- एथिकल कमेटी के अप्रूवल और मरीज की सहमति के बाद ही ऐसा मुमकिन

- आईसीएमआर और बीआरडी मेडिकल कॉलेज के कोलेबोरशन में ऑर्गनाइज होगी वर्कशॉप

- बायो मेडिकल फील्ड के एथिक्स के साथ फील्ड में बेस्ट करने के बताए नुस्खे

GORAKHPUR: किसी को अजीब से अजीब बीमारी हो, उसकी डायग्नोसिस की पॉसिबिल्टी हो, सलाइवा, यूरीन या दूसरे किसी स्पेसिमेन की जरूरत हो, लेकिन अगर मरीज की परमिशन नहीं है, तो रिसर्चर्स, डॉक्टर्स या क्लीनिकल एक्सपर्ट उसकी जांच के लिए खून की एक बूंद भी नहीं ले सकता है। यह तभी मुमकिन है जब मरीज इसके लिए सहमत हो। इसके लिए भी उन्हें आईसीएमआर से अप्रूव्ड एथिकल कमेटी से भी परमिशन लेनी जरूरी है। यह बातें सामने आई बीआरडी मेडिकल कॉलेज के सेमीनार हॉल में ऑर्गनाइज वर्कशॉप में, जहां फील्ड के एक्सप‌र्ट्स ने पार्टिसिपेंट्स और प्रोफेशनल्स को 'बायोमेडिकल एंड हेल्थ रिसर्च एथिक्स' के बारे में जानकारी दी, जिसे उन्हें ध्यान में रखकर ही अपनी रिसर्च या स्टडी कंप्लीट करनी है।

गाइडलाइन फॉलो करने के अलावा दूसरा ऑप्शन नहीं

मेडिकल फील्ड का रिसर्चर अगर ह्यूमनबींग का इस्तेमाल कर रहा है या उस पर किसी तरह की रिसर्च या स्टडी कर रहा है, तो इसके लिए उसे आईसीएमआर की ओर से जारी गाइडलाइन को फॉलो करना ही होगा। आईसीएमआर बायो एथिक्स यूनिट की हेड डॉ। रोली ने बताया कि दवा हो, मशीन, इंटरवेंशन या फिर कोई हर्बल प्रॉडक्ट की टेस्टिंग, अगर वह आईसीएमआर की गाइड लाइन के मुताबिक नहीं है और एथिकल कमेटी का रिटेन अप्रूवल नहीं मिला है, तो उस स्टडी और रिसर्च के कोई मायने नहीं हैं, वहीं अगर किसी ने ऐसा किया है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई भी की जा सकती है।

एकेडमिक परपज में छूट, लेकिन अप्रूवल जरूरी

एक्सप‌र्ट्स ने बताया कि अगर किसी चीज का क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है, लेकिन उसे एकेडमिक परपज से इस्तेमाल किया जाना है, तो उसे इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी नहीं है कि वह सीटीआरआई या डीसीजीआई में रजिस्ट्रेशन कराए, बल्कि एमडी स्टूडेंट या प्रोफेसर, लोकल लेवल पर बनी एथिकल कमेटी से एप्रूवल लेकर इसका इस्तेमाल कर सकता है। बस इतना ध्यान रखना है कि परपज सिर्फ एकेडमिक ही हो और इसका मिसयूज न किया जाए।

सभी इंस्टीट्यूशन में एथिकल कमेटी मस्ट

लोगों से रूबरू होते हुए डॉ। मेधा जोशी ने बताया कि एथिकल कमेटी सभी संस्थानों के लिए मस्ट है। बिना इस कमेटी के कोई भी प्रोजेक्ट अप्रूव नहीं किया जा सकता है। लोकल लेवल पर बनने वाली इस कमेटी में एक बाहरी मेंबर के साथ ही एक लीगल एक्सपर्ट होना भी जरूरी है। इसके साथ ही कमेटी की मीटिंग भी रेग्युलर होनी चाहिए, जिससे कि नए रूल्स एंड रेग्युलेशन से सभी अपडेट रह सकें। ऐसा इसलिए कि रोजाना टेक्नोलॉजी में चेंज आ रहा है और नई-नई चीजें अपडेट हो रही हैं।

प्रोफेशनल को एक्सपर्ट बनाने के नुस्खे बताए

रिसर्च का दायरा बढ़ता जा रहा है। हर छोटे से छोटे प्वॉइंट पर रिसर्च करने की पॉसिबिल्टीज हैं। इसलिए अब जरूरी है कि एक सीमित दायरे में रहकर रिसर्च को अंजाम दें, जिससे कि रिसर्च की क्वालिटी और रिजल्ट दोनों ही बेहतर हो सकें। इन प्वॉइंट्स को ध्यान में रखते हुए इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने रीजनल सेंटर फॉर मेडिकल रिसर्च और बीआरडी मेडिकल कॉलेज के ज्वॉइंट कोलेबोरेशन में 'बायोमेडिकल एंड हेल्थ रिसर्च एथिक्स' पर वर्कशॉप ऑर्गनाइज की। जहां पहुंचे प्रोफेशनल्स को रिसर्च का दायरा और उसमें बेहतर रिसर्च करने के क्या ऑप्शन हैं, इसके बारे में अवेयर किया गया और एथिकल कमेटी फॉर्म करने के साथ ही रिसर्च में उसकी अहमियत बताई गई।

दीप प्रज्ज्वलन से शुरुआत

आईसीएमआर, आरएमआरसी गोरखपुर और एनसीडीआईआर, बैंगलुरू व बीआरडी मेडिकल कॉलेज के ज्वाइंट कोऑर्डिनेशन में ऑर्गनाइज इस वर्कशॉप की शुरूआत दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई। चीफ गेस्ट के तौर पर बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ। गणेश कुमार और स्पेशल गेस्ट के तौर पर स्वास्थ्य निदेशक डॉ। जीएन तिवारी मौजूद रहे। आरएमआरसी के डायरेक्टर डॉ। रजनीकांत ने वर्कशॉप के उद्देश्य के बारे में जानकारी दी। इसके बाद पीजीआई चंडीगढ़ फार्माकोलॉजी विभाग के डॉ। विकास मेधी ने 'न्यू ड्रग एंड क्लीनिकल ट्राएल रूल्स 2019 व जीसीपी गाइडलाइंस से पार्टिसिपेंट्स को रूबरू कराया। नेशनल कैंसर ग्रिड, टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल, मुंबई की कंसल्टेंट डॉ। मेधा जोशी ने एथिक्स कमेटी के कंपोजीशन, रोल्स और रिस्पान्सिबिल्टी को डीटेल में समझाया।

200 से ज्यादा पार्टिसिपेंट्स हुए शामिल

डॉ बालू वेणुगोपाल ने एथिक्स कमेटी को डीएचआर में रजिस्टर करने की प्रॉसेस बताई। पूर्व डिप्टी डायरेक्टर जनरल, आईसीएमआर डॉ नंदनी कुमार ने जनरल एथिकल इशुज से लोगों को रूबरू कराया। इस वर्कशॉप में में आरएमआरसी गोरखपुर, बीआरडी मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर यूनिवर्सिटी, एम्स, पीजीआई चंडीगढ़, केजीएमयू लखनऊ के साथ ही देश के दूसरे मेडिकल कॉलेज और यूनिवर्सिटीज से आए 200 पार्टिसिपेंट्स और फैकेल्टी मेंबर्स ने हिस्सा लिया। प्रोग्राम का संचालन डॉ। एना डोगरा, डॉ। अशोक पांडेय व डॉ। हीरावती ने किया।