मुंबई (मिड-डे)। बॉलीवुड के बारे में कहा जाता है कि यह ऐसी जगह नहीं है जहां हर किसी को सक्सेस के बराबर मौके मिलते हैं। यामी गौतम, जो इस वक्त अपनी अगली मूवी बाला को प्रमोट करने में बिजी हैं, उन्होंने इस इंडस्ट्री में मौजूद भेदभाव के एक पहलू पर बात की। उनका कहना है कि हिंदी सिनेमा में फीमेल एक्टर्स को स्टीरियोटाइप करने की टेंडेंसी मौजूद है। वह कहती हैं, 'लंबे वक्त तक मूवीज महिलाओं के स्टीरियोटिपिकल वर्जन को अच्छे और बुरे के सांचे में रखकर प्रमोट करती रही हैं।

यामी ने बाला को इसलिए कहा था हां

ऑथेंटिसिटी पर फोकस कभी नहीं रहा। कैरेक्टर्स में कोई डीटेल नहीं होती थी, यही वजह रही कि बाला जैसी स्क्रिप्ट ने मुझे अपील किया।' बता दें कि इस मूवी में यामी एक स्मॉल-टाउन 'टिक टॉक' स्टार का रोल कर रही हैं। अमर कौशिक के डायरेक्शन में बनी यह मूवी भूमि पेडनेकर के किरदार के जरिए इंडिया के गोरी स्किन वाली महिला को लेकर ऑब्सेशन के मुद्दे को भी टच करती है।

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'स्ट्रॉन्ग माइंडेड' किरदारों पर फोकस

बात चाहे विकी डोनर की हो, जिसमें इस एक्ट्रेस ने एक ऐसी लड़की का रोल किया था जो अपनी शादी तोड़ देती है या फिर उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक रही हो, जिसमें वह एक अंडरकवर एंजेंट बनीं थीं, यामी ने अपने रोल्स के जरिए यह साबित किया है कि वह अपने किरदार के जरिए पर्दे पर स्ट्रॉन्ग माइंडेड महिलाओं को पर्दे पर पेश करना चाहती हैं। इसका क्रेडिट राइटर्स को देते हुए वह कहती हैं, 'राइटर्स अब महिलाओं के लिए टिपिकल रोल्स लिखने से दूर हट रहे हैं। यह हमें मिल रहे ऑफर्स में नजर भी आ रहा है।'

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