कानपुर। Janmashtami 2020: इस साल जन्माष्टमी का पर्व कोरोना काल के दौरान पड़ रहा है। ऐसे में आप मंदिर या अन्य कृष्ण धामों का दर्शन शायद ही कर पाए क्योंकि सरकार की गाइडलाइंस के मुताबिक कहीं भी ज्यादा भीड़ एकत्रित नहीं हो सकती। ऐसे में घर पर कृष्ण भक्ति करना आपके लिए जरूरी हो जाता है। इस जन्माष्टमी भगवान कृष्ण की कैसे पूजा करें। आइए जानते हैं बाल गोपाल की पूजा विधि और कैसे करें आरती।

चौकी पर बिछाएं लाल-पीला वस्त्र
सुबह-सुबह स्नान कर जन्माष्टमी पर कृष्ण की पूजा की तैयारी में जुट जाना चाहिए। स्नानादि के उपरान्त श्रीकृष्ण भगवान के लिए व्रत करने, उपवास करने, एवं भक्ति करने का संकल्प लेना चाहिए, (अपनी मनोकामनाओं की सिद्वियों के लिए जन्माष्टमी व्रत करने का संकल्प) तदोपरान्त चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर कलश पर आम के पत्ते या नारियल स्थापित करें एवं कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह भी बनायें।

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पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठें
इन आम के पत्तों से वातावरण शुद्व एवं नारियल से वातावरण पूर्ण होता है। पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठें, एक थाली में कुमकुम, चंदन, अक्षत, पुष्प, तुलसी दल, मौली, कलावा, रख लें। खोये का प्रसाद, ऋतु फल, माखन मिश्री ले लें और चौकी के दाहिनी ओर घी का दीपक प्रज्जवलित करें, इसके पश्चात् वासुदेव-देवकी, एवं नन्द-यशोदा, की पूजा अर्चना करें।

इन मंत्रों का करें जाप
'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:' इस मंत्र का जाप करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं। जन्माष्टमी पर पूजन के दौरान इस मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए। इसके अलावा पूजा के दौरान भक्त 'गोकुल नाथाय नमः' का जप भी कर सकते हैं।

पूजा के बाद श्रीकृष्ण की करें आरती

आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥

जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद,
कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥

आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा
बालाजी ज्योतिष संस्थान, बरेली।