मुझे पहलवानी पसंद थी

मेरे पिताजी पहलवान थे। मुझे पहलवानी पसंद तो थी, लेकिन खुद पहलवान बनने में कभी कोई दिलचस्पी नहीं थी। उन दिनों पिताजी का मन रखने के लिए कुछ समय तक मैं अखाड़े में जाता था, लेकिन पड़ोस के मेरे साथी संगीत सीखते थे और उनके साथ रहकर ही मेरा रुझान संगीत की ओर बढ़ा। बांसुरी बजाना बेहद पसंद था। बस फिर क्या था, मैंने अपने पिताजी से इस बारे में बात की और उन्होंने मेरी इच्छा को समझते हुए मुझे आज्ञा दे दी। बस उसके बाद से ही मैंने संगीत की ओर अपने कदम बढ़ाए और वो सफर आज मेरी 85 साल की उम्र में भी जारी है।

Nervous हुआ था पहली बार

मुझे आज भी याद है। मेरी पहली इंटरनेशनल परफॉर्मेंस लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में हुई थी। उस दिन स्टेज में पहुंचते ही मैं नर्वस हो गया था। हजारों की भीड़ से भरा हुआ ऑडिटोरियम सिर्फ मुझे ही देख रहा था। उस दौरान बांसुरी बजाने के लिए मेरी पहली फूंक ही नहीं निकली, फिर दूसरी फूंक में घबराहट का अहसास था, लेकिन उसके बाद जब मैंने बांसुरी बजाना शुरू किया तो मानों हर कोई तालियों से मेरा स्वागत कर रहा था। बस फिर क्या था मेरा उत्साह और आत्मविश्वास दोगुना हो गया।

Music में आए बदलाव

संगीत में आए दिन काफी बदलाव आ रहे हैं। ज्यादातर लोगों के लिए संगीत वही है जो फिल्मों से सुनाई पड़ता है। ऐसे में संगीत अलग-अलग रूप में लोगों को एंटरटेन भी कर रहा है, लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि सादगी का कोई ट्रेंड नहीं होता है। शास्त्रीय संगीत हमारी परंपरा और संस्कृति है। देश-विदेश में लोग इसे सुनना पसंद करते हैं। हजारों साल पहले भी इस संगीत को लोग इस ही तरह से पसंद करते थे और आज भी लोगों के बीच इसकी लोकप्रियता अपने उसी अंदाज से है। क्योंकि इस संगीत में सादगी बसती है, जिसका बदलते हुए ट्रेंड या लिसनर्स से कोई लेना देना नहीं है।

संगीत एक साधना

मेरे पास नए संगीत में रुचि रखने वाले कई लोग संगीत सीखते हैं, लेकिन मैं कभी ये नहीं समझता कि मैं ही उन्हें सीखा रहा हूं। उनकी सीखने की ललक और जिज्ञासा से मुझे खुद बहुत कुछ सीखने को मिलता है। संगीत एक परम ज्ञान है, जिसका कोई अंत या सीमा नहीं है। इसे सीखने के लिए धैर्य, रुझान और आत्मसमर्पण चाहिए। संगीत को साधना और तप की संज्ञा दी जाती है और वो गलत नहीं है। आप जितना उसे सीखते हैं, उतना ही उसमें डूबते चले जाते हैं।