हार्ट ट्रांसप्लांट का केस

ट्रैफिक जाम के चलते मरीजों के दम तोड़ने का किस्सा आम है. बहरहाल चेन्नई का यह केस सभी से अलग है. चेन्नई में साहस और मानवता की एक अलग ही मिशाल देखने को मिली. एक आम युवक की जिंदगी को बचाने के लिए सड़क का पूरा ट्रैफिक रोक दिया गया. ऐसा एक एंबुलेंस को बिना अवरोध के रास्ता देने के लिए किया गया, जो एक दिल को ट्रांसप्लांट के लिए 13 मिनट में 12 किलोमीटर दूर दूसरे हॉस्पिटल में पहुंचाने के मुश्किल मिशन पर निकली थी.

किसी अजूबे से कम नही

12 किलोमीटर की दूरी सिर्फ 13 मिनट में और एक हॉस्पिटल से दूसरे हॉस्पिटल में मरीज तक ट्रांसप्लांट के लिए दिल पहुंचाने की यह कहानी दरअसल किसी अजूबे से कम नहीं है. इसका अंदाजा लगाना कितना कठिन है कि इस दौरान मरीज के परिवार वालों की क्या हालत हो रही होगी.  हॉस्पिटल के डॉक्टरों और ट्रैफिक पुलिस का ये तालमेल सचमुच मानवता की नई इबारत लिखता है. इस घटना से जुड़े लोगों का धैर्य भी काबिलेतारीफ था.

अविश्वसनीय सफर

चेन्नई के सरकारी हॉस्पिटल से एंबुलेंस सोमवार शाम को 6 बजकर 44 मिनट पर निकलती है और  13 मिनट और 22 सेकेंड बाद 6.57 बजे 12 किलोमीटर दूर अड़यार स्थित फोर्टिस मलार हॉस्पिटल तक दिल लेकर पहुंचती है. गौरतलब है कि इन दोनों मेन हॉस्पिटलों को जोड़ने वाली सड़क पर अक्सर भारी ट्रैफिक रहता है और आम तौर पर इस दूरी को तय करने में 45 मिनट लगते हैं.

दिल को शरीर से निकालकर 4 डिग्री सेल्सियस पर एक स्पेशल कंटेनर में रखा गया

इस दिल को कैरी करने वाला 27 साल का एक युवक का था जिसकी मौत हो गई थी. इस मिशन से ठीक पहले उसके दिल को शरीर से निकालकर 4 डिग्री सेल्सियस पर एक स्पेशल कंटेनर में रखा गया था. बाद में इसे 12 किलोमीटर दूर फोर्टिस हॉस्पिटल में भर्ती मुंबई के 21 साल के एक छात्र के शरीर में ट्रांसप्लांट किया जाना था.

हॉस्पिटल पहुंचते ही ऑपरेशन शुरू

सफर के दौरान मरीज के माता-पिता लगातार प्रार्थना कर रहे थे कि उनका बेटा बच जाए. ऑपरेशन के लिए तैयार फोर्टिस के सर्जन्स ने दिल के हॉस्पिटल में पहुंचते ही अपने काम को अंजाम दिया. फोर्टिस के डॉक्टर सुरेश राव ने बताया, 'जैसे ही दिल पहुंचा, हमनें ऑपरेशन शुरू कर दिया गया. रात 10.15 तक यह दिल मरीज के शरीर में धड़क रहा है.'

ध्यान देने योग्य है कि दिल को 4 घंटे तक सुरक्षित रखा जा सकता है, लेकिन इसे जितनी जल्दी मरीज के शरीर में ट्रांसप्लांट कर दिया जाए, उतनी ही ऑपरेशन के सफल होने की और मरीज के जान बचने की संभावना रहती है.

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