- सिर्फ मैसूर में तैयार होती है इलेक्शन इंक

- 25 देशों में सप्लाई होती है भारत की इलेक्शन इंक

- 2009 के इलेक्शन में यूज हुई थीं 1.9 मीलियन बोतल

- इस बार 2.5 मीलियन बोतलों का हो सकता है यूज

- एक बोतल से करीब 700 लोगों को लग सकती है इंक

- मेरठ के एक बूथ पर होती है दो बोतल इस्तेमाल

- यूपी में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होती है इंक

- पोर्ट ब्लेयर में सबसे कम यूज होती है यह इंक

sharma.saurabh@inext.co.in

Meerut : लोकतंत्र का सबसे बड़ा मेला शुरू हो गया है। देश में 80 करोड़ से ज्यादा मतदाता वोट करने को तैयार बैठे हैं। आपने कभी सोचा है कि वोट करने से पहले पीठासीन अधिकारी आपको उंगली पर जो इंक लगाता है, वो क्या है? अधिकतर लोगों को इस इंक के बारे में बस इतनी जानकारी है कि इसके लगने बाद कोई भी वोटर दोबारा वोट नहीं कर सकता है। आखिर ये इंक है क्या? ये इंक कहां से आती है? इस इंक का सबसे पहले कब और कहां इस्तेमाल हुआ था? आइए आपको भी इस इंक के बारे में जानकारी देते हैं

कर्नाटक से आती है इंक

पीठासीन अधिकारी उल्टे हाथ की जिस उंगली पर इंक लगाता है वो कर्नाटक के मैसूर जिले से आती है। मैसूर में यह इंक मैसूर पेंट्स एंड वार्नश लिमिटेड कंपनी तैयार करती है, जो कर्नाटक सरकार के अंडर में है। आपको बता दें कि ये कंपनी देश में ऐसी इकलौती कंपनी है, जिसे इलेक्शन इंक बनाने और बेचने का अधिकार रखती है। इसके इतिहास के बारे में बात करते हुए इतिहासकार मनोज गौतम बताते हैं कि क्9फ्7 में मैसूर के राजा नलवदी कृष्णा राजा वेदियार ने कंपनी को डेवलप किया था। आजादी के बाद इस कंपनी को पब्लिक सेक्टर में डाल दिया गया।

तीसरे लोकसभा से शुरुआत

सहायक जिला निर्वाचन अधिकारी वीरेंद्र कौशिक याद करते हुए बतात हैं कि पहली बार इलेक्शन इंक का इस्तेमाल तीसरे लोकसभा चुनाव यानी क्9म्ख् में हुआ था। इसके बाद देश के हर चुनाव में इसका इस्तेमाल होने लगा। वीरेंद्र कौशिक बताते हैं कि उस समय इंक का इस्तेमाल करना काफी क्रांतिकारी कदम था। उस दौर में ही ये बात साफ होने लगी थी कि देश के कई हिस्सों में फर्जी वोटिंग हो रही है। जिसे रोकने का यही मात्र तरीका हो सकता है।

गुप्ता रखा गया फॉर्मूला

जानकारों की मानें तो इस इंक का पेटेंट हो चुका है, जिसे भारत सरकार की ओर से पूरी तरह से गुप्त रखा गया है। इस इंक को बनाने में नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी का काफी बड़ा योगदान है। वैसे कुछ लोग बताते हैं कि इस इंक में सिल्वर नाइट्रेट और एल्कोहल मिला होता है, जिससे स्किन पर इंक लगते ही क्भ् सेकंड में सूख जाती है।

700 पर एक बोतल

अगर देश के चुनावों में इंक इस्तेमाल की बात की जाए वर्ष ख्009 के चुनावों में क्.9 मीलियन बोतल इंक इस्तेमाल हुई थी। एक बोतल क्0 एमएल की थी। वहीं वर्ष ख्00ब् के चुनावों में क्.म्7 मीलियन बोतल इस्तेमाल हुई थी। एक बोतल का वॉल्यूम मात्र भ् एमएल था। जिला सहायक निर्वाचन अधिकारी वीरेंद्र कौशिक की मानें तो पिछली बार जिले में क्0 एमएल की बोतल आई थी और एक बोतल से 700 वोटर्स के इंक लगी थी। मेरठ लोकसभा सीट पर करीब क्भ् लाख मतदाता थे। वहीं करीब क्भ्00 के करीब मतदाता स्थल थे। इस हिसाब से पिछली बार जिले में करीब ख्भ्00 बोतल इलेक्शन इंक इस्तेमाल हुई थी। अगर मौजूदा चुनावों की बात की जाए तो इस मतदाताओं की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। संख्या ख्0 लाख से ऊपर पहुंच रही है। ऐसे में इंक की बोतल अनुमानित फ्भ्00 पहुंच सकती है।

क्8फ् रुपए की बोतल

अगर इस इंक की कीमत की बात करें तो क्0 एमएल की एक बोतल की कीमत क्8फ् रुपए की है। हाल ही पांच राज्यों में संपन्न हुए विधानसभा के चुनावों में मध्यप्रदेश सरकार सबसे बड़ा ऑर्डर दिया था। क्.ख्0 लाख का ऑर्डर दिया था। जबकि दिल्ली में हुए विधानसभा चुनावों में ब्0000 बोतल का ऑर्डर किया गया था।

वर्जन

इलेक्शन इंक का अपना एक अलग महत्व है, जिसके बारे में काफी कम लोगों को जानकारी है। इस बार पिछली बार के मुकाबले काफी इंक खर्च होने की संभावना है। क्योंकि इस वोटर्स की संख्या में काफी इजाफा हुआ है।

- वीरेंद्र कौशिक, सहायक जिला निर्वाचन अधिकारी

मैसूर में बनने वाली इस इंक का तो दूसरे देशों में भी एक्सपोर्ट किया जाता है। करीब ख्भ् देश ऐसे हैं जहां भारत की ही इंक उनके इलेक्शन में इस्तेमाल होती है।

- मनोज गौतम, इतिहासकार