-जागरण फिल्म फेस्टिवल में बातचीत के दौरान फिल्म एक्टर संजय मिश्रा ने बयां की दिल की बात

PRAYAGRAJ: जबर्दस्त अभिनय के दम पर पात्रों को जीवित करने वाले फिल्म एक्टर संजय मिश्रा का कहना है कि प्रयागराज की खुशबू बनारस तक जाती है। वह रजनीगंधा के सहयोग से आयोजित दसवें जागरण फिल्म फेस्टिवल में पहुंचे थे। जेएफएफ के आखिरी दिन फिल्मों के साथ ही प्रयागराज के लोग फिल्म एक्टर संजय मिश्रा से भी मिलने को बेताब दिखे। जैसे ही संजय मिश्रा थियेटर में पहुंचे। लोगों ने तालियां बजाकर और उनके डायलॉग बोलकर उनका स्वागत किया। इसके पहले डायलॉग सेशन की शुरुआत दीप प्रज्जवलन से हुआ। इस मौके पर चीफ गेस्ट एडीजी एसएन साबत, डीआईजी केपी सिंह, दैनिक जागरण प्रयागराज के महाप्रबंधक मनीष चतुर्वेदी और दैनिक जागरण प्रयागराज के संपादकीय प्रभारी मदन सिंह द्वारा किया गया। लोगों के सवालों का जवाब संजय मिश्रा ने दिलचस्प अंदाज में दिया

-प्रयागराज आकर कैसा लग रहा है

-प्रयागराज यानी इलाहाबाद की खुशबू में बनारस के किसी मोहल्ले की महक आती है। इस बात का अहसास हो रहा है कि सिनेमा के प्रति इलाहाबादियों का प्यार दिखता है। एनएसडी में इलाहाबाद के तिग्मांशु धूलिया मेरे रूम पार्टनर थे। ऐसे में यहां से तो दोस्त का रिश्ता है।

-सबसे अधिक मजा कहां आता है टीवी या फिर फिल्मों में

- गुरु मजा तो जीने में आता है। हर कोई जो अपने क्षेत्र में सफलता हासिल कर लेता है, उसे सुकून मिलता है। असली मजा वहीं होता है।

-एक एक्टर से इतर असली जीवन में कैसे हैं संजय मिश्रा

-मैं प्रोफेशन से नहीं, बल्कि एक्टर की जिंदगी को जीता हुं। दूसरे के घर, दिल में घुसकर उसको समझना और फिर उसे फिल्मी पर्दे पर उतारना। यह तभी संभव हो सकता है। जब खुद किसी के जीवन को जीया जाए।

-अगर कोई आप जैसा बनना चाहता हो, तो कैसे बने

- अगर कोई संजय मिश्रा बनना चाहता है तो ये गलत है। आप जैसे है, उसमें ही बेहतर करें। किसी कि नकल नहीं करनी चाहिए। ऊपर वाले ने सब में कुछ ना कुछ दिया है। हर आदमी खुद में हीरो है। जो लोग शाम को अपने पैरेंट्स और बच्चों के पास पहुंच जाते है। असल मायने में वे लोग हीरो है।

-एक्टिंग की शुरुआत में क्या-क्या स्ट्रगल करना पड़ा

-हर किसी का स्ट्रगल अलग-अलग होता है। अगर बचपन की बात करें तो बचपन में पैरेंट्स की नजर में उनके बच्चे का दोस्त ठीक नहीं होता, वहां भी स्ट्रगल करना पड़ता है। इसी प्रकार हर क्षेत्र में हर किसी का स्ट्रगल अलग होता है।

-संजय मिश्रा खुद में कैसे हैं

-यह जवाब मैं भी खोज रहा हूं। शायद इसी तलाश ने मुझे यहां तक पहुंचाया है। ऐसे में मैं भगवान से हमेशा प्रार्थना करता हूं कि इस सवाल का जवाब कभी न मिले। जिस दिन लोग खुद को खोजना बंद कर देंगे उस दिन जीवन रुक जाएगा।