- प्रोफेशनल के साथ पर्सनल लाइफ को भी संवारा

- गुरुजी के पढ़ाने का तरीका और व्यवहार रहता हमेशा याद

LUCKNOW: बच्चों के सपनों को साकार करने में पैरेंट्स से ज्यादा योगदान गुरु का होता है इसलिए उन्हें भगवान से बड़ा दर्जा दिया गया है। वह स्टूडेंट्स को प्रोफेशनली नॉलेज के साथ पर्सनल लाइफ के गुरुमंत्र भी देते हैं ताकि जीवन में आने वाली किसी भी परेशान से वह ना घबराएं और उसका सामना करते हुए अपने लक्ष्य को पूरा करें। गुरु की यही खूबी स्टूडेंट्स के दिलों में उतर जाती है और जीवन भर उनके दिलों, दिमाग में उनकी एक अलग छवि बनी रहती है, जिसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती है। आज हम आपको टीचर्स डे के मौके पर कुछ ऐसे की गुरु से रूबरू कराने जा रहे हैं। पेश है अनुज टंडन की रिपोर्ट।

1. उनके ऑफिस में लिखा आदर्शसूत्र आज भी याद है

मुझ पर प्राइमरी शिक्षा के दौरान गांव के एक टीचर राम लोचन सिंह का विशेष प्रभाव रहा है। उनके व्यक्तित्व की छाप आज भी बनी हुई है। उनका सख्त और अनुशासित व्यवहार व पढ़ाई का तरीका मेरे लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है। वहीं चिकित्सा शिक्षा के समय रेडियोलॉजी एंड रेडियोथेरेपीके हेड प्रो। जीएन अग्रवाल मेरे लिए रोल मॉडल रहे। वर्ष 1977 में केजीएमसी में पढ़ाई के दौरान उनका प्रैक्टिकल अप्रोच और आदर्शवाद सोच के साथ सादगी भरा जीवन मुझे हमेशा आकर्षित करता था। उनके ऑफिस में लिखे ये शब्द 'मैं छात्रों को पढ़ाता नहीं बल्कि ऐसा माहौल देता हूं, जिसमें वह कुछ सीख सकें' आज भी मेरे लिए आदर्शसूत्र बने हुए हैं।

- प्रो। एमएलबी भट्ट, वीसी केजीएमयू

2. स्टूडेंट कनेक्शन जरूरी है

मैंने आईटी कॉलेज में वर्ष 1982-84 तक पढ़ाई की है। उस दौरान मैथ्स की टीचर एम। चंद्रा का मुझपर गहरा प्रभाव रहा है। उनका अपियरेंस, बोलने का तरीका, सब्जेक्ट में गहरी पकड़ व स्टूडेंट्स के साथ कनेक्ट करने का तरीका उनको सबसे अलग बनाता था। उनकी लाइफ स्टाइल ही मेरा मोटो है क्योंकि उनका काम के प्रति समर्पण और अनुशासन सबसे अलग था। आज मैं इसी कॉलेज की प्रिंसिपल हूं, लेकिन उनके साथ काम करने का मौका कभी नहीं मिला। उन्हीं के आदर्शो का पालन करते हुये आज मैं भी छात्रों के साथ प्रोफेशनली और पर्सनली जुड़ी हुई हूं।

- विनीता प्रकाश, प्रिंसिपल आईटी ग‌र्ल्स कालेज

3. हर किसी का पढ़ाने का तरीका अलग

फैजाबाद में इंटर की पढ़ाई के बाद बेचलर्स और पीजी की पढ़ाई एलयू से 1976 में कंप्लीट की थी। मेरी लाइफ को टीचर डॉ। शैलेंद्र सिंह ने खासा प्रभावित किया था। वह इकोनॉमिक्स सब्जेक्ट पढ़ाते थे। मुझे उनका पढ़ाने का तौर-तरीका, उनका सब्जेक्ट प्रजेंटेशन और व्याख्या करने का तरीका बेहद ही पसंद आता था, जो आज भी मुझे कुछ न कुछ करने की सीख देता है। ऐसे में मैं जब गोंडा के एलबीएस पीजी कॉलेज में इकोनॉमिक्स का लेक्चरार और वर्ष 1991 में नेशनल कॉलेज का प्राचार्य बना तो उनका दिया सबक काम आया। 26 साल यहां प्राचार्य रहने के बाद 2016 में एलयू में कुलपति बनने का सौभाग्य मिला क्योंकि जहां से मैंने पढ़ाई की, आज वहीं का कुलपति हूं। हर शिक्षक के पढ़ाने का अपना तरीका होता है इसलिए उसे अपनाते हुये आगे बढ़ना चाहिए।

- प्रो। एसपी सिंह, कुलपति एलयू

4. हर किसी का प्रभाव रहा

मुझे अबतक जितने भी टीचर्स ने पढ़ाया है हर किसी का मेरे ऊपर गहरा प्रभाव रहा है। सभी मेरे लिए प्रेरणास्रोत रहे इसीलिए हर किसी से कुछ न कुछ सीखने की कोशिश की। किसी एक का नाम नहीं ले सकता हूं। किसी का पढ़ाने का तरीका, किसी की बोलचाल, किसी के बताने का अंदाज हमेशा मुझे प्रेरणा देने का काम करता रहा है इसीलिए अपने गांव के टीचर जिन्होंने मुझे क्लास 6 से पढ़ाया है उनके संस्थान में आने पर सबसे पहले सेवा की जाएगी। आज भी कोई टीचर आता है तो उनके पैर छूता हूं। उनको नमन करता हूं क्योंकि उन्हीं की वजह से मैं आज यहां हूं।

- डॉ। एके त्रिपाठी, निदेशक डॉ। राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान

5. सीख आज भी काम आ रही

मेरी लाइफ को सबसे ज्यादा पीएचडी के दौरान मेरी मेंटॉर डॉ। मुक्तारानी रस्तोगी ने प्रभावित किया। मैंने जीवन को जीने के सीक्रेट उन्ही से सीखे हैं। कहां सख्त होना है और कहां खुद को नर्म रखना है यह मैंने उनसे ही सीखा। मैं 32 वर्ष से नवयुग में पढ़ा रही हूं इसलिए जब यहां की प्रिंसिपल बनने का ऑफर आया तो सबसे पहले उन्हें ही बताया और अपनी प्रॉब्लम शेयर की। तब उनका कहना था कि 'ज्वाइन करो' उनके यह शब्द मेरे लिए प्रेरणास्रोत बन गये। उसी का फायदा मिल रहा है कि आज यहां के बच्चे मुझे मेरे परिवार की ही तरह लगते हैं।

- डॉ। सृष्टी श्रीवास्तव, प्रिंसिपल नवयुग ग‌र्ल्स कॉलेज