भारतीय टीम के हर दूसरे खिलाड़ी को डॉक्टर की जरूरत है या वह अपनी चोट से उबरने की कोशिश कर रहा है या उसे इंग्लैंड में एक के बाद एक मिली हार से मिले मानसिक आघात से उबरने की जरूरत है।

अकड़कर चलने वाली चैंपियन टीम केवल एक महीने में ही लंगड़ाने लगी है और उसे एक मेड़ भी अब पहाड़ की तरह दिखने लगी है जिसपर चढ़ना असंभव लग रहा है।

इसके लिए जो बहाने बनाए जा रहे हैं, वे बेमतलब से हो गए हैं। हमारे कमंट्रेटर अब भी टीम के बचाव का रास्ता तलाशने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें केवल खिलाड़ियों को ही जिम्मेदार ठहराया जा सके, ताकि बोर्ड उस जाँच से बच जाए, जो होनी चाहिए।

बोर्ड की भूमिका

मैं यहाँ इस बात की पड़ताल करने नहीं जा रहा हूँ कि भारतीय बोर्ड ने डीआरएस (यानी अंपायरों के फ़ैसलों की समीक्षा) के समर्थन में क्यों नहीं है।

मैं इस विषय की चर्चा भी नहीं करना चाहता कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट बोर्ड का भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को चलाने वाले अधिकारियों के बारे में राय कितनी ग़लत और पक्षपातपूर्ण है। ये काम उन्हीं लोगों पर छोड़ दें जिन्हें इस काम के लिए वेतन दिया जाता है

टीवी कमेंटट्रेटर देश के उदास दर्शकों को यह बताने की शानदार कोशिश कर रहे हैं कि इस शर्मनाक हार की क्षतिपूर्ती चैंपियन्स लीग टी-20 से हो जाएगी।

हमें बताया जा रहा है कि धोनी और उनकी टीम इंग्लैंड में हमारा मनोरंजन कर पाने में भरे ही नाकाम रही हों, हमारे पास अब यह देखने का एक महान अवसर है कि इनमें से असफल रहे कुछ खिलाड़ी, आईपीएल के ही एक संस्करण चैंपियन्स लीग में अपने फ़ैन्स को कैसे आश्चर्यचकित करते हैं।

मैंने कहा है कि हरभजन सिंह अपने पेट की चोट से ऊबर चुके हैं और वे स्वस्थ और तरोताजा होकर अपनी मुंबई इंडियंस टीम को वहाँ अपना सर्वश्रेष्ठ देते हुए नजर आएंगे।

हालांकि सचिन तेंदुलकर के स्वास्थ्य कि स्थिति कैसी है इसके बारे में अभी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है लेकिन वे चैंपियन ट्राफी में अगर अपनी टीम का नेतृत्व करते नजर आएँ तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

धोनी की छवि

मैंने यह बार-बार कहा है कि धोनी के पंजे और अंगुलियों में दर्द रहता है। इस वजह से वे विकेट कीपिंग करते हुए अक्सर गेंद उनसे छूट जाती है। भारतीय कप्तान के पास समय था और अगर वे चाहते तो ऐसा करने सबच सकते थे।

वे एक ऐसे इंसान हैं, जिसने अपनी तकदीर खुद लिखी है, उन्हें इस बात पर अवश्य आश्चर्यचकित होना चाहिए कि उनका आभामंडल कहाँ और क्यों टूटता जा रहा है।

एक ऐसा असाधारण क्रिकेटर जिसने बहुत ही कम समय में अपने टीम के लिए बहुत कुछ किया है। उनके चहरे पर अब झुंझलाहट दिखने लगी है, उनकी चालों से भी अब ऐसा नहीं लगता कि उनका अब खुद पर नियंत्रण है।

उनका शरीर अब चोटिल हो चुका है और भारतीय टीम के किसी भी खिलाड़ी से अधिक क्रिकेट खेलने की वजह उन उनका मन भी कुम्हला गया है।

क्या हमें किसी खिलाड़ी को भारतीय बोर्ड की लालच को पूरा करने के लिए शहीद हो जाने की इजाजत देनी चाहिए? धोनी के लिए यह समय चैंपियन लीग से विराम लेने का है, जिससे आगे आने वाली श्रृंखलाओं के लिए खुद को तैयार कर सकें। क्या बोर्ड के सचिव को भारतीय टीम के हित में आईपीएल की अपनी टीम के हितों का परित्याग नहीं कर देना चाहिए?

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