यहां तक कि जब डेल स्टने ने मैच की आखिरी गेंद पर छक्का जड़ा तब तक भी लोग या तो टेलिविज़न पर आंखें गड़ाए मैच देख रहे थे या कमेंट्री सुन रहे थे जबकि सबको मालूम था कि एक गेंद पर ना तो 14 रन बन सकते हैं और ना ही अब इस मैच का कोई फैसला निकलने वाला है.

यानी पूरी तरह पैसा वसूल मैच वह भी ड्रॉ होने के बावजूद. दरअसल मैच के पहले चार दिन भारत दक्षिण अफ्रीका पर हावी रहा लेकिन उसके बाद जैसे ही पांचवे और अंतिम दिन का खेल आगे बढ़ता गया मैच भारत के हाथ से खिसकता गया.

दक्षिण अफ्रीका ने मैच के पांचवे दिन दो विकेट पर 138 रन से आगे खेलना शुरू किया और चाय के वक्त तक चार विकेट खोकर 331 रन बना लिए तो जैसे सबके मन में एक ही बात आ रही थी कि क्या अब भारत इस मैच में बच सकेगा.

हार की भविष्यवाणी

'मैच भले ही ड्रॉ रहा लेकिन जीत क्रिकेट की हुई'

चाय के वक्त के बाद भी दक्षिण अफ्रीका के फाफ डु प्लेसिस और एबी डिविलियर्स के बल्ले का कहर भारतीय गेंदबाज़ो पर बरसना जारी रहा. एक समय 197 रनों पर चार विकेट गंवाने वाली अफ्रीकी टीम के सामने भारतीय गेंदबाज़ बौने साबित हो रहे थे.

आखिरकार दक्षिण अफ्रीका के 402 रनों के स्कोर पर डिविलियर्स 103 रन बनाकर इशांत शर्मा की गेंद पर बोल्ड हुए और भारत ने राहत की सांस ली. दरअसल एबी डिविलियर्स और डु प्लेसिस के बीच पांचवे विकेट के लिए हुई 205 रनों की साझेदारी ने मैच में नई जान फूंक दी.

मैच के चौथे दिन दो विकेट पर 138 रन बनाने वाली अफ्रीकी टीम की हार की भविष्यवाणी हर क्रिकेट पंडित कर रहा था. डु प्लेसिस ने 135 रन बनाए. इसके बाद भी दक्षिण अफ्रीका जीत की कोशिश कर सकता था लेकिन जेपी डूमिनी के केवल पाँच रन बनाकर आउट होने से उसके हौंसले पस्त होने लगे.

धीरे-धीरे टेस्ट मैच एकदिवसीय क्रिकेट में बदलना शुरू हो गया. एक समय तो ऐसा भी आया जब 16 गेंदो पर 16 रनों की जरुरत थी लेकिन फिलैंडर और स्टेन ज़हीर खान और इशांत शर्मा की गेंदो पर लम्बे-लम्बे प्रहार करने की हिम्मत नही जुटा पाए.

बड़े स्कोर का बचाव

'मैच भले ही ड्रॉ रहा लेकिन जीत क्रिकेट की हुई'

और अंततः जब मैच समाप्त हुआ तब वह जीत के लक्ष्य से आठ रन पीछे थे और मैच ड्रॉ समाप्त हो गया. दक्षिण अफ्रीका की दूसरी पारी में जब कप्तान ग्रैम स्मिथ और अलवीरो पीटरसन ने पहले विकेट के लिए 108 रनो की साझेदारी की थी. दरअसल भारत के लिए खतरे की घंटी तो तभी बज चुकी थी.

अजिक्य रहाणे की चुस्त और तेज़ तर्रार फिल्डिंग की वजह से भारत मैच में बच पाया. उन्होने पहले तो खतरनाक बनते जा रहे स्मिथ और उसके बाद फाफ डु प्लेसिस को रन आउट कर दक्षिण अफ्रीका को बड़े झटके दिए वह भी बड़े ही महत्वपूर्ण अवसर पर.

अब कुछ बात भारतीय टीम की भी हो जाए जिसकी वजह से मैच बेहद रोमांचक अदांज़ में समाप्त हुआ. मैच भले ही ड्रॉ रहा लेकिन कहने वाले कह रहे हैं कि ऐसा केवल भारतीय टीम के साथ ही संभव है कि वह 458 रन जैसे बड़े स्कोर का बचाव करने में भी बेबस नज़र आई.

ज़हीर खान ने पहली पारी में शानदार गेंदबाज़ी की लेकिन दूसरी पारी में वे एकदम साधारण लगे. ऑफ़ स्पिनर आर अश्विन को तो दोनो पारियों में एक भी विकेट नही मिला. युवा बल्लेबाज़ चेतेश्वर पुजारा ने मैच की दोनो पारियों में विकेट पर टिकने का दमख़म दिखाया तो दूसरी पारी में शानदार शतक भी जमाया.

क्रिकेट का हिस्सा

'मैच भले ही ड्रॉ रहा लेकिन जीत क्रिकेट की हुई'

विराट कोहली थोड़ा बदकिस्मत रहे जो दोनो पारियों में शतक बनाने से चूक गए. इसके बावजूद भारत के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की किस्मत के क्या कहने, एक समय निश्चित हार को ड्रॉ में बदलने में कामयाब रहे.

वैसे कहने वाले कुछ भी कहते रहे लेकिन मैच का टर्निंग प्वॉयंट तब आया जब भारत की दूसरी पारी में क्षेत्ररक्षण करते हुए दक्षिण अफ्रीका के तेज़ गेदंबाज़ मोर्ने मोर्कल चोट खा बैठे और केवल दो ओवर की गेंदबाज़ी कर सके. भारत की पहली पारी में मोर्कल ने केवल 34 रन देकर तीन विकेट लिए थे.

मैदान में उनकी ग़ैरमौज़ूदगी का पूरा फ़ायदा उठाते हुए भारत ने दूसरी पारी में 421 रन बना डाले.

अब भले ही खेल के मैदान में यह सब क्रिकेट का एक हिस्सा हो लेकिन इसके बावजूद यही वह सब कारण थे जिसकी वजह से एक समय जोहिनिसबर्ग में क्रिकेट प्रेमियों की जान गले में अटक गई थी.

मैच भले ही ड्रॉ रहा लेकिन जीत क्रिकेट की हुई.

International News inextlive from World News Desk