रडार और इलेक्ट्रो-आप्टिक सिस्टम से हुआ कंट्रोल  
स्वदेशी तकनीक पर आधारित रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित यह बम लक्ष्य से करीब सौ किलोमीटर दूर छोड़ा गया, जिसे रडार व इलेक्ट्रो-ऑप्टिक सिस्टम से नियंत्रित किया. एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि बम को भारतीय वायुसेना के एयरक्राफ्ट से बंगाल की खाड़ी के ओडिशा तटीय क्षेत्र में गिराया गया. इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज (आइटीआर) स्थित रडार व इलेक्ट्रो-ऑप्टिक सिस्टम द्वारा नियंत्रित ग्लाइड बम पूरी परिशुद्धता के साथ लक्ष्य तक पहुंचा. हालांकि डीआरडीओ के महानिदेशक अविनाश चंद्र ने वायुसेना दल के साथ अभियान में शामिल सभी साइंटिस्टों को इस सफलता के लिए बधाई दी है. उन्होंने कहा कि आज देश भारी बम बनाने, विकसित करने और लांच करने में सक्षम हो गया है.

हम हुये आत्मनिर्भर
देश की यह उपलब्धि सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है, जो एक सौ किलोमीटर दूर से छोड़ा गया एक हजार किलोग्राम वजनी बम खुद लक्ष्य तक पहुंचा. वैज्ञानिक जी सतीश रेड्डी ने बताया कि नियंत्रित करने वाले बम के निर्माण के क्षेत्र में देश अब आत्मनिर्भर हो गया है. गौरतलब है कि इस बम को डीआरडीओ की विभिन्न लैब्स - DARE बेंगलुरु, ARDE पुणे, TBRL चंडीगढ़ और RCI हैदराबाद ने विकसित किया है. आधिकारिक बयान के मुताबिक बम में ऑन बोर्ड नेविगेशन सिस्टम है जो इसे गाइड करता है. फिलहाल अब हम चीन, रूस और अमेरिका जैसे देशों की लिस्ट में शामिल हो गये हैं, जो इस तरह के ग्लाइड बम बनाने में माहिर हैं.

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