मोरहाबादी में बोन एपटीट फूड वैन से इंदु ने बनाई खास पहचान

RANCHI: घर से बाहर परोस रहीं घर जैसा बना खाना। जी हां, एक तरफ जहां सिटी के लोग फास्ट फूड से अपनी सेहत बिगाड़ रहे हैं। वहीं, मोरहाबादी में बोन एपटीट फूड वैन के जरिए इंदु बतिश घर के बाहर भी लोगों को घर में बना खाना परोस रही हैं। इंदु का यह फूड वैन सिटी के लोगों की पहली पसंद बन गया है। बिजनेस इस कदर जम गया है कि इंदु अब ऐसा ही फूड वैन सिटी में एक और जगह लगाने का प्लान कर रही हैं। इन्दू बताती हैं कि बाहर का खाना कैसा रहता है, इसे मैंने अपने पति के जरिए अच्छी तरह महसूस किया है। उनकी परेशानी को देखकर ही मैंने फूड वैन के जरिए घर जैसा खाना लोगों को खिलाने का एक छोटा सा प्रयास किया है। ताकि मेरे पति ने जो परेशानी झेली है, वो किसी दूसरे व्यक्ति को न झेलना पड़े। मेहनत रंग ला रही है और अब तो कई लोग ऐसे हैं जो मेरे फूड स्टॉल के अलावा कहीं और का खाना पसंद ही नहीं करते।

60 गरीब बच्चों को फ्री में एजुकेट कर रहीं अनु कुमारी

कोकर बैंक कॉलोनी में रहनेवाली अनु कुमारी पेशे से टीचर हैं। लेकिन बचपन से ही इन्हें समाज सेवा करने की ललक थी। उनके इस मनोभाव को देखकर ही उनकी मां ने अनु को इसी क्षेत्र में मोटिवेट किया, जिस क्षेत्र को वह पसंद करती थी। बकौल अनु, मेरा सपना ऑफिसर बनना था। लेकिन, समाज में फैली अव्यवस्था और अशिक्षा के कारण मैंने अपने कदम खींच लिए और समाज में एक मुकाम स्थापित करने की सोची। इसी धारणा के साथ अपने कामों के प्रति लगनशीलता दिखाई। इस राह में कई परेशानियां भी झेलनी पड़ीं। लोगों के ताने भी मिले पर इन सबकी परवाह किए बिना मैं समाज के उत्थान में जुटी रही। महिला सशक्तिकरण के दौर में आज अनु टीचर की जॉब करते हुए गरीब बच्चों के बीच फ्री में शिक्षा का अलख भी जगा रही हैं। अनु एनसीसी कैडेट भी रह चुकी हैं। इसलिए लोगों की हेल्प करने का जुनून वहां से भी मिला। अनु आज 52 से 60 बच्चों को फ्री एजुकेशन देने का काम कर रही हैं। इस तरह वह रांचीआइट्स के लिए रोल मॉडल बन चुकी हैं।

लाखों का पैकेज छोड़ महिलाओं को कर रहीं शिक्षित

महज 23 साल की प्रियंका जिया। इन्होंने कम उम्र में ही कई उपलब्धियां हासिल की और रांची में रोल मॉडल बनकर अन्य युवतियों व छात्राओं को प्रेरित करने का काम कर रही हैं। वर्ष 2017 में प्रियंका जिया की जॉब बेंग्लुरु की एक कंपनी में लगी। लाखों का पैकेज ऑफर किया गया था। पर, कुछ दिनों में ही वह बेंग्लुरु से लौटकर रांची आ गई। यहां आकर वह अपने मनपसंद काम में जुट गई। अशिक्षित महिला, युवतियों को विभिन्न योजनाओं की जानकारी देकर उन्हें शिक्षा के लिए प्रेरित कर रही हैं। इस दौरान वह झारखंड के प्रत्येक जिले में गई और वहां की महिलाओं को सरकार की विकास योजनाओं, बैंक के काम, कानूनी सलाह देने का काम करने लगीं। शिक्षा का महत्व भी बताती हैं। प्रियंका जिया का कहना है कि पैसे कमाने के कई मौके मिले, लेकिन, गरीब महिलाओं व उनके बच्चों को शिक्षित करने में ही वह रम गई।