहुल द्रविड़ का टॉस जीतकर पहले बैटिंग करने का फैसला. द्रविड़ एक पॉजिटिव सोच वाले कप्तान थे लेकिन वो कई बार आवश्यकता से ज्यादा पॉजिटिव हो जाते थे जिसका खामियाजा टीम को हार के तौर पर भुगतना पड़ता था. उनकी आदत में शुमार था कि पिच पर नमी होने पर भी वो टॉस जीतकर बैटिंग ले लेते थे क्योंकि उन्हें अपने बल्लेबाजों पर ओवर कॉन्फिडेंस था. इस आदत के तहत वो विश्व कप से पहले ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज में भी मैच हार चुके थे. वेस्टइंडीज के खिलाफ सीरीज में भी नमी वाली पिच पर पहले बल्लेबाजी का फैसला करके भी वो मैच हार चुके थे. बांग्लादेश के खिलाफ 2007 के विश्व कप मैच में कप्तान द्रविड़ ने हार की पटकथा टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने के गलत फैसले से लिख दी थी. ये फैसला इसलिए गलत था क्योंकि उस दिन पोर्ट ऑफ स्पेन के क्वींस पार्क ओवल की पिच पर नमी थी. मैच की पहली पारी के प्रारम्भिक ओवर्स में ये नमी तेज गेंदबाजों की बहुत मददगार थी. इस वजह से पहले गेंदबाजी करने वाली टीम बांग्लादेश को बहुत फायदा मिला. पहली पारी के खत्म होते होते वो नमी खत्म होती गई और भारत के तेज गेंदबाजों को वो फायदा नहीं मिल सका. भारत के कप्तान राहुल द्रविड़ का ओवर कॉन्फिडेंस था कि उन्होंने समझा कि पिच से कितनी भी मदद मिले भारतीय बल्लेबाजों के परेशान करने की हैसियत बांग्लादेशी गेंदबाजों में नहीं है इसलिए भारतीय बल्लेबाज पहले बैटिंग मिलने पर रनों का अंबार लगा देंगे जिसमें बांग्लादेश दब जाएगा. लेकिन वो धोखा खा गए क्योंकि बांग्लादेश इतनी भी कमजोर टीम नहीं थी कि कोई कप्तान विवेकहीन फैसला लेकर भी उन्हें हरा दे. बांग्लादेश के पास उस समय मशरफे मुर्तजा थे जो 140 की रफ्तार से तेज गेंद फेंकते हुए भी लाइन लेंथ खराब नहीं होने देते थे. भारत के चार विकेट चटकाकर मशरफे मुर्तजा ही मैन ऑफ द मैच बने. पहले बल्लेबाजी करते हुए भारत की पूरी टीम 49.3 ओवर में 191 पर ऑल आउट हो गई. अगर टॉस जीतकर भारत ने गेंदबाजी ली होती तो बांग्लादेश इतने रन भी न बना पाता.


2. ग्रेग चैपल का जमाना था वो
2007 वही दौर था जब कुख्यात ग्रेग चैपल टीम इंडिया के कोच हुआ करते थे. चैपल ने सचिन तेंदुलकर को उनकी मर्जी के खिलाफ ओपनिंग से हटा कर मिडिल ऑर्डर में रख दिया था. इस वजह से न सिर्फ सचिन तेंदुलकर का प्रदर्शन खराब हुआ बल्कि वो असंतुष्ट भी थे. इस तरह से टीम का सबसे अच्छा बल्लेबाज 2007 में बेकार कर दिया गया था. सचिन ने बांग्लादेश के खिलाफ मैच में सिर्फ 7 रन बनाए थे. ग्रेग चैपल ने पूरा बैटिंग ऑर्डर डिस्टर्ब कर दिया था. आज सोच कर भी ताज्जुब होगा कि बांग्लादेश के खिलाफ मैच में राहुल द्रविड़ नम्बर पांच पर बल्लेबाजी करने उतरे थे जबकि सारी जिंदगी उन्होंने वन डाउन ही बल्लेबाजी की थी. द्रविड़ ने बांग्लादेश के खिलाफ सिर्फ 14 रन बनाए थे. द्रविड़ और सचिन से पहले बल्लेबाजी करने नम्बर 3 पर रॉबिन उथप्पा उतरे थे उस मैच में जो 17 गेंद में 9 रन बनाकर आउट हो गए.


3. सहवाग भी हो गए थे चौपट
सचिन की जगह सौरव गांगुली के ओपनिंग पार्टनर बना दिए जाने से सहवाग के खेल पर भी बहुत बुरा असर पड़ा था. गांगुली की खेलने की स्टाइल से सहवाग अनकम्फर्टेबल थे. गांगुली सचिन की तरह स्ट्राइक रोटेट नहीं करते थे जिसकी वजह से सहवाग को काफी देर तक स्ट्राइक के लिए वेट करना पड़ता था. गांगुली की स्टाइल ये थी कि तीन गेंद डॉट खेलकर चौथी पर चौका जड़ दो. इससे स्ट्राइक रेट तो बैलेंस हो जाता था पर नान स्ट्राइकर सहवाग को स्ट्राइक के लिए बहुत इंतजार करना पड़ता था. इससे सहवाग का धर्य अक्सर जवाब दे जाता था और वो स्ट्राइक मिलने पर अनावश्यक स्ट्रोक खेलकर आउट हो जाते थे. सहवाग ने बांग्लादेश के खिलाफ मैच में सिर्फ 2 रन बनाए थे. उस मैच में टीम इंडिया की ओर से सिर्फ महाराज और युवराज ही जम सके थे. सौरव गांगुली ने 66 और युवराज ने 47 रन बनाए थे. कप्तान के गलत फैसले से नमी वाली पिच पर बल्लेबाजी करने को मजबूर और कोच ग्रेग चैपल के तानाशाही फैसलों से हैरान परेशान भारतीय बल्लेबाज बांग्लादेश को सिर्फ 192 का छोटा लक्ष्य ही दे सके थे.


4. गेंदबाजी और फील्डिंग खराब थी भारत की
उस टीम इंडिया में सिर्फ हरभजन सिंह और जहीर खान ही खतरनाक गेंदबाज थे. इनके अलावा बाकी दो गेंदबाज मुनाफ पटेल और अजीत अगरकर थे जिनके बारे में ज्यादा बताने की आवश्यकता नहीं है. भारत की फील्डिंग भी खराब थी उस वक्त. बांग्लादेश के खिलाफ जब भारत गेंदबाजी करने उतरा तो पिच से तेज गेंदबाजों को मदद गायब हो चुकी थी और फील्डर्स ने कैच भी टपकाए. इस पूरी दुर्दशा के बीच किस्मत भी जैसे भारत से नाराज थी क्योंकि कई कैच फील्डर्स के बीच में गिरे जिसका फायदा बांग्लादेशी बल्लेबाजों ने उठाया.


5. गजब का जोश था बांग्लादेश में
बांग्लादेश की उस टीम में भारत को फिसलते देख गजब का जोश भर गया था. युवा ओपनर तमीम इकबाल ने शानदार बल्लेबाजी करते हुए 51 रन बनाए थे. मुशफीकुर रहीम के नाबाद 56 और शाकिब अल हसन के 53 रन की मदद से बांग्लादेश ने लक्ष्य पांच विकेट खोकर हासिल कर लिया था.

 


2015 में क्या फर्क है 2007 से


1. कप्तान का फर्क
अब आदर्शवादी द्रविड़ की जगह प्रैक्टिकल धोनी टीम इंडिया के कप्तान हैं जो गलती करना तो दूर अपनी कप्तानी से मैच जिता देते हैं.


2. कोच का फर्क
टीम को विभाजित करने वाले ग्रेग चैपल की जगह अब डंकन फ्लेचर कोच हैं. लेकिन फ्लेचर एक डमी हैं. असलियत में टीम को रवि शास्त्री मोटिवेट कर रहे हैं. शास्त्री का कप्तान और कोच दोनों के तौर पर रिकॉर्ड लगभग 100 प्रतिशत है. शास्त्री की खूबी है कि वो टीम को मोटिवेट करके उसकी पूरी क्षमता का उपयोग कर ले जाते हैं.


3. गेंदबाजी और फील्डिंग बहुत बेहतर
2015 की टीम बहुत शानदार गेंदबाजी कर रही. तेज गेंदबाजी में उमेश यादव, मो शमी और मोहित शर्मा की तिकड़ी है जबकि स्पिन में आर अश्विन कमाल दिखा रहे हैं. जबकि 207 की टीम में सिर्फ 2 गेंदबाज अच्छे थे. इस समय टीम की फील्डिंग देखकर दक्षिण अफ्रीका के कप्तान भी ताज्जुब में पड़ गए थे.


4. मोटीवेशन और भूमिका का फर्क है
2015 की टीम मोटीवेटेड है जबकि 2007 की टीम फ्रस्ट्रेटेड थी. इस टीम में सबका रोल तय है जबकि उस टीम में ग्रेग चैपल के प्रयोगों की वजह से सबकी भूमिका अनिश्चित थी. 


धोनी को याद है सब
धोनी इस समय की टीम इंडिया के इकलौते खिलाड़ी हैं जो 2007 की टीम इंडिया में भी शामिल थे. माही को वो मैच इसलिए भी अच्छी तरह याद है क्योंकि भारत की हार के बाद रांची में उनके घर पर पत्थर फेंके गए थे. यहां तक कि उनके घर की सुरक्षा बढ़ानी पड़ी थी. आठ साल बाद वक्त बदल चुका है. अब धोनी टीम इंडिया के कप्तान हैं और विश्व कप में उनके सामने फिर आया है बांग्लादेश.. इस बार बांग्लादेश की टीम को ढाका वापस भेजने में धोनी कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. आखिर क्रिकेटर भी बदला लेता है.. मौका मौका तो इस समय धोनी के लिए है बांग्लादेश के लिए नहीं..


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