थाना की हाजिरी पर बंट रही रेवड़ी

RANCHI: झारखंड में बालू लूट की रेवड़ी विभिन्न इलाकों के थानों की हाजिरी पर बांटी जा रही है। सीधे सीधे कहें तो बालू माफियाओं का हर ट्रक थानों को चढ़ावा देने के बाद ही इलाके में प्रवेश करता है। इसका कारण यह है कि सभी थाना क्षेत्रों में हाइवे पेट्रोलिंग, पीसीआर, मोबाइल पेट्रोलिंग, टाइगर मोबाइल जैसी पुलिस फोर्स पूरे इलाके की चौकसी में लगी रहती है। इसके बावजूद बालू की गाडि़यां शहर के अलग अलग इलाकों तक कैसे पहुंच जाती हैं। पुलिस और डिस्ट्रिक्ट प्रशासन के अधिकारियों को बेहतर जानकारी है कि बालू घाट बंद पड़े हैं इसके बावजूद इन गाडि़यों के परिचालन का साफ मतलब है सब कुछ मैनेज है। बालू की अवैध कमाई ऊपर से लेकर नीचे तक सबमे बंटती है। हिस्से का वजन कुर्सी और पावर तय करता है।

दो नम्बर का धंधा

धंधे में सबकुछ दो नंबर है। दो नंबर में बालू का उत्खनन। दो नंबर का चालान। दो नंबर में परिवहन और फिर दो नंबर में ही बिक्री। इनकी पहुंच और पैरवी इतनी पावरफुल है कि ज्यादा चालाकी करने पर दो नंबर वाले एक नंबर वाले को बंधक तक बना ले रहे हैं। सरकार के पास बालू घाट का सुचारू रूप से नहीं चलने का एकमात्र जवाब है कि सरकार स्वयं बालू बेचेगी, इसके लिए पर्यावरणीय स्वीकृति की प्रक्रिया चल रही है।

ट्रैक्टर बन गया हथियार

आलम देखिए छह-सात सौ रुपए प्रति ट्रैक्टर बिकने वाला बालू अब 18 सौ से दो हजार रुपए प्रति ट्रैक्टर बिक रहा है। इससे जहां आम आदमी अधिक पैसे देकर बालू खरीद रहा है। वहीं सरकार को भी राजस्व का चूना लग रहा है। इसमें अधिकारी और बालू माफिया मालामाल हो रहे हैं। विभिन्न घाटों से बालू का उठाव बेरोक-टोक जारी है। नदियों से अवैध तरीके से बालू का उठाव कर ट्रैक्टरों में लादकर शहर में लाकर बेचा जाता है। लेकिन किसी को कोई नहीं रोक रहा है। सारा काम पैसों की लेनदेन से निबट जा रहा है।

यह है लूट की रेट

घाट जहां से बालू का उठाव होता है : 150 रुपये प्रति ट्रैक्टर

अंचल कार्यालय (सीओ ऑफिस) के नाम पर : 150 रुपये प्रति ट्रैक्टर

थाने के नाम पर : 100 रुपये प्रति ट्रैक्टर

परिवहन विभाग के नाम पर : 150 रुपये प्रति ट्रैक्टर

खनन विभाग के नाम पर : 200 रुपये प्रति ट्रैक्टर

दूसरे गांव, पंचायत के युवाओं की कमेटी : 100 से 150 रुपये प्रति ट्रैक्टर

550 करोड़ का अवैध कारोबार

ऊपर दी गयी सूची के हिसाब के बाद जो नतीजा सामने आ रहा है, वो चौंकाने वाला है। राज्य में 472 बालू घाट हैं। जहां से रोजाना वैध और अवैध तरीके से करीब 35 टै्रक्टर बालू का उठाव हो रहा है। यानी 16,520 टै्रक्टर रोज। एक ट्रैक्टर बालू का उठाव करने में 1000 रुपए अवैध तरीके से लिया जाता है। मतलब 1 करोड़ 65 लाख 20 हजार रुपए रोजाना। एक महीने की कमाई हो गयी करीब 49 करोड़ 56 लाख रुपए। झारखंड में करीब एक साल से बालू का उठाव करीब-करीब बंद है। किसी जिले में 14 महीने से तो किसी जिले में 12 महीने यानी एक साल से। इस हिसाब से एक साल में बालू के धंधे से अवैध कमाई हो जाती है करीब 594 करोड़ 72 लाख रुपए। और यह पैसा सीधे सरकारी अधिकारियों और बालू के कारोबार में जुड़े दबंगों की जेब में जा रहा है।

बोला विभाग-डीसी-एसपी हैं जिम्मेदार

विभाग के सचिव अबू बकर सिद्दीकी ने सभी जिलों के एसपी और डीसी को चिट्ठी लिखी है। उन्होंने पूर्व सीएस की भी एक चिट्ठी का हवाला देते हुए सभी जिलों के एसपी और डीसी को कहा है कि अगर उनके जिले में अवैध खनन होता है, तो सीधे तौर पर वो अवैध खनन के लिए जिम्मेदार होते हैं। खनन विभाग के सचिव अबू बकर सिद्दीकी ने कहा कि वैसे तो बरसात में बालू किसी को भी नहीं उठाना है। कोई भी विभाग के नियम को तोड़ कर बालू उठाने का काम करता है तो उसपर कार्रवाई निश्चित रूप से होनी है।

वर्जन

खनन विभाग में मैन पावर की कमी है, इसलिए कुछ पहलुओं पर काम नहीं हो पा रहा है। किसी भी जिले में अगर बालू का अवैध खनन हो रहा है तो उसके लिए सीधे तौर पर डीसी-एसपी जिम्मेदार होंगे।

अबु बकर सिद्दीकी, सचिव, खनन विभाग