मांग के आधार क्या हैं?

पीटीए के गठन के समय भी गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने कहा था कि अगर तेलंगाना बनता है तो उसके साथ ही गोरखालैंड भी बनना चाहिए.

तो जैसे ही तेलंगाना बनाने का ऐलान हुआ यहां क्लिक करें गोरखालैंड के लिए आंदोलन शुरू हो गया.

गोरखालैंड में तीन ज़िले हैं और इनमें करीब 20 लाख नेपाली भाषी लोग हैं जो सैकड़ों सालों से वहां रह रहे हैं.

इन लोगों को लगता है कि पश्चिम बंगाल में इनका कोई वजूद नहीं है.

आप कलकत्ता जाएं तो आपको भी यह महसूस होगा.

वहां आपको मारवाड़ी दिख जाएंगे, बिहार के, उत्तर प्रदेश के लोग मिल जाएंगे जो नौकरी भी कर रहे हैं, व्यापार भी कर रहे हैं.

लेकिन वहां आपको नेपाली भाषी लोग- गोरखा बहुत कम मिलेंगे.

गोरखा लोगों की हमेशा से शिकायत रही है कि उन्हें बंगाल के अन्य क्षेत्रों में कोई तवज्जो नहीं मिलती. उनकी नौकरी, व्यवसाय का कोई साधन नहीं है.

उनका कहना है कि यह मान लिया गया है कि गोरखा सिर्फ़ दार्जलिंग आने वाले पर्यटकों की सेवा के लिए हैं.

यह भी मान लिया गया है कि गोरखा दार्जलिंग के होटल में काम करेंगे, टैक्सी चलाएंगे, क्लिक करें चाय बागान में काम करेंगे और उसके आगे उनके लिए कोई मौका नहीं है.

इसके अलावा नेपाली भाषा, संस्कृति से बंगाली जुड़ाव महसूस नहीं करते.

दूसरी शिकायत यह है कि राजनीतिक रूप से क्लिक करें उनकी कोई आवाज़ नहीं है.

चाहे वह नक्सलवादियों का मामला हो, ज़मीन का मुद्दा हो, कृषि या रोज़गार का सवाल हो उसमें गोरखाओं की कोई पूछ नहीं है.

ममता बनर्जी का रुख?

वामदल सरकार ने गोरखालैंड का विरोध किया था.

और ममता बनर्जी की चुनौती यह है कि अगर वह गोरखालैंड की मांग मान लेती हैं तो उन्हें लगता है कि इसका राजनीतिक रूप से नुक़्सान होगा.

इसके अलावा बंगाल का विभाजन उनके लिए भावनात्मक मुद्दा भी है. तो वह इस मुद्दे पर बात करने के लिए तैयार नहीं हैं.

वह इस मुद्दे पर बहुत सख़्त रुख अख़्तियार कर चुकी हैं. उनका कहना है कि दार्जीलिंग के पहाड़ पश्चिमी बंगाल का हिस्सा है और इसे अलग नहीं होने दिया जाएगा, पश्चिमी बंगाल का विभाजन नहीं होने दिया जाएगा.

इसके लिए वह पुलिस का भी इस्तेमाल कर रही हैं और राजनीतिक ताकत का भी.

पिछले दिनों जब बिमल गुरुंग ने जीटीए से इस्तीफ़ा दे दिया तो बिना कुछ कहे उन्होंने वह इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया.

और अब बिमल गुरुंग फिर से जीटीए की बात करने लगे हैं. वह कह रहे हैं कि जीटीए को अनुदान दिए जाएं, अधिकार दिए जाएं... वह संकेत दे रहे हैं कि वह यह आंदोलन कुछ समय के लिए वापस ले सकते हैं.

लेकिन यह अस्थाई हल होगा स्थाई नहीं.

लेकिन ममता के सामने 2014 का चुनाव है और उससे पहले वह कोई बात करने को तैयार नहीं हैं.

फिर उन्हें विधानसभा चुनाव का सामना करना है. फिर वह कहेंगी कि विधानसभा चुनाव तक इस मुद्दे पर कोई बात नहीं हो सकती.

इसलिए अगले विधानसभा चुनाव के बाद जो भी सरकार आती है वही इस बारे में बात कर सकती है, अगर वह करना चाहे तो.

छोटा राज्य सफल होगा क्या?

अब अगर गोरखालैंड राज्य बनता है तो उसकी आबादी सिर्फ़ 20 लाख होगी. लेकिन क्या इतना छोटा राज्य बनाना तर्कसंगत होगा?

दरअसल ऐसे छोटे राज्य देश में अब भी हैं. नागालैंड, मेघायल, मिज़ोरम, गोवा, पुद्दुचेरी इन राज्यों की जनसंख्या 15-20, अधिकतम 25 लाख ही.

यह इलाके या जनसंख्या की बात नहीं है यह तो एक राजनीतिक आकांक्षा है, शिकायत है कि राजनीतिक रूप से वजूद न होने की, पूछ न होने की.

स्वराज थापा नाम के एक शख़्स से केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश पूछते हैं कि आप नेपाल के किस हिस्से से आते हैं?

थापा कहते हैं कि हमारी कोई पहचान नहीं है, कोई हमें बंगाली नहीं बोलता, कोई भारतीय नहीं मानता, लोग कहते हैं कि आप नेपाल के हैं.

गोरखालैंड अगर बनता है तो पहचान का यह संकट दूर हो जाएगा.

गोरखालैंड के एकदम बगल में सिक्किम है, जो पूरा पहाड़ है. सवाल है कि अगर सिक्किम सफलतापूर्वक चल सकता है तो गोरखालैंड क्यों नहीं?

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