-ओल्ड एज होम में रह रहे बुजुर्गो ने व्यक्त की भावना

JAMSHEDPUR: बाराद्वारी स्थित ओल्ड एज होम में रह रहे बुजुर्गो को नहीं मालूम कि फादर्स डे क्या होता है, उन्हें इससे मतलब भी नहीं है। प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा संचालित वृद्धाश्रम में रहने वाले ये बुजुर्ग जानना भी नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें अपने वारिस से बुढ़ापे में वह प्यार नहीं मिला जिसकी उन्हें उम्मीद थी। जब उनसे पिता के रूप में अपने अनुभव बताने को कहा गया, तो अंदर कहीं पीड़ा छिपी थी लेकिन इसके साथ-साथ आजकल के बच्चों में माता-पिता के प्रति उपेक्षा के भाव से घृणा भी थी। आइए सुनें, क्या कहते हैं बुजुर्ग

बेटी के ससुराल में रहूं

ओल्ड एज होम के सबसे उम्रदराज व्यक्ति हैं शचींद्र कुमार भादुड़ी (88)। इस उम्र में ाी शारीरिक व मानसिक रूप से बिल्कुल स्वस्थ हैं, तो इसकी वजह उनका जिंदादिल इनसान होना है। वह बताते हैं, टिस्को में टीचर था। वर्ष क्9भ्फ् में ज्वाइन किया और क्988 में सेवानिवृत्त हो गया। पत्‍‌नी तो क्99ख् में ही गुजर गई, अब वारिस के नाम पर एक बेटी है। वह उन्हें ले जाना चाहती है, लेकिन बेटी के ससुराल में कैसे रहूं, संस्कार इजाजत नहीं देता। वह बताते हैं कि उनका जन्म उसी फरीदपुर (बांग्लादेश) में हुआ, जहां के शेख मुजीबुर्रहमान थे। पिता सरकारी नौकरी में थे। देश बंटवारे के बाद स्वेच्छा से भारत आ गए। बच्चों की उपेक्षा पर कहा कि उनके पिता छह भाई थे, सबका परिवार साथ-साथ रहता था। सभी एक-दूसरे का ख्याल रखते थे, लेकिन आज ऐसा नहीं है। नई पीढ़ी ज्यादा आजादी चाहती है, इसलिए वे अपने बुजुर्गो को बोझ समझते हैं।

बुढ़ापे में वक्त गुजर जाए, बस

ओल्ड एज होम में करीब क्0 माह पहले आए सत्यरंजन मल्लिक की उम्र म्ख् वर्ष है। मल्लिक पेशे से फिटर थे, लेकिन उन्होंने ताउम्र ठेकेदारी में काम किया। जब शरीर को आराम की जरुरत हुई तो यहां आ गए। मल्लिक बताते हैं कि पत्‍‌नी का निधन तो करीब फ्भ् साल पहले हो गया था, हां एक बेटी जरूर है। वह कोलकाता में अपने ससुराल में है। हालांकि वह कभी उनसे मिलने नहीं आई, इसका दुख तो होता है, लेकिन यहां का माहौल इतना अच्छा है कि कब सुबह होती है, कम शाम, पता ही नहीं चलता। अकेलापन महसूस तो होता है, चिंता भी होती है, लेकिन साथी बुजुर्गो से बातचीत में वक्त कट जाता है। पता नहीं आजकल के बच्चों को यह बात समझ में क्यों नहीं आती है कि बुढ़ापे में उनके साथ जब ऐसा होगा, तो उन्हें कैसा लगेगा।

बस सिंथेसाइजर मिल जाता

ओल्ड एज होम के हालिया मेहमान रूपक कुमार (म्ख्) हैं। एक कलाकार-संगीतकार के रूप में जीवन को जिंदादिली से जीने वाले रूपक ने विवाह ही नहीं किया, इसलिए उन्हें अपने बच्चे के प्यार का अनुभव तो नहीं है, लेकिन अनुभव है। वह बताते हैं उनकी शादी ही नहीं हुई, तो संतान सुख का सवाल ही कहां पैदा होता है। हालांकि उन्होंने अपने भतीजों को खूब प्यार किया, पिता जैसा चाहा, लेकिन उन्होंने भी साथ छोड़ दिया। वह अकेले शख्स हैं जो यहां रहने अकेला आया। संगीत के साधक रूपक कहते हैं कि उन्हें सिंथेसाइजर बजाने में महारत हासिल है। यदि कोई उन्हें एक सिंथेसाइजर दे देता, तो उनका तनाव तो दूर होता ही, यहां के लोगों को भी आनंद आता। रूपक कहते हैं कि उन्हें इस बात का मलाल नहीं है कि उन्होंने अपने जीवन में बहुत पैसे नहीं कमाए, वैसे भी पैसे से सुख नहीं मिलता है। सुख के लिए किसी साथी की जरुरत होती है, वह यहां मिल रहा है।