-मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, लखीमपुर के बाद कासगंज में हिंसा से उठे सवाल

-पहले से सूचना न मिलने की वजह से हालात काबू करने में पुलिस के छूटे पसीने

LUCKNOW : मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक हिंसा, सहारनपुर में जातीय संघर्ष, लखीमपुर में सांप्रदायिक हिंसा और अब कासगंज में तिरंगा यात्रा पर उपद्रवियों का हमला। यह सभी अनपेक्षित घटनाएं ऐसी हैं जिनकी शुरुआत तो बेहद छोटी घटना से हुई लेकिन, इससे उपजे हालात को काबू करने में पुलिस को नाको चने चबाने पड़े। आलम यह है कि इन सभी घटनाओं में हिंसा पर काबू पाने के लिये न सिर्फ भारी संख्या में फोर्स को तैनात करना पड़ा बल्कि, तमाम आलाधिकारियों को उसी जिले में कई-कई दिन कैंप करना पड़ा। सवाल उठता है कि क्या इन घटनाओं को समय रहते रोका जा सकता है तो इसका जवाब हां है। दरअसल, यह सारी घटनाएं ऐसी है कि समय रहते अगर पुलिस को इसकी सूचना मिल जाती तो इन्हें विकराल रूप धारण करने से रोका जा सकता था। पुलिस का नेटवर्क तो ध्वस्त होता ही है लेकिन, हर घटना के बाद प्रदेश के खुफिया विभाग को चाक-चौबंद करने का दावा किया गया लेकिन, हर बार यह दावा कोरा ही साबित हुआ।

लोकल इंटेलिजेंस को करना होगा मौजूद

प्रदेश में हो रही घटनाओं में खुफिया की नाकामी पर पूर्व डीजीपी एके जैन कहते हैं कि प्रदेश में अभी भी इंटेलिजेंस के पास संसाधन सीमित हैं। इन्हें सशक्त करने की कोशिश कई बार की गई लेकिन, प्रदेश के आकार और जनसंख्या के मुताबिक यह अब भी बेहद कम है। उन्होंने बताया कि इंटेलिजेंस विभाग ने एक भी ऐसी सूचना नहीं दी है, जिसकी मदद से कोई दंगा या बवाल रोका जा सका हो। इसे देखते हुए लोकल पुलिस को ही अपना इंटेलिजेंस नेटवर्क सुदृढ़ करना होगा। इसके लिये बीट प्रणाली को मजबूत करने के साथ ही चौकियों पर ऐसे सब इंस्पेक्टर्स तैनात किये जाने चाहिये जो सक्षम हों। उन्हें अपने इलाके में होने वाली हर हरकत की खबर पहले से लग जाए। इसके अलावा इलाकों में पीस कमेटी का गठन भी बेहद सावधानी से होना चाहिये। इसमें दलाल छवि के लोगों की बजाय प्रतिष्ठित लोगों को शामिल किया जाना चाहिये, जिनका क्षेत्र में प्रभाव हो। इनसे समय-समय पर संपर्क करने से भी बहुत छोटी-छोटी जानकारियां मिल सकती हैं।

पुलिस का अहम रोल

पूर्व डीजीपी श्रीराम अरुण कहते हैं कि इंटेलिजेंस की जिम्मेदारी तो होती है लेकिन, इसमें सबसे बड़ी जिम्मेदारी लोकल पुलिस की होती है। स्थानीय स्तर पर कौन सा कार्यक्रम या जुलूस निकलने वाला है इसकी जानकारी रखना और उसे सकुशल व शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न कराना लोकल पुलिस की जिम्मेदारी होती है। कासगंज की घटना का ही उदाहरण लें तो साफ पता चलता है कि लोकल पुलिस वहां पर अपनी जिम्मेदारी निभाने में फेल हुई है। पुलिस को यह जानकारी होना चाहिये कि अमुक जुलूस किस रास्ते से गुजर रहा है और उस रास्ते पर लॉ एंड ऑर्डर की कोई समस्या तो नहीं। अगर कोई समस्या है तो उसे ठीक प्रकार से बंदोबस्त करना चाहिये। इसके अलावा पुलिस का काम है कि अगर उनके एरिया में कोई घटना होती है तो उसे सख्ती करनी चाहिये और परिणाम की चिंता किये बिना निष्पक्ष ढंग से कार्रवाई करनी चाहिये। लेकिन, ऐसा होता नहीं। जिसका नतीजा यह होता है कि छोटी सी घटना भी बड़ी हो जाती है और उसे काबू में करने में पुलिस को खासी मशक्कत करनी पड़ती है।