2010 में भी मीडिया की भीड़ के सामने दीपिका थी। और लगभग 2 साल बाद भी वह मीडिया से मुखातिब थी। अलग था तो 18 साल की दीपिका के चेहरे का भाव। तब उसकी हंसी को गोल्डेन मुस्कान का नाम दिया गया और इस बार उसके चेहरे की उदासी सबकुछ बयां कर रही थी। उसने कोई गुनाह थोड़े ना किया था। बस एक खेल में हार ही तो गई थी। हमारी दीपिका तो अभी भी वल्र्ड नंबर वन वूमन आर्चर है। कॉमनवेल्थ गेम्स में डबल गोल्ड जीतने वाली दीपिका कुमारी का निशाना लंदन ओलंपिक में चूक गया। वह लॉड्र्स के मैदान में प्रजेंट क्राउड के प्रेशर को हैंडल नहीं कर पाई। टाटा स्टील द्वारा फेलिसिटेशन प्रोग्राम में दीपिका और जयंत तालुकदार प्रजेंट थे।

अभी तो शुरुआत की है दीपिका ने
जेआरडी स्पोट्र्स कांप्लेक्स के वीआईपी लाउंज में ऑर्गनाइज हुए फेलिसिटेशन प्रोग्राम में चीफ गेस्ट टाटा स्टील कॉरपोरेट सर्विसेज के वाइस प्रेसिडेंट संजीव पॉल ने कहा कि दीपिका और जयंत जैसे प्लेयर्स के लिए तो बैटल अभी स्टार्ट हुआ है। उन्होंने कहा कि दीपिका ने अपना टैलेंट कई बार दिखाया है और वह अभी सिर्फ 18 साल की है। ऐसे में एक ओलंपिक में उसके परफॉर्मेंस से उसमें खामियां नहीं निकालनी चाहिए। उनका कहना था कि खेल में हार जीत लगी रहती है।

क्या हुआ कि वल्र्ड की नंबर वन आर्चर ओलंपिक में अपने से रैकिंग में काफी नीचे की प्लेयर से मात खा गई? क्या सिर्फ 18 साल की एज में करोड़ों लोगों की उम्मीद का बोझ उठा पाना मुश्किल था या फिर कुछ और। लंदन से सिटी लौटी दीपिका कुमारी से आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने बात की। क्या बातें हुई आइए जानते हैं
सवाल - ऐसा क्या हुआ कि वल्र्ड की नंबर वन आर्चर का निशाना ओलंपिक में चूक गया?
जवाब - किसी खास दिन पर जीत के लिए बहुत कुछ एक साथ होना चाहिए। इसमें सबसे अहम रोल प्ले करता है कांफिडेंस। उस खास दिन पर आपका कांफिडेंस लेवल कैसा होता है यह बहुत मायने रखता है।
सवाल - आपके कोच से मेरी बात हुई थी तो उन्होंने कहा था कि  आपकी यह खासियत है कि फाइनल्स में आप कांफिडेंस लूज नहीं करती। तो इस बार क्यों ऐसा हुआ?
जवाब - मैं यह तो नहीं कह सकती कि लंदन में मैं कांफिडेंस लूज कर गई थी। हां इतना जरूर कहना चाहती हूं कि लॉड्र्स जैसे बड़े ग्राउंड पर काफी संख्या में प्रजेंट क्राउड के प्रेशर को ठीक से हैंडल करने में थोड़ी चूक हो गई।
सवाल- कॉमनवेल्थ गेम्स में भी तो ऐसे सिचुएशन का सामना करना पड़ा होगा। लेकिन उसमें तो आपने डबल गोल्ड जीता था?
जवाब- अगर हम अपनी कंट्री में खेल रहे होते हैं तो क्राउड चाहे कितनी भी रहे उसका पे्रशर पॉजिटीव होता है। दूसरी जगहों पर ऐसा नहीं हो पाता।
सवाल - ओलंपिक से बाहर हो जाने के बाद आपकी मां ने कहा था कि आपको और पहले लंदन भेजना चाहिए था ताकि वहां के कंडीशन में एडजस्ट करने में प्रॉब्लम नहीं होती, क्या ऐसा था?
जवाब - मेरी मां को आर्चरी के बारे में ज्यादा नॉलेज नहीं है। पहले जाने का फायदा भी होता तो उतना नहीं जितना सभी सोचते हैं। मुझे लॉड्र्स ग्राउंड पर सिर्फ एक दिन प्रैक्टिस करने का मौका मिला था। मैं बाहर प्रैक्टिस करती थी। ग्राउंड के बाहर और अंदर प्रैक्टिस करना काफी डिफरेंट था।
सवाल - ओलंपिक में जो भी कमियां रहीं उसे दूर करने के लिए क्या करेंगी?
जवाब - मुझे आगे अपने परफॉर्मेंस पर कांसेंट्रेट करना है। मेरी कोशिश यही होगी कि अपने कांफिडेंस को बड़े स्पोट्र्स इवेंट में मेंटेन रखूं। इसके लिए जरूरी है कि हमें कंट्री में होने वाले इवेंट्स में क्राउड को फेस करने की प्रैक्टिस कराई जाए।  
सवाल - हम दीपिका से उम्मीद कर सकते हैं कि जो लंदन में नहीं हो सका वो 2016 में रियो-डि-जेनोरियो में होगा?
जवाब - हमने इस बार भी कोशिश की थी और आगे भी कोशिश करूंगी। हर दूसरे प्लेयर्स की तरह मेरा भी सपना ओलंपिक में मेडल जीतने का है। बस इतना कहना चाहती हूं कि कड़ी मेहनत करती रहूंगी.