जब-जब महंगाई बढ़ती है, पब्लिक का दिल जल उठता है। मगर, अबकी गंगा उल्टी बह निकली है। पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी के बावजूद महंगाई अपने पूरे चरम पर है। बिचौलिए और मुनाफाखोर मंहगाई की इस आग में हर पल घी डालकर अपनी जेबें भर रहे हैं। मुनाफाखोरी का यह सिलसिला कमर तोड़ महंगाई से जूझते आम आदमी के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम कर रहा है। महंगाई के जख्मों से कराह रही जनता के दर्द को पेश करती आई नेक्स्ट की यह खास रिपोर्ट -

- बीते 6 महीनों में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में गिरावट, फिर भी किराया-भाड़ा और खाने-पीने की चीजों के दाम में नहीं आई कमी

- बिचौलिए और मुनाफाखोर महंगाई की आग में घी डालकर भर रहे अपनी जेबें, पब्लिक को लग रहा चूना

kanpur@inext.co.in

KANPUR : पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार गिरावट ने उम्मीद जगाई थी कि खाने-पीने की चीजों के दाम भी कम होंगे। मगर, यहां तो उल्टी गंगा ही बह रही है। खाने-पीने की चीजों के दाम घटे नहीं। जरीब चौकी से रामादेवी तक बस-टेम्पो का किराया हो। या फिर परचून की दुकान में बिकने वाली मसूर की दाल या गेंहू-आटा सब्जी मंडी में बिकने वाली शिमला मिर्च, गोभी हो या फिर फल मंडी में मिलने वाला सेब और केला। इन सबकी कीमतों में उस स्तर का फेरबदल नहीं हुआ। जिसे देखकर आम जनता राहत की सांस ले सके। बड़े व्यापारी और बिचौलिए कीमतों में न तो कमी होने दे रहे हैं। न ही खुलकर कुछ बोल ही रहे हैं। मुनाफे की इस बंदरबांट में चूना सिर्फ और सिर्फ जनता जनार्दन को लग रहा है।

दो साल के न्यूनतम स्तर पर

पिछले म् महीनों के दौरान डीजल व पेट्रोल के रेट कई बार कम हुए है, लेकिन पब्लिक ट्रांसपोर्ट्स पर कोई असर नहीं पड़ा है। पेट्रोल क्भ्.78 रुपए प्रति लीटर, डीजल क्0.क् रुपये प्रति लीटर व सीएनजी करीब भ् रुपये प्रति किलो सस्ती हुई है। जुलाई ख्0क्ब् तक पेट्रोल 8क्.ब् रुपए प्रति लीटर पहुंच गया था। जो आज घटकर म्भ्.म्ख् रुपए प्रति लीटर बिक रहा है। इसी तरह डीजल भी जुलाई ख्0क्ब् में अपने पीक पर था। उसकी आज की कीमत भ्ख्.99 रुपये तक पहुंच चुकी है। दोनों ही फ्यूल बीते ख् साल के न्यूनतम स्तर पर हैं। कुछ यही हाल सीएनजी का है। जनवरी-ख्0क्ब् में भ्भ् रुपये प्रति किलो बिकने वाली सीएनजी आज भ्0 रुपए प्रति किलो पर उपलब्ध है। इन सबके बावजूद न तो बस, टेम्पो-ऑटो के किराए में कोई कमी आई। न ही खाने-पीने की चीजों में। इन सबके लिए आम जनता को पहले जैसी कीमतें ही चुकानी पड़ रही हैं।

किराया जस का तस

ईंधन के रेट भले ही न्यूनतम स्तर पर हों, मगर किराए पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट में आम जनता से एक साल पहले वाला किराया ही वसूला जा रहा है। परिवहन विभाग की बसों का किराया आज 80 पैसे प्रति किलोमीटर है। यह लॉन्ग रूट का किराया है। मगर, पिछले एक साल से एक समान रूप से वसूला जा रहा है। कुछ यही हाल टैम्पो व ऑटो का है। टैम्पो-आटो इस समय भ् रुपए प्रति पैसेंजर न्यूनतम किराया चार्ज कर रहे है। मतलब, ख् किलोमीटर तक भ् रुपये तक का फिक्स किराया। इसके अलावा प्रति किलोमीटर लगभग क्.भ् रुपए पैसेंजर से चार्ज किया जाता है। यह रेट पिछले ख् साल से लागू हैं। यह हाल तब है जबकि बीते एक साल महीनों में सीएनजी के दाम भ् रुपए तक गिरे हैं।

खाने-पीने की कीमतें भी नहीं घटी

पेट्रोल, डीजल व सीएनजी के दाम घटने के बाद भी ट्रांसपोर्टर्स ने भाड़े की दरों में कोई कमी नहीं की है। इसका असर सीधे पब्लिक की जेब पर पड़ रहा है। सब्जी, दाल हो या अन्य सामान। सबकी कीमतें जस की तस हैं। उल्टा, इस वक्त तो सब्जियों की कुछ कीमतें बढ़ी हैं। दरअसल, बिक्री के समय सामान में किराया-भाड़ा भी जोड़ा जाता है। पिछले म् महीनों में सबसे ज्यादा कीमत दालों की बढ़ी हैं। म्म् रुपए किलो मिलने वाली मसूर की दाल अब 7ब् रुपए किलो बिक रही है। इसी तरह 80 रुपए किलो मूंग की दाल की कीमत 90 रुपए पहुंच चुकी है।

सब्जी-फलों पर भी चढ़ा रंग

एक ओर खराब मौसम और दूसरी ओर बिचौलियों और मुनाफाखोरों की कारस्तानी। इन सबका असर फलों पर भी पड़ रहा है। करीब छह महीने पहले सेब 80-90 रुपये किलो बिक रहा था। आज वही सेब क्00 रुपए किलो के हिसाब से बिक रहा है। केला भी ब्0 रुपए दर्जन मिल रहा है। सब्जियों की कीमत में भी आग लगी हुई है। नई फसल के बावजूद आलू क्0 रुपए किलो से नीचे नहीं आ रहा है। इसी तरह शिमला मिर्च भी म्0 रुपए किलो, टमाटर ख्भ् रुपए किलो, गोभी ख्0-ख्भ् रुपए पीस बिक रही है।

पब्लिक की जेब में सीधे-सीधे डाका

पेट्रोल, डीजल व सीएनजी के दाम कम होने के बाद भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट के रेट कम न होने से पब्लिक की जेब में सीधे-सीधे डाका पड़ता है। अगर पब्लिक ट्रांसपोर्ट के किराए की बात की जाए तो एक बार जब किराया बढ़ जाता है तो फिर वो दोबारा कम नहीं होता है। सन ख्00म् में बस, ऑटो और टेम्पो का न्यूनतम किराया ख् रुपये प्रति पैसेंजर था। सन ख्008 में टेम्पो का किराया बढ़कर न्यूनतम फ् रुपए हो गया। फिर ख्0क्फ् में भ् रुपए प्रति पैसेंजर हो गया। इसी तरह ऑटो का किराया भी पहले ब् रुपए फिर भ् रुपए प्रति पैसेंजर हो गया। इसी तरह से बस का न्यूनतम किराया ख्0क्0 में फ् रुपए हुआ फिर ख्0क्फ् में भ् रुपये प्रति पैसेंजर हो गया। आज जब पेट्रोल-डीजल, सीएनजी के रेट घटे हैं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट का किराया कम नहीं हो सका।

किराया स्टैंडर्ड :

टैम्पो - क् किलोमीटर तक म्.फ्0 रुपए। फिर प्रति किलोमीटर के हिसाब से किराया फ्.भ्0 रुपए बढ़ता जाता है।

ऑटो - क् किलोमीटर तक भ्.90 रुपए। फिर प्रति किलोमीटर के हिसाब से किराया ख्.80 रुपए बढ़ता जाता है।

रोडवेज बस - प्रति किलोमीटर 80 पैसे।

सिटी बस: 9क् पैसे प्रति किमी।

(नोट : रेट टैम्पो की म् सवारी व आटो की फ् सवारी के लिए है। अगस्त ख्0क्फ् में आरटीए ने निर्धारित किया है। वहीं रोडवेज बसों के रेट परिवहन विभाग व सिटी बसों के फिक्स रेट जिला प्रशासन के है.)

स्टेशन से रावतपुर तक किराया -

आटो- क्0 रुपये प्रति पैसेंजर

टैम्पो- क्ख् रुपये प्रति पैसेंजर

सिटी बस- क्भ् रुपये प्रति पैसेंजर

कमोडिटी उपभोक्ता

म् महीने पहले अब

मसूर म्म् 7ब्

मूंग 80 90

चना भ्भ् म्भ्

चावल ख्भ्-फ्0 फ्0

राजमा 7भ् क्क्0

छोला 77 क्क्0

आटा ख्क् ख्क्

सेब 90 क्00

केला ख्भ् फ्0

(नोट : प्राइज प्रति किलो के हिसाब से.)

मुनाफाखोर भी कर रहे हाथ साफ

आम आदमी की जेब काटने में सबसे बड़ा हाथ जमाखोरों का है। मंहगाई बढ़ने पर जमाखोर स्टॉक रोककर माल की आर्टीफिशियल क्राइसिस क्रिऐट कर देते हैं। स्टॉक होल्ड कराकर कीमतें बढ़वाने में बिचौलिये बिग रोल प्ले करते हैं और मुनाफा भी जमकर कमाते हैं। मुनाफे की मैथेमेटिक्स को आप भी समझ लीजिए। दरअसल, व्यापारियों का एक वर्ग ऐसा है जोकि खेतों में फसल काटे जाने के सीधा किसान से अनाज खरीदता है। यह व्यापारी कुछ परसेंट मुनाफा कमाकर आढ़तियों को अनाज बेचते हैं। आढ़ती के पास से अनाज होलसेलर और फिर रिटेलर को बेचा जाता है और रिटेल शॉप से कस्टमर चीजें खरीदकर घर ले जाता है। इस पूरी कड़ी में नुकसान सिर्फ और सिर्फ किसान और कंज्यूमर का होता है। बिचौलिये चांदी काटते हैं और लोग परेशान होते हैं।

इस 'खेल' को तो समझिए

किसान से लेकर कस्टमर्स तक सामान पहुंचते-पहुंचते एक नहीं कई 'खेल' हैं। इनमें से एक 'खेल' है सामान को स्टोर कर लेना। जब कोई चीज काफी मात्रा में पैदा होती है तो होल सेलर किसान से लेकर उसको स्टोर कर लेते हैं और फिर जब मार्केट में उस सामान की शॉर्टेज होती है तो उसको मनमाने दाम में बेंचते हैं। जैसे किसान से होलसेलर ने ख् रुपए किलो आलू खरीद लिया। फिर जब मार्केट में आलू के दाम बढ़ गए तो उसको क्0 रुपए किलो के दाम पर रिटेलर को बेच दिया। रिटेलर ने दो रुपए कमाने के बाद एक किलो आलू क्ख् रुपए में कस्टमर को बेच दिया। इस पूरे 'खेल' में न तो किसान को कोई फायदा हुआ और न कस्टमर्स को। फायदा सिर्फ किसान से कस्टमर के बीच वाले लोगों को हुआ। ऐसे में आप खुद समझ सकते हैं किसको फायदा और किसको नुकसान होता है।