- भारतीय पदार्थो से विदेशी बना रहे दवाएं

- मेडिकॉन: 2016 का राज्यपाल ने किया समापन

- रिसर्च सीखने को मेडिकोज करें शार्ट टर्म कोर्स

LUCKNOW: ऑस्ट्रेलिया से आए प्रो। लिंडसे ब्राउन का कहना है कि विदेशी भारतीय पदार्थो में मिलने वाले तत्वों के माध्यम से विभिन्न प्रकार की दवाएं निर्मित कर रहे हैं। भारत उन्हीं दवाओं को विदेश से महंगी दरों पर खरीद रहा है। यदि भारतीय अपनी खाद्य संपदा को पहचाने और उन पर रिसर्च करें तो देश में सस्ती दवाएं आसानी बनायी जा सकती हैं। वह चार दिवसीय मेडिकॉन 2016 के अंतिम दिन मेडिकोज को संबोधित कर रहे थे।

प्रभावशाली दवाओं की क्षमता

एराज लखनऊ मेडिकल कालेज एण्ड हॉस्पिटल में आयोजित बेड टू बेडसाइड: ट्रांसलेशनल मेडिसिन वर्कशॉप में बोलते हुए प्रो। ब्राउन ने एमबीबीएस छात्रों को रिसर्च के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा कि भारत जैव विविधता वाला देश है ऐसे में यदि उन पर उचित प्रकार रिसर्च की जाए तो ऐसे परिणाम सामने आएंगे जिससे समाज को काफी लाभ होगा। प्रो। ब्राउन ने कहा कि आज सुस्ती व थकावट दूर भगाने से लेकर हार्ट अटैक तक की दवाएं लोगों को यह अहसास करा रही हैं कि प्रत्येक समस्या के लिए दवा मौजूद है। दवाओं पर अतिनिर्भरता से व्यक्ति के शरीर की अंदरूनी रोग प्रतिरोधक क्षमता घट रही है। यही स्थिति रही आने वाली पीढ़ी दवाओं के सहारे ही जीवित रहेगी। यदि व्यक्ति प्राकृतिक स्त्रोतों का प्रयोग करें तो उसे दवाएं लेने की आवश्यकता नहीं होगी। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में विभिन्न बीमारियों के लिए जो दवाएं प्रयोग हो रही हैं वह उन्हीं तत्वों से बनीं हैं जो प्रकृति ने पहले से ही हमारे बीच उपलब्ध करा रखीं हैं। ऐसे में दवाओं पर निर्भर होने की बजाय मनुष्य यदि उन्हीं प्राकृतिक तत्वों को प्रचुर मात्रा में नियमित सेवन करे तो रोगों से बचा जा सकता है। उन्होंने पर्पल कैरट यानि गाजर व बेरी का जिक्र करते हुए बताया कि उनमें कई पौष्टिक तत्व होते हैं जो रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाते हैं।

अंडर ग्रेजुएट छात्रों के लिए शार्ट टर्म कोर्स

कांफ्रेंस में डॉ रोली माथुर ने कहा कि एमबीबीएस करने वाले ग्रेजुएट स्टूडेंट्स को रिसर्च की बारीकियां सीखने के लिए दो माह का शार्ट टर्म कोर्स करना चाहिए। उन्हें पता चलता है कि रिसर्च के दौरान उन्हें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिसिल रिसर्च(आईसीएमआर) की वैज्ञानिक डॉ। माथुर ने छात्रों को बताया देश में रिसर्च के लिए फंड कम हैं लेकिन कई ऐसे संस्थान हैं जो रिसर्च करने वाले छात्रों को प्रोत्साहन धनराशि उपलब्ध कराते हैं। उन्होंने छात्रों को उन संस्थानों के नामों की भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि देश में कई ऐसे संस्थान हैं जहां निर्धारित रोग जैसे वायरोलॉजी, क्षयरोग, एचआईवी, कालरा, कुष्ठ पर ही रिसर्च की जाती है। उन्होंने बताया कि सरकार अब रिसर्च आरिएंटेड मेडिकल एजुकेशन (आरओएमई) एसटीएस प्रोग्राम चला रहा है जिसके सहारे छात्रों को वह सभी जानकारियां दी जाएंगी जो उनकी रिसर्च में मददगार साबित होंगी।

शुरू हुआ नया विभाग

डॉ। रोली माथुर ने छात्रों को पब्लिक हेल्थ रिसर्च इन इंडिया नाम से शुरू हुए नये विभाग की कार्य प्रणाली से भी परिचत कराया। उन्होंने बताया कि मॉडल रूरल हेल्थ रिसर्च यूनिट में वर्ष 2001 में रिसर्च के लिए 80 छात्रों ने पंजीकरण कराया था लेकिन वर्ष 2016 में यह संख्या बढ़कर 7500 हो गयी है जो यह बताती है कि छात्र रिसर्च में रूचि ले रहे हैं। डॉ। माथुर ने सभी छात्रों से अपील की कि वह अधिक से अधिक सं या में रिसर्च करें ताकि उसका लाभ समाज को मिल सके।

राज्यपाल ने किया समापन

मेडिकॉन के समापन पर राज्यपाल राम नाइक ने भावी चिकित्सकों को उनकी ड्यूटी समझाईं। मनावता का पाठ पढ़ाते हुए सलाह दी कि डॉक्टर सप्ताह में एक बार अपना शहर छोड़कर गांव में जाएं। गांव में रह रहे लोगों के इलाज का संकल्प लें तो यह सबसे बड़ी मानव सेवा होगी.इस मौके पर राज्यपाल ने मेडिकॉन-2016 में प्रतिभाग करने वाले 34 विजयी छात्र- छात्राओं को सम्मानित किया।