इंटरनेशनल फैमिली डे

LUCKNOW: प्यार की ईटे, खुशियों की सीमेंट, मोहब्बत की दीवारों से बनता है एक परिवार। जिसमें नफरतों के बाहर करने के लिए दरवाजे लगे होते हैं तो एक दूसरों के साथ मुसीबत के समय खड़े रहने के लिए उम्मीद की रेलिंग होती है। थोड़ी खुशी थोड़ा गम, नोंक-झोंक , प्यार , लड़ाई, रूठना-मनाना ये सब एक परिवार का हिस्सा है। परिवार का दूसरा नाम है हर सदस्य के प्रति समर्पण की भावना। आज इंटरनेशनल फैमिली डे पर आधुनिकता के दौर में हमने वो खो दिया जिसको परिवार कहते हैं और वो पाया है जिसको कंक्रीट का घर कहते हैं। जिसमें न बच्चों के लिए समय है न अपने परिवार के सदस्यों के लिए और ना ही अपनी जिंदगी को जीने का समय है। मार्डन और आधुनिकता के इस दौर में हम आगे तो बढ़ रहे हैं मगर पीछे छोड़ रहे हैं अपना परिवार और सामजिक रिश्ते। जिसका सबसे बुरा असर पड़ रहा है बच्चों पर।

बच्चों के लिए बेस्ट है संयुक्त परिवार

संयुक्त परिवार एक ऐसा परिवार जहां पर हम अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाहन बखूबी कर लेते हैं। कोई छोटा होता है तो कोई बड़ा। संयुक्त परिवार में रहने वाले बच्चे संस्कारों के साथ एक आत्मीय रिश्ता भी निभाना सीखते हैं। बच्चों को अपनों से बड़ों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए व छोटों से कैसे बात करनी चाहिए, इसका पहला पाठ इस परिवार से ही सीखने को मिलता है। पति-पत्‍‌नी के नौकरी करने की दशा में इन बच्चों का ख्याल दादा, दादी, चाचा, चाची और बाकी घर के मेंबर असानी से कर लेते है। संयुक्त परिवार का सबसे बड़ा फायदा रुटीन खर्चो में बचत का होता है। इसके अलावा यदि कोई प्रॉब्लम होती है तो परिवार के सीनियर्स उसमें गाइड करके प्रॉब्लम को सॉल्व करने में काफी मदद करते हैं।

एकल परिवार से बिगड़ रहा है बच्चों का स्वभाव

आज के समय में एकल परिवार का दौर सबसे ज्यादा चल रहा है। पति-पत्‍‌नी नौकरी करते हैं, बच्चा घर पर रहता है। जिसकी देखभाल के लिए एक मेड होती है। ऐसे में बच्चे का स्वभाव गुस्से वाला और जिद्दी हो जाता है। उसको वो संस्कार नहीं मिल पाते जो उसको संयुक्त परिवार में मिलते हैं। ऐसे में जॉब करने वाले पति-पत्‍‌नी अलग चिंता में रहते हैं कि बच्चे ने खाना खाया कि नहीं और स्कूल से आया कि नहीं। वो अपने ही बच्चों की देखभाल नहीं कर पा रहे हैं। बच्चों को समय न देने के कारण इसका बच्चों पर बुरा असर पड़ता है। वो अच्छे-बुरे की पहचान नहीं कर पाते हैं। ऐसे में बच्चों से पूछा जाये कि फैमिली या परिवार क्या है तो वो बस माता-पिता, भाई-बहन के आगे नहीं बता पाते हैं। समाज में चल रहा ये सिस्टम सोशल कल्चर को खत्म कर रहा है। हमारी आने वाली पीढ़ी सामाजिक रिश्तों से दूर हो रही है।

दोनों परिवारों में है बड़ा अंतर

संयुक्त परिवार और एकल परिवार के बीच समानता तो कोई नहीं हैं, लेकिन इनके बीच एक बहुत बड़ा अंतर है, जो बच्चों के जीवन पर गहरा छाप छोड़ता है। सोशियोलॉजिस्ट का मानना है कि संयुक्त परिवार में रहने वाला बच्चा अपने माता-पिता के अलावा फैमिली के और भी मेंबर से बातें सुनता है, जिसके कारण वो सोसाइटी और समाज के बारे में भी सोचते हैं। एकल परिवार में रहने वाले बच्चे अपने माता-पिता को ही जानते है, जिससे बच्चों में सेल्फ सेंटर्ड होने की भावना उत्पन्न होती है। उनके लिए समाज और सोसाइटी से कोई मतलब नहीं रह जाता है।

सोशल मीडिया पर बना संयुक्त परिवार

आज के दौर में परिवार का मतलब बस मम्मी-पापा, भाई-बहन तक ही सीमित हो गया है। ऐसे में परिवार से दूर रहने वाले लोग अपने परिवार से बरसों तक नहीं मिल पाते हैं, लेकिन इस प्रॉब्लम को सोशल मीडिया ने काफी हद तक सुलझा दिया है। वाट्स अप पर फैमिली ग्रुप बना कर लोग एक-दूसरे से बात कर रहे हैं और लगातार एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं। उस गु्रप में कजिन , चाचा-चाची, बुआ-मौसी, सभी एक-दूसरे से जुड़े हैं। कई तो ऐसे है जो विदेशों में रहते है। लेकिन व्हाट्स अप पर एक संयुक्त परिवार के रूप में रह रहे हैं।