1.वोट देने का अधिकार आपके लिए क्या मायने रखता है?

क. यह सिर्फ एक संवैधानिक अधिकार है   19 फीसदी

ख. बहुत, क्योंकि इसके माध्यम से मैं बहुत कुछ बदल सकता हूं  75 फीसदी      

ग. मुझे इसकी परवाह नहीं  06 फीसदी

घ. पता नहीं 31 फीसदी

इस सवाल के जवाब में यूपी के यूथ नो जवाब दिया, वह स्टेट की पॉलिटिक्स के लिए एक हेल्दी सिग्नल है. 75 फीसदी यानि तीन चौथाई यूथ ने कहा कि इस अहम अधिकार से वह करेंट सिस्टम में बड़ा चेंज ला सकते हैं. सिर्फ 19 फीसदी ने कहा कि यह महज एक संवैधानिक अधिकार है. बहुत छोटी तादाद यानी सिर्फ 6 फीसदी का ओपिनियन यह रहा कि वे वोट देने के अधिकार की ज्यादा परवाह नहीं करते. ये नतीजे बताते हैं कि हमारा यूथ संविधान में दिए गए राइट्स को लेकर कितने सेंसिटिव और अवेयर हैं. इसको यूज करके वो बड़े पैमाने पर नेशन बिल्डिंग प्रोसेस में भाग लेना चाहते हैं. खास बात यह रही कि सभी मेल और फीमेल यूथ वोटर्स ने एकमत से चेंज लाने की ख्वाहिश जतार्ई. दोनों जेंडर के 75 फीसदी यानी तीन चौथाई यूथ वोटर्स ने वोटिंग को चेंज का सबसे बड़ा हथियार माना.

सर्वे में जिन यूथ ने अच्छे कैंडिडेट के फेवर में कॉलेज-यूनिवर्सिटी लेवल पर ग्र्रुप कैम्पेन करने की इच्छा जताई, उससे 5 फीसदी ज्यादा यानी करीब 80 फीसदी यूथ ने कहा कि वोट करके वो बड़ा चेंज ला सकते हैं.

2. क्या आपका कोई पॉलिटिकल एम्बिशन है या देशसेवा के लिए आप फ्यूचर में चुनाव लडऩा चाहेंगे?

. हां 41 फीसदी

ख.नहीं 30 फीसदी

ग. मुझे राजनीति से नफरत है12फीसदी

घ. कह नहीं सकता 17फीसदी

कौन कहता है कि आज का यूथ पॉलिटिक्स से दूर रहता है. सर्वे के रिजल्ट तो यही बता रहे हैं. एक तिहाई से ज्यादा यूथ यानी करीब 42 फीसदी ने कहा कि वो पॉलिटिकल एम्बिशन रखते हैं. यानी मौका मिला तो वे पॉलिटिक्स के मैदान में उतरकर बड़े-बड़ों के छक्के छुड़ाने को तैयार हैं. देशहित के लिए उन्हें पॉलिटिक्स में आने से कोई गुरेज नहीं. हालांकि एक तिहाई यानी 30 फीसदी यूथ ने कहा कि फ्यूचर में पॉलिटिक्स में जाने की उनकी कोई चाहत नहीं है.

नहीं है राजनीति से नफरत :

सर्वे में हमने एक बहुत ही इंटरेस्टिंग जवाब का ऑप्शन दिया था- ‘मुझे राजनीति से नफरत है’. सिर्फ 12 फीसदी यूथ ने कहा कि दे हेट पॉलिटिक्स. हालांकि एक बड़ी तादाद यानी 17 फीसदी यूथ इस बारे में अपनी कोई राय नहीं बना पाए.

3. जरूरत पड़ी तो किसी अच्छे कैंडिडेट को जिताने के लिए आप कॉलेज या यूनिवर्सिटी लेवल पर कोई मुहिम चलाएंगे या ऐसे किसी ग्र्रुप कैम्पेन से जुड़ेंगे?

क. हां -52

ख. नहीं - 22फीसदी

ग. मेरे पास वक्त नहीं है -19 फीसदी

घ. पता नहीं-7 फीसदी

इस सवाल का जवाब भी आपको क्लीन बोल्ड कर देगा. यूपी में पिछले कई सालों से भले ही राजनीति की पहली पाठशाला यानी स्टूडेंट यूनियन के चुनाव न हुए हों, लेकिन कॉलेज में पढऩे वाला यूथ पॉलिटिकली जरा भी इनएक्टिव नहीं है. सर्वे में पार्टिसिपेट करने वाले

आधे से ज्यादा यानी 52 फीसदी यूथ ने कहा कि हां, वो अच्छे कैंडिडेट को जिताने के लिए कॉलेज लेवल पर ग्र्रुप कैम्पेन चलाने को तैयार हैं. सिर्फ 22 फीसदी ने इससे इनकार किया. हालांकि इससे थोड़ी कम तादाद यानी 19 फीसदी यूथ ने कहा कि उनके पास इन सबके लिए टाइम नहीं है. मतलब यह हुआ कि अगर उन्हें मोटिवेट किया जाए या अपाच्र्यूनिटी मिले, तो वो भी ग्र्रुप कैम्पेनिंग के पार्ट बन सकते है. बहुत छोटी तादाद यानी 7 फीसदी यूथ इस मामले में अनडिसाइडेड थे.

4. क्या अपने मनपसंद कैंडिडेट को जिताने के लिए आप इलेक्शन कैम्पेन में हिस्सा लेंगे?

क. हां-50फीसदी

ख.नहीं-33

ग.कह नहीं सकते-17फीसदी

यहां पर हमने सवाल थोड़ा चेंज कर दिया. हमने कॉलेज-यूनिवर्सिटी लेवल पर ग्र्रुप कैम्पेन नहीं, बल्कि इंडिविजुअल लेवल पर इलेक्शन कैम्पेन में हिस्सा लेने की बात पूछी. जहां ग्र्रुप कैम्पेन में 52 फीसदी यूथ भाग लेने को तैयार थे, वहीं इंडिविजुअल लेवल पर इससे थोड़ा कम यानी 50 फीसदी यूथ ही पार्टिसिपेट करने को तैयार नजर आए. चौंकाने वाली बात यह रही कि जब इलेक्शन कैम्पेन में जुडऩे की बात कॉलेज लेवल पर न होकर इंडिविजुअल लेवल पर आई, तो ‘नहीं’ बोलने वालों की तादाद बढ़ गई. एक तिहाई से ज्यादा यानी 33 फीसदी यूथ ने कहा कि वो इंडिविजुअल लेवल पर इलेक्शन कैम्पेन में हिस्सा नहीं लेना चाहेंगे जबकि कॉलेज लेवल पर सिर्फ 22 फीसदी यूथ ने इसमें भाग लेने से मना किया था.

मतलब साफ है. कॉलेज लेवल पर दोस्तों का साथ और ग्र्रुप में काम करना उन्हें ज्यादा भाता है. इसमें वे ज्यादा कॉन्फिडेंट और कमफर्टेबल महसूस करते हैैं. हालांकि यहां भी 17 फीसदी की एक बड़ी तादाद फैसला नहीं ले सकी कि वे कैम्पन से जुडऩा चाहेंगे या नहीं.

5. अपने मनपसंद कैंडिडेट को जिताने के लिए आप किस हद तक इलेक्शन कैम्पेन से जुड़ सकते हैं?

क.फुल टाइम-11फीसदी

ख.पार्ट टाइम-38 फीसदी

.सिर्फ इंटरनेट या सोशल नेटवर्किंग साइट के मार्फत-40फीसदी पता नहीं-11फीसदी

इस सवाल के जवाब में यूथ का रवैया सोचने को मजबूर करता हैै. सर्वे में भाग लेने वाले 40 फीसदी से ज्यादा यूथ पॉलिटिकल एम्बिशन तो रखते हैं लेकिन जब इलेक्शन कैम्पेन से जुडक़र राजनीति का ककहरा सीखने की बात आती है तो बहुत कम तादाद में यानी सिर्फ 11 फीसदी यूथ ही फेवरेट कैंडिडेट को जिताने के लिए फुल टाइम इलेक्शन कैम्पेन से जुडऩे को तैयार हुए.

इसमें दिलचस्प पहलू यह रहा कि यूथ को पार्ट टाइम इन्वॉलवमेंट भाता है.

ऐसे यूथ की तादाद 38 फीसदी और इंटरनेट के माध्यम से जुडऩे वालों की तादाद 40 फीसदी रही. यानी कुल मिलाकर करीब 78 फीसदी यूथ पार्ट टाइम भाग लेने के फेवर में है. मायने साफ हैं. कैरियर और एजुकेशन पर फोकस कर रहे यूथ के पास फिलहाल इलेक्शन कैम्पेन में फुल टाइम भाग लेने का समय नहीं है. हां, मॉडर्न टेक्नोलॉजी के द्वारा वह अपना जुड़ाव जरूर बनाए रखना चाहते हैं. करीब 11 फीसदी यूथ कुछ डिसाइड कर पाने की सिचुएशन में नहीं थे.

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