एसआरएन हॉस्पिटल में बजट बढ़ने के बावजूद बाहर से दवा खरीदने को मजबूर मरीज

काउंटर पर नही मिल रही हैं दवाएं, डीएम ने दिए हैं डॉक्टर्स चिंहित करने के आदेश

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ALLAHABAD: डीएम का सवाल है कि सरकारी हॉस्पिटल्स के आसपास मौजूद मेडिकल स्टोर्स की रोजी-रोटी कैसे चल रही है? कौन डॉक्टर्स हैं जो बाहर की दवाएं लिख रह हैं? स्वास्थ्य विभाग पर ऐसे डॉक्टर्स को चिन्हित करने की जिम्मेदारी है। इसका जवाब दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने शनिवार को एसआरएन हॉस्पिटल का रियलिटी चेक तलाशने की कोशिश की।

समय- दोपहर एक बजे

फुटबालर विवेक पाल मैच के दौरान गिरकर चोटिल हो गए थे। उनके घुटने में चोट आ गई है। इलाज के लिए वह शनिवार को हड्डी रोग विभाग के कंसल्टेंट डॉ। एके वर्मा की ओपीडी में गए थे। पर्चे पर लिखी दवाएं उन्हें काउंटर से नही मिली। उन्हें यह दवाएं बाजार से महंगे दामों पर खरीदनी पड़ीं।

टाइम- दोपहर 1:10 बजे

खीरी की रहने वाली कविता के सीने और पीठ में दर्द हो रहा था। शनिवार को वह हृदय रोग विभाग की ओपीडी में दिखाने आई थी। यहां पर मौजूद कंसल्टेंट ने उन्हें बाहर की दवाएं लिखकर दे दीं। काफी देर दवा वितरण काउंटर का चक्कर लगाने के बाद मरीज को मेडिकल स्टोर से इसे खरीदना पड़ा।

टाइम- दोपहर 1:25 बजे

सहसों के रहने वाले दीपक कुमार को सिर में दर्द हो रहा था। पिता के साथ वह शनिवार को एसआरएन हॉस्पिटल की ओपीडी में दिखाने आए। उनके पर्चे पर जो दवाएं लिखी गई वह उन्हें बाजार से खरीदनी पड़ीं। उन्होंने बताया कि शनिवार को डॉ। सौरभ आनंद की ओपीडी थी।

टाइम- दोपहर 1:30 बजे

रामबाग की रहने वाली सरला गुप्ता को स्किन प्राब्लम है। शनिवार को वह डॉ। केजी सिंह की ओपीडी में पहुंची थीं। यहां पर उन्हें जो दवाएं लिखी गई वह मेडिकल स्टोर में एक हजार रुपए से अधिक की पड़ीं। रिपोर्टर के पूछने पर सरला गुप्ता ने बताया कि आज तक उन्हें हॉस्पिटल से दवा नही मिली।

बजट बढ़ाने का भी फायदा नहीं

पिछले साल तक एसआरएन हॉस्पिटल में दवाओं का बजट चार करोड़ था जो इस बार बढ़ाकर छह करोड़ कर दिया गया है। फिर भी दवाओं की उपलब्धता बहुत अच्छी नही बताई जा रही है। गिनती की दवाएं छोड़कर मरीज को बाकी सभी दवाएं मेडिकल स्टोर्स से खरीदनी पड़ती हैं।

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एक दर्जन दुकानों पर लगती है भीड़

एसआरएन हॉस्पिटल के कैंपस और आसपास लगभग एक दर्जन मेडिकल स्टोर हैं जहां दोपहर दो बजे तक भयंकर भीड़ होती है। देर रात दवा खरीदने वाले आते हैं। मेडिकल स्टोर संचालक के आदमी दवा खरीदने वालों को सडक पर खड़े होकर पुकारते हैं। हॉस्पिटल के डॉक्टरों की वजह से जमकर फल फूल रहा है इनका धंधा।

पीली पर्ची मिली तो मरीजों को राहत

दरअसल जो डॉक्टर्स जो दवाएं मार्केट की लिखते हैं उनको पीली पर्ची पर नही चढ़ाया जाता। यह इशारा होता है कि दवाएं मेडिकल स्टोर में मिलेंगी। मरीज पीली पर्ची लेकर दवा काउंटर जाते हैं तो उन्हें तत्काल दवा उपलब्ध करा दी जाती है।

छह करोड़ रुपए में हमें दवाओं के अलावा आक्सीजन और केमिकल भी खरीदने होते हैं। यही कारण है कि मरीजों को तमाम दवाएं उपलब्ध नही हो पाती हैं।

प्रो। एसपी सिंह,

प्रिंसिपल, एमएलएन मेडिकल कॉलेज