वे इस समय हिंदी सिनेमा के सबसे व्यस्त कलाकारों में से हैं लेकिन वे नहीं मानते कि वे ज़्यादा काम कर रहे हैं. उनका मानना है कि ये तो उन्हें ही तय करना है कि ज़्यादा क्या होता है और कम क्या.

अपने बारे में वे विनम्रता से कहते हैं कि एक दर्शक की तरह ख़ुद को देखते हैं तो उन्हें ख़ुद में खामियाँ ही खामियाँ नज़र आती हैं.

अमिताभ मानते हैं कि भारतीय सिनेमा अलग है और उसे इसी तरह से बने रहने देना चाहिए.

पिछले सप्ताह उन्होंने मुंबई के जुहू इलाके में स्थित अपने ऑफिस में बीबीसी से खास बातचीत की और अपने फिल्मी जीवन के साथ साथ निजी जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की.

पेश है इस बातचीत के चुनिंदा अंश:

सवाल: आप इतने बड़े स्टार हैं. आपके लाखों करोड़ो चाहने वाले हैं. आपके जो साथी कलाकार हैं आप उनसे कहीं बहुत आगे निकल गए. इसकी आप क्या वजह समझते हैं.

जवाब: मैं अपने आपको कैसे परख सकता हूं. मेरी इतनी हैसियत कहां. और ये कहना कि मेरे साथी कलाकार मुझसे पीछे रह गए, बिलकुल गलत धारणा है.

धर्मेंद्र जी, विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा, ऋषि कपूर जी सभी काम कर रहे हैं. और शत्रु जी और विनोद जी तो राजनीति में भी कामयाब रहे हैं, वो मंत्रिमंडल में भी शामिल हुए. तो इस लिहाज से तो वो मुझसे भी आगे हैं. लोकप्रियता के बारे में मैंने कुछ सोचा नहीं. ये आप लोग सोचें.

लेकिन कभी तो ऐसा होता होगा कि आप अमिताभ बच्चन के तौर पर नहीं बल्कि एक सामान्य दर्शक के तौर पर अपनी फिल्में देखें, तब तो आपको कभी लगा होगा कि यार कुछ तो खास है इस कलाकार में?

अमिताभ: दर्शक के तौर पर देखता हूं तो मुझे अपने आप में खामियां ही खामियां नजर आती हैं कि ये भी अच्छा हो सकता था. वो भी अच्छा हो सकता था. अपने आपको कैसे देखूं मैं. शीशे में रोजाना देखता हूं तो अजीब सा लगता है.

दिलीप कुमार हैं पसंदीदा कलाकार

आपके पसंदीदा कलाकार कौन कौन हैं ?

अमिताभ: दिलीप कुमार और वहीदा रहमान का मैं जबरदस्त प्रशंसक हूं. इन दोनों कलाकारों को मैं मानता हूं. खासतौर से दिलीप साहब के काम का तो मैं कायल हूं.

मुझे लगता है कि जब भी भारतीय सिनेमा का इतिहास लिखा जाएगा तो दिलीप साहब के पहले और दिलीप साहब के बाद, इस तरह से उसका वर्णन किया जाएगा.

दिलीप कुमार के साथ आपने फिल्म शक्ति में काम किया था, वो अनुभव कैसा रहा?

अमिताभ: जब कोई प्रशंसक अपने आदर्श से मिलता है तो उसे जैसा महसूस होता है मुझे भी वैसा ही महसूस हुआ था. बचपन से मैं उन्हें देखता आया था. पहले तो उनके साथ कैमरा फेस करने में बड़ी नर्वसनेस हुई लेकिन बाद में बड़ा गर्व महसूस हुआ.

निजी जीवन में आपका उनसे कैसा नाता है?

अमिताभ: वो हमें बड़ा स्नेह देते हैं. हम लगातार उनके संपर्क में रहते हैं. उनसे बातें होती रहती हैं.

ऋषिकेश मुखर्जी थे गॉडफादर

आपने ऋषिकेश मुखर्जी के सिनेमा में काम किया है, आपने प्रकाश मेहरा और मनमोहन देसाई के लार्जर दैन लाइफ सिनेमा में भी काम किया है और आप वर्तमान दौर में ब्लैक और पा जैसी फिल्में भी कर रहे हैं. आपको इनमें से किस तरह के सिनेमा ने सबसे ज़्यादा रचनात्मक संतुष्टि दी.

अमिताभ: ये बड़ा मुश्किल सवाल है. चार दशकों से मैं काम कर रहा हूं और हर दौर के बेहतरीन निर्देशकों के साथ मुझे काम करने का मौका मिला है. ख्वाज़ा अहमद अब्बास ने हमें मौका दिया. फिर ऋषिकेश मुखर्जी तो हमारे गॉडफादर ही थे., उन्होंने मुझे और जया को जैसे अपना ही लिया था. उनके साथ मैंने सबसे ज़्यादा फिल्में कीं.

फिर सलीम-जावेद की लिखी कहानियों वाली फिल्में कीं. प्रकाश मेहरा के साथ अच्छा काम हुआ. मनमोहन देसाई के साथ काम किया. उनके सिनेमा में अजब सा पागलपन था.

पागलपन कैसे? थोड़ा विस्तार से बताएं.

अमिताभ: जब हम कलाकार मनमोहन देसाई की कहानियां सुनते थे, तो कई बार सवाल करते कि अरे मन जी ऐसा कैसे हो सकता है. इतनी अजीब बात कैसे हो सकती है. तो वो कहते रुको यार. सब हो जाएगा. मुझे पता है कि मैं क्या कर रहा हूं. उनकी फिल्मों को लोग बहुत पसंद करते थे. तो हमने उनसे करना ही छोड़ दिया.

फिर टीनू आनंद ने हमारे साथ मैं आज़ाद हूं जैसी बढ़िया फिल्म बनाई. मुकुल आनंद के साथ अग्निपथ और हम जैसी फिल्मों को पसंद किया गया.

इस दौर में आर बाल्कि, प्रकाश झा, सुजॉय घोष जैसे अच्छे फिल्मकार हमारे साथ काम कर रहे हैं. तो मुझे तो हर दौर में रचनात्मक संतुष्टि मिली.

नया दौर है बेहतरीन

इस दौर की फिल्मों के बारे में कुछ बताएं.

अमिताभ: बड़ा अच्छा काम हो रहा है. आजकल की जो पीढ़ी है वो एक नया दौर ला रही है हमारी फिल्मों में. ये फिल्में आज से 30-40 साल पहले बनाई जातीं तो शायद इतने दर्शक नहीं मिलते. इतनी प्राथमिकता नहीं मिलती. लेकिन अब जैसे तिग्मांशु धूलिया की पान सिंह तोमर, अनुराग कश्यप की गैंग्स ऑफ वासेपुर, सुजॉय घोष की कहानी, शूजित सरकार की विकी डोनर, इम्तियाज की रॉक स्टार और अनुराग बासु की बर्फी जैसी फिल्में हैं, जो ना सिर्फ बेहतरीन और हटके हैं बल्कि इनका व्यवसाय भी बेहतरीन रहा है जो दर्शाता है कि हमारी जनता अब पहले से काफी मैच्योर हो गई है.

आप सोशल नेटवर्किंग साइट पर काफी सक्रिय रहते हैं. अपनी व्यस्त दिनचर्या से कैसे इतना वक्त निकाल पाते हैं?

अमिताभ: वक्त निकालने से निकल जाता है. अब हमने एक बार ये शुरू कर दिया है, तो हमारे प्रशंसक इंतज़ार करते रहते हैं. कई बार हम कुछ नहीं लिखते तो हमें डांट भी पड़ जाती है कि कहां हैं आप अब तक क्यों नहीं आए. तो ऐसा रिश्ता बन गया है हमारे फैंस के साथ. निभाना पड़ता है. कई बार तो रात के तीन या चार भी बज जाते हैं.

तारीफ सुनकर आती है शर्म

जब आपके गेम शो कौन बनेगा करोड़पति में जो प्रतियोगी आते हैं और आपसे कहते हैं कि इनाम जीतना उनके लिए उतना मायने नहीं रखता जितना आपसे मिलना. तो इस तरह की बातों पर आप कैसा महसूस करते हैं?

अमिताभ: मैं बड़ा असहज हो जाता हूं. बड़ी शर्म आती है ये बातें सुनकर. केबीसी का हर प्रतियोगी हमारा मेहमान है. हमें उनके साथ वैसे ही पेश आते हैं. ऐसी बातें सुनकर मुझे समझ नहीं आता कि क्या बोलूं.

हमें हमारा सिनेमा ही बनाना चाहिए

कहा जा रहा है कि भारतीय सिनेमा में इस वक्त कई एक्सपेरिमेंटल फिल्में बन रही हैं. लेकिन कई आलोचकों का ये भी कहना है कि भारतीय फिल्मकार अब भी ग्लोबल सिनेमा नहीं बना पाते. अंतरराष्ट्रीय स्तर के हिसाब से भारतीय फिल्में काफी पीछे रहती हैं. आपका क्या कहना है?

अमिताभ: पहले हमारी फिल्मों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी निरादर की नजरों से देखा जाता था. लेकिन वो लोग ये नहीं जानते थे कि ऐसी फिल्में बनती क्यों है. जो आदमी दिन भर अपना खून पसीना एक करके बेचारा आठ दस रुपए कमाता था, वो शाम को थोड़ा मनोरंजन चाहता था. वो अपनी ही कहानी जिसे आप रियलिस्टिक सिनेमा कहते हैं, वो परदे पर नहीं देखना चाहेगा. उसे कुछ ऐसा चाहिए जो कम से कम तीन घंटे तक कल्पनालोक की सैर कराए.

देखिए हर देश का सिनेमा अलग होता है. अब हमारी फिल्मों को जरूर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा जा रहा है, लेकिन फिल्में हमें, हमारे दर्शकों को ध्यान में रख कर ही बनानी चाहिए. गाने और नाच हमारी फिल्मों का अभिन्न अंग है. उससे हम मुंह नहीं मोड़ सकते.

अगर हमारी फिल्में हमारे दायरे में रहकर बनें और वो विदेशी लोगों को पसंद आए तो अच्छी बात है. और मैं तो जब भी बाहर जाता हूं, तो भले ही वहां हमारी भाषा ना बोली जाती हो, लेकिन हिंदी फिल्मों के दीवाने हर जगह मिल जाएंगे. वो हिंदी गाने गाते आपको मिल जाएंगे. मुझे अपनी कई फिल्मों के डायलॉग बोलकर वो लोग सुनाते हैं. तो बहुत अच्छा लगता है.

मेरे मापदंड मैं तय करूंगा

आप 70 साल के हो गए हैं, क्या आपको नहीं लगता कि अब थोड़ा आराम करना चाहिए. थोड़ा अपना काम कम कर देना चाहिए?

अमिताभ: देखिए, हर किसी के लिए उसका अलग-अलग मानदंड होते हैं. मुझे कितना काम करना चाहिए. कितना काम मेरे लिए ज्यादा है या कम है, ये तो मैं तय करूंगा ना. हो सकता है आपके लिए जो ज़्यादा काम हो वो मेरे लिए कम हो. या इसका विपरीत भी हो सकता है.

अपना कीमती वक्त बीबीसी को देने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया

अमिताभ: आपका भी बहुत शुक्रिया हमसे बात करने के लिए और मेरे प्रशंसकों से रूबरू करवाने के लिए.