-सावन के महीने में कांवर लेकर जाते हैं लोग

-पाताल फोड़ कर प्रकट हुए थे भगवान शंकर

-यहां मौजूद गुप्त गंगा का पानी कभी नहीं सूखता

द्भड्डद्वह्यद्धद्गस्त्रश्चह्वह्म@द्बठ्ठद्ग3ह्ल ईस्ट सिंहभूम में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जहां सावन में काफी भीड़ लगती है। इनमें से ही एक है पोटका ब्लॉक के कोकदा स्थित महाकालेश्वर मंदिर। इसे यहां के बाबाधाम के रूप में भी जाना जाता है और हर साल सावन के महीने में यहां लाखों की भीड़ उमड़ती है। इस साल भी मंदिर में लोगों की जुटने वाली भीड़ के मद्देनजर पूरी तैयारी की जा रही है।

क्या है प्राचीन मान्यता

मान्यता है कि यहां पाताल फोड़ कर शिवलिंग प्रकट हुआ है। इस कारण इन्हें पाताल फोड़ भगवान के नाम से भी जाना जाता है। यह शिवलिंग काफी पुराने समय से है। यहां मंदिर के निर्माण की कहानी भी काफी रोचक है। प्राचीन काल मे यहां घनघोर जंगल हुआ करता था। इसके पास गांव के लोग यहां गाय चराने जाते थे। एक ग्वाला की गाय जब चारा खाकर वापस आती थी तो तो दूध नहीं देती थी। लगातार 10 दिनों तक जब गाय ने दूध नहीं दिया तो ग्वाले को चिंता हुई। इसके बाद उसने गाय पर नजर रखनी शुरू कर दी। इस क्रम में उसने देखा कि उसकी गाय एक घनी झाड़ी की ओर जाती है और वहां पड़े एक पत्थर के पास खड़ी हो जाती है। इसके बाद उसके थन से अपने आप दूध निकलकर गिरने लगता है। ग्वाला को आश्चर्य हुआ और वह कुछ लोगों के साथ वहां पहुंचा। इसके बाद उसने कुल्हाड़ी से पत्थर पर प्रहार किया, जिससे उसमें दरार आ गई। शिवलिंग पर आज भी वह दरार मौजूद है। इसके बाद भी गाय का उस जगह जाकर दूध देना बंद नहीं हुआ। एक रात भगवान ने उस ग्वाले को स्वप्न में बाताया कि वह पत्थर नहीं पाताल से निकला शिवलिंग है। स्वप्न में भगवान ने उससे कहा कि मेरी पूजा महाकालेश्वर के नाम से करो, तो तुम्हें अच्छा फल मिलेगा और गांव में भी सुख-शांति रहेगी। इसके बाद उस ग्वाला ने इस स्वप्न के बारे में लोगों को बताया और वहां पूजा-अर्चना शुरू हो गई और धीरे-धीरे इसकी की चर्चा चारों ओर हुई और यह स्थान महाकालेश्वर धाम के रूप में फेमस हो गया।

रामलखन बाबा ने ली थी समाधी

जंगली एरिया होने के कारण यह शांत क्षेत्र तो था ही, इस कारण साधु-महात्मा भी यहां डेरा डालने लगे। बाद में यह क्षेत्र साधु डेरा के नाम से भी जाना जाने लगा। यहां सबसे पहले पुजारी थे रामलखन बाबा। उन्होंने यहां डेरा डाला और पूजा शुरू कर दी। इसके बाद रामलखन बाबा ने समाधी ली। मंदिर के पास ही उनका समाधि स्थल भी है। यहां एक गुप्त गंगा भी है जिसमें 12 महीने पानी अपने आप निकलता रहता है। लोगों का कहना है कि चाहे जितना भी सूखा पड़ जाए यहां का पानी कभी नहीं घटता है। इस पानी से भक्त भगवान का अभिषेक करते है। इस पानी की खासियत यह है की इससे कई बीमारियों से मुक्ति भी मिलती है।

टाटानगर से है 20 किमी दूर

महाकालेश्वर टाटानगर रेलवे स्टेशन से 20 किलोमीटर दूर आसनबनी रेलवे स्टेशन के नजदीक है। अब यह पिकनिक स्पॉट व दार्शनिक स्थल के रूप में भी फेमस हो गया है। यहां सावन, महाशिवरात्रि, चैत्र संक्रांति सहित अन्य मौके पर लोग आते हैं और पूजा करते हैं। यहां स्थानीय लोगों के अलावा ओडि़शा और बंगाल से भी लोग आते हैं। बाद में गालूडीह के बाबा विनय दास ने यहां हरि मंदिर का निर्माण कराया और पोटका की एमएलए मेनका सरदार ने एमएलए फंड से एरिया का डेवलपमेंट वर्क कराया है।

दूर-दूर से लेकर आते हैं कांवर

सावन में लोग दूर-दूर से कांवर लेकर आते हैं। इस मौके पर मंदिर कमिटी द्वारा लोगों के बीच खीर व पूरी का प्रसाद बांटा जाता है। वर्षो पुराने इस मंदिर का जीर्णोद्धार जादूगोड़ा के मारवाड़ी कम्यूनिटी के लोगों ने महाकालेश्वर धाम मंदिर कमिटी के साथ मिलकर किया है।