डिजिटल कम्युनिकेशन आध्यात्मिक प्रगति को प्रोत्साहित करता है या फिर उसे रोकता है? सैनी शाह, आगरा

डिजिटल कम्युनिकेशन हमारे पास मौजूद महज एक साधन है। यह कोई ऐसी चीज नहीं है, जो हमें आध्यात्मिकता की ओर या फिर उससे दूर ले जाती हो। जिस प्रकार आग का इस्तेमाल खाना पकाने या हवन/यज्ञ या अनुष्ठान करने के लिए किया जा सकता है या फिर उससे घर भी जलाया जा सकता है, उसी प्रकार तकनीक भी महज एक साधन है। सवाल यह है कि हम इसका इस्तेमाल कैसे करते हैं।

अगर हम इसका इस्तेमाल आध्यात्मिक सामग्री को पढ़ने, उससे संबंधित वीडियो या व्याख्यानों को देखने-सुनने या फिर अन्य प्रेरक प्रसंगों को जानने और उन्हें दूसरों के साथ साझा करने के लिए करते हैं तो यह हमारी आध्यात्मिक प्रगति का एक महत्वपूर्ण साधन हो सकता है। अगर हम इसका इस्तेमाल इस उद्देश्य से अलार्म सेट करने के लिए करते हैं कि हम समय पर उठ सकें, ध्यान लगा सकें, समय पर योग कक्षा में पहुंच सकें या गंगा आरती में जा सकें, तो यह हमारी आध्यात्मिक प्रगति के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है। हालांकि अगर हम अपने उपकरणों का इस्तेमाल खुद करने के बजाय उन्हें इस बात की अनुमति देते हैं कि वो हमारा इस्तेमाल करें, अगर हम तकनीक के हाथों का एक मोहरा बन जाते हैं और हर बीप, ब्लिंग, रिंग तथा छोटे-मोटे नोटिफिकेशन्स तक का जवाब देने लगते हैं, तो यह केवल भटकाव और अलगाव का साधन बनकर रह जाता है।

अगर हम अपने गहरे और वास्तविक संबंधों को चुनने के बजाय सोशल मीडिया पर बने दोस्तों या संपर्कों को अहमियत देते हैं, तो फिर से यह हमारी आध्यात्मिक प्रगति में बाधा बन जाता है क्योंकि उस स्थिति में हम तकनीक के हाथ का खिलौना बनकर रह जाते हैं और अपनी वास्तविक दुनिया से बिल्कुल कट जाते हैं। इससे हमारा ही नुकसान होता है क्योंकि तब हमें जीवन में आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिलता। तो इस सवाल का जवाब हैं, आप खुद तकनीक का उपयोग आप एक साधन के रूप में तो करें, लेकिन स्वयं को अपने डिजिटल उपकरणों के हाथों का खिलौना न बनने दें। अगर आप ऐसा कर पाते हैं, तो आपकी आध्यात्मिक प्रगति में कोई बाधा नहीं आएगी। लिहाजा हमें स्वयं को बेहतर बनाने की कोशिश करनी है।

— साध्वी भगवती सरस्वती

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